राज्य के लिए त्याग और भगवान के भक्ति भाव होना चाहिए : श्रीराधाकृष्ण



गोरखपुर। राज्य केे लिए त्याग जरूरी होता है, तो भगवान को पाने के लिए भक्ति जरूूूरी है। महाराज दशरथ ने गुरु वशिष्ठ से अपने मन की बात कही। गुरुदेव ने कहा- सभी तीर्थों के जल मंगवा लें। पूरी अयोध्या में खबर फैल गई कि राम का राज्याभिषेक होने वाला है। अयोध्या के घर -घर में व्यंजन बनाए जा रहे हैं। यह बातें श्रीराम कथा के सप्तम दिवस कथाव्यास गोवत्स श्री राधाकृष्ण जी महाराज ने कही। वे श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार की पावन तपोभूमि गीता वाटिका में श्रीभाई जी की 50 वीं पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में आयोजित नौ दिवसीय श्रीराम कथा के दौरान बुधवार को व्यासपीठ से कथाप्रसंग के अंतर्गत उन्होंने कहा कि आजकल लोग साठ वर्ष की उम्र में भी बाल काले कराते हैं। दांत चले गए हैं, कान से कम सुनाई दे रहा है, फिर भी शरीर की  सहज स्थिति हम स्वीकार नहीं कर पाते। उन्होंने कहा कि महाराज दशरथ ने अपने कुछ सफेद बालों को देखकर अयोध्या का राज्य राम को देने का विचार किया। दशरथ जी ने अपना प्राण राम को समर्पित कर रखा है, अपना प्रेम राम जी को समर्पित कर रखा है, अपना प्रत्येक श्वास  राम जी को समर्पित कर रखा है। उन सबके सामने राज्य छोटी चीज है। सब कुछ रामको समर्पित कर दिया है तो राज्य भी राम को दे देना चाहिए-- ऐसा विचार दशरथ के मन में आया।

कथाव्यास ने कहा कि महाराज दशरथ ने गुरु वशिष्ठ से अपने मन की बात कही। गुरुदेव ने कहा- सभी तीर्थों के जल मंगवा लें। पूरी अयोध्या में खबर फैल गई कि राम का राज्याभिषेक होने वाला है। अयोध्या के घर -घर में व्यंजन बनाए जा रहे हैं। राम जी के प्रति पूरी अयोध्या का अपनापन है। अयोध्या के नागरिकों ने अयोध्या को ऐसा सजाया कि स्वर्ग और वैकुंठ भी फीका पड़ गया। राम अवध के नागरिकों के हृदय सिंहासन पर विराजमान हैं। देवताओं ने सोचा कि अवध के निवासियों का इतना प्रेम राम से है तो राम अयोध्या छोड़ कर जाएंगे कैसे और  राक्षस हमें परेशान करते रहेंगे। तब देवताओं ने सरस्वती जी से अपना काम बनाने के लिए प्रार्थना की। अयोध्या के सभी नागरिक प्रतिदिन सरयू में स्नान करते हैं। उनका शरीर  सरयू के पवित्र जल से पोषित हुआ है। इससे उनका मन निर्मल है। अयोध्या वासियों की बुद्धि राममय  है। इसलिए उनकी बुद्धि नहीं बिगाड़ी जा सकती। मंथरा अयोध्या की नहीं है । वह कैकय देश से आई थी। इसलिए सरस्वती ने इस कार्य के लिए मंथरा को चुना। मंथरा ने कैकेयी की बुद्धि बिगाड़ी। कैकयी ने महाराज  दशरथ को राम की सौगंध दिलाकर भरत के लिए अयोध्या का राज्य और राम के लिए तपस्वी वेश में चौदह वर्ष का वनवास मांगा। यह सुनकर दशरथ जी कैकेयी को गाली देते हुए कुलकलंकिनी कहते हुए पछाड़ खाकर गिर पड़े । वे कैकेयी के आगे हाथ जोड़ने लगे, उसके पांव पड़ने लगे। उन्होंने कैकेयी से कहा--  भरत को राज्य देने में कोई आपत्ति नहीं , पर दूसरा वचन  तपस्वी वेष में राम को वन भेजने का वापस ले लो। कथा 9 अप्रैल  तक चलेगी। 9 अप्रैल को कथा का समय प्रातः 10 बजे से शुरू होगा।

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