गीता वाटिका में भजन कीर्तन के बीच निकली प्रभात फेरी

गोरखपुर। गीता वाटिका प्रांगण में श्री भाईजी की 50 वीं पुण्यतिथि के अवसर पर चैत्र कृष्ण दशमी तदनुसार 6 अप्रैल मंगलवार को प्रभातफेरी निकाली गई।

प्रातः 6 से पावन कक्ष में पद कीर्तन के दैनिक कार्यक्रम के पश्चात् श्री भाईजी पावन कक्ष से प्रभातफेरी प्रारंभ हुई। भक्तजन गा रहे थे ---

हम तो हमारे भाईजी के, भाईजी हमारे हैं ......

यह प्रभातफेरी गीता वाटिका परिसर की परिक्रमा करते हुए पावन समाधि पर पहुंची। वहां मधुरनाम संकीर्तन के पश्चात् 

जिन आंखिन में वह रूप बस्यौ, उन आंखिन से अब देखिय का...... आदि अनेक भावपूर्ण पदों का गायन किया गया। ठीक 7:55 बजे (प्रातः) श्रीरसेन्दु फोगला द्वारा समाधि की विशेष आरती की गई। आरती के पश्चात् समाधि का पूजन-अर्चन किया गया साथ ही साथ पद गायन का कार्यक्रम भी चलता रहा । पूजन के उपरांत पुनः आरती हुई। भक्तों ने गाया -

 जिन चरणों की मंगलकारी कृपा अहैतुक के द्वारा, राधामाधव लीला की नित हुई प्रवाहित रस- धारा ।

 जिन चरणों के नीचे पनपे, हुए बड़े हम हुए खड़े,वे ही शतदल चरण हमारे हृदयपटल पर रहें जड़े ।। 

गोवत्स श्री राधाकृष्ण महाराज जी भी उपस्थित थे ।

प्रसीद मे नमामि ते पदाब्ज भक्ति देहि मे गाते हुए भक्तों ने समाधि की परिक्रमा की।

 दिन में 10 से 12 बजे तक *पद- रत्नाकर* के पदों का सस्वर गायन किया गया । श्रीगिरिराज- पूजन- भोग अर्पण के पश्चात् भक्तों ने भंडारे में महाप्रसाद ग्रहण किया ।

कार्यक्रम में उमेश कुमार सिंहानिया, श्री रसेन्दु फोगला, श्री हरिकृष्ण दुजारी, श्री ओमप्रकाश सेकसरिया , श्रीमती कविता डालमिया , श्री मनमोहन जाजोदिया, श्री दीपक गुप्ता, श्रीमती अंजलि पराशर, श्रीमुकुन्द अग्रवाल ,श्री राकेश तिवारी आदि महानुभावों की सक्रियता उल्लेखनीय रही ।

श्रीभाईजी की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित नौदिवसीय श्रीराम कथा के छठवें दिन जोधपुर से पधारे कथाव्यास गोवत्स श्रीराधाकृष्ण महाराज ने कहा कि श्रीभाईजी जैसे महान रसिक संतों के धाम-गमन को लीला-प्रवेश कहते हैं । ब्रज में इसे प्रिया-प्रियतम-मिलन-महोत्सव कहते हैं । भाईजी जैसे महापुरुष अपने वास्तविक स्वरूप को छिपाकर रखते हैं । किसी विशेष स्थिति में भावावेश हो जाने पर उनके अत्यन्त निकट रहने वालों को उनके स्वरूप के बारे में किंचित् जानकारी मिल जाती है ।

भगवान सीताराम विवाह प्रसंग की कथा का श्रवण कराते हुए उन्होंने कहा ---- पुष्प वाटिका में भगवान सीता-राम का मिलन भक्ति का भगवान से मिलन है । महाराज जनक की सुमन-वाटिका में श्रीराम गुरुदेव के लिए केवल सुमन (पुष्प) लेने नहीं बल्कि सीताजी का सुमन (सु-मन) लेने गए थे ।

Comments