भगवान भी भक्त के प्रेम के प्यासे : राधाकृष्ण


गोरखपुर। भगवान भी अपने भक्त की मन में तभी वास करते हैं जब वह निष्फल भाव से प्रेम रस की भक्तिि में डूबा रहता है। गीता वाटिका में भाईजी श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार की 50 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित नौ दिवसीय रामकथा के अष्टम दिवस जोधपुर से पधारे कथाव्यास गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज ने कथा प्रसंग का विस्तार करते हुए कहा कि केवल स्वाद के लिए कुछ न खाएं, हम वही खाएं जो हमारे शरीर का हित करे , जिससे हमारे शरीर की इम्युनिटी बढ़ेे। वर्तमान समय में इम्युनिटी बढ़ाने की और भी आवश्यकता है।

हम केवल पौष्टिक भोजन करें। घर के भोजन से ही इम्युनिटी बढ़ती है। हम केवल वही भोजन करें जो भगवान को भोग लगाया जा सकता हो। वनवास काल में भगवान श्री राम सीता जी और लक्ष्मण जी के साथ वाल्मीकि मुनि के आश्रम पहुंचते हैं और पूछते हैं कि मुझे कोई स्थान बताएं जहां मैं कुछ दिन निवास करूं। तब वाल्मीकि जी कहते हैं जो आपको निवेदन करके -- अर्पण करके भोजन करते हैं, आप उनके हृदय में निवास कीजिए

तुम्हहि निवेदित भोजन करहीं .......


इसके अलावा आप उनके ह्रदय में भी निवास करें। जिनके कान समुद्र की तरह आपके सुंदर कथा रूपी नदियों से निरंतर भरते रहते हैं, परंतु कभी तृप्त नहीं होते। जिन्होंने अपने नेत्रों को चातक बना रखा है और आपके दर्शन रूपी बादल के लिए हमेशा लालायित रहते हैं, उन लोगों के हृदय रूपी भवन में आप सीता तथा लक्ष्मण जी सहित निवास कीजिए। आपके यश रूपी निर्मल मानसरोवर में जिसकी जीभ हंसिनी बनी हुई आप के गुण रूपी मोतियों को चुगती रहती है, उसके हृदय में बसिए जिनके मस्तक देवता, गुरु और ब्राह्मणों के आगे झुकते हैं, जिनके हृदय में आप ही का भरोसा है, जिनके चरण आपके तीर्थों में चल कर जाते हैं, आप उनके मन में सदा निवास कीजिए-----

जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु* *तुम सन सहज सनेह।

बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेह।।


 
जिसको कभी कुछ नहीं चाहिए और जिसका आपसे प्रेम है, आप उसके मन में निरंतर निवास कीजिए। वह आपका अपना घर है।

कथा 9 अप्रैल तक चलेगी, समय प्रातः 10 बजे से रहेगा।

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