जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई। करुणासागर कीजिय सोई।।



गोरखपुर। संत भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार की तपोभूमि गीता वाटिका प्रांगण में श्री भाईजी की 50 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित कार्यक्रमों के अंतर्गत रविवार 4 अप्रैल को प्रातः 7 बजे गीता वाटिका प्रांगण से श्री भाईजी की पावन स्मृति में *नगर संकीर्तन यात्रा* का शुभारंभ हुआ । संकीर्तन यात्रा गीता वाटिका से चलकर जेल रोड तिराहे पर पहुंची । वहां गोवत्स श्रीराधाकृष्णजी महाराज ने श्री भाईजी की प्रतिमा का पूजन- अर्चन कियाा। 

भक्तजन ने 
राधिकारमण अंबुजनयन नंदनंदन नाथ हे , गोपिकाप्राण मन्मथमथन विश्वरंजन कृष्ण हे..... राधे - राधे ......आदि का संकीर्तन एवं नृत्य करते हुए श्री विष्णु मंदिर (मेडिकल रोड) पहुंचेे। वहां पूजन-अर्चन के बाद संकीर्तन यात्रा गीता वाटिका वापस पहुंचकर संपन्न हुई।

कार्यक्रम में उमेश कुमार सिंहानिया, रसेन्दु फोगला, हरिकृष्ण दुजारी, नवीन रूँगटा, मुकुंद अग्रवाल, मनमोहन जाजोदिया, श्रीमती अंजली पराशर, दीपक गुप्ता, पवन सिंहानिया, डॉ. एच.आर. माली, नितेश पोद्दार , डॉ अनुराग सिंह, अवनीश पाण्डेय , राकेश तिवारी आदि महानुभावों की उपस्थिति उल्लेखनीय रही ।

इस अवसर पर आयोजित नौ दिवसीय कथा के चतुर्थ दिवस जोधपुर से पधारे कथाव्यास गोवत्स श्रीराधाकृष्णजी महाराज ने व्यासपीठ से कथाप्रसंग के अंतर्गत कहा कि जिसे स्वामी मानते हैं उस पर दबाव नहीं डालना चाहिए ---

जेहि बिधि प्रभु प्रसन्न मन होई । करुणासागर कीजिय सोई ।।

 दशरथ जी का दांपत्य जीवन आदर्श दांपत्य जीवन था । कैकेयी से अधिक लगाव के कारण उनकी अन्य रानियों में परस्पर वैमनस्य नहीं था । केवल स्त्री - पुरुष के संसर्ग से जो संतति उत्पन्न होती है वह "मूर्ति" है और पवित्र जीवनचर्या वाले दंपति से उत्पन्न संतति केवल मूर्ति नहीं बल्कि " प्राण प्रतिष्ठित मूर्ति" होती है । दशरथ जी ने जब पुत्र जन्म का समाचार सुना तो उन्हें ब्रह्मानंद की प्राप्ति हुई ।

 दशरथ पुत्र जनम सुनि काना । मानहु ब्रह्मानंद समाना ।।

 पुत्र जन्म के बाद दशरथ को प्राप्त होने वाले आनंद हम सब को पुत्र प्राप्त होने वाले आनंद जैसा नहीं है। वह आनन्द अलग है। वह ब्रह्मानंद है। दशरथ ने जो ब्रह्मानंद पूर्व जन्मों में मनु और कश्यप के रूप में प्राप्त कर लिया था वही आनंद पुनः राम के जन्म पर प्राप्त हुआ । यह आनन्द राम वनगमन तक बना रहा । जीवन में जो सांसारिक अनुभूतियां होती हैं, वे जीवन समाप्त होने के साथ ही समाप्त हो जाती हैं , पर भगवत् - प्रेम आदि अनुभूतियां जन्म - जन्मांतर तक बनी रहती हैं , कभी समाप्त नहीं होतीं।

 प्रातः 10 बजे से "पद रत्नाकर" के पदों का सस्वर गायन किया गया ।

कथा 9 अप्रैल तक चलेगी।

श्री भाईजी की 50 वीं पुण्यतिथि चैत्र कृष्ण दशमी तदनुसार 6 अप्रैल मंगलवार को मनाई जाएगी।

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