'पापा को दादी के पास दफनाया है, अगर परेशान होंगे तो वह दिलासा देंगी'

'मेरे पापा चले गए, उनको दादी की कब्र के पास ही मदफीन (दफनाया) किया है, अगर पापा रात में घबराएंगे तो दादी उन्हें संभाल लेंगी।' कोविड 19 संक्रमण के कारण पिता आफताब अहमद की मौत पर फफक कर रोते हुए बेटे दानिश कुछ इन अल्फाज (शब्दों) में खुद और परिजनों को दिलासा देते हैं। सहारा एस्टेट निवासी आफताब अहमद (55) पेशे से इंजीनियर थे, एक निजी अस्पताल में इलाज के दौरान बुधवार देर रात उनकी सांसें थम गई थीं।

                                                                                                  (फाइल फोटो)

बेटा दानिश पिता की मौत से सदमे की हालत में है। रुंधे गले से बताया कि पहली रमजान मुबारक को पापा को बुखार हुआ और खांसी आने लगी। तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें भर्ती कराना चाहा लेकिन कोविड महामारी में मरीजों की अधिकता के कारण किसी भी अस्पताल में जगह नहीं मिली। उनका ऑक्सीजन स्तर लगातार गिर रहा था। अंत में 20 अप्रैल को एक निजी अस्पताल में बेड मिला। वहां कोरोना की जांच कराई गई। बुधवार को रिपोर्ट पॉजिटिव आई।
दिक्कत यह हुई कि उस अस्पताल में कोविड मरीजों के इलाज की सुविधा नहीं थी। रुआंसे होकर बताते हैं कि कोविड संक्रमण के कारण फेफड़ों ने काम करना बंद कर दिया, अल्लाह से पापा की तकलीफ देखी नहीं गई और उन्हें अपने पास बुला लिया, पापा बहुत तकलीफ में थे। दानिश मलाल से कहते हैं कि काश पापा को समय रहते कोविड का इलाज मिल जाता तो शायद आज वह हमारे बीच होते।

 जब खिदमत का वक्त आया तो चले गए

 

आफताब अहमद पेशे से इंजीनियर थे और दुबई में एक बहुराष्ट्रीय इंजीनियरिंग कंपनी में सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर के पद से 2016 में रिटायर हुए। मूल रूप से गोरखनाथ इलाके में रहने वाले आफताब अहमद ने सहारा एस्टेट में मकान बनाया और परिवार के साथ वहां रह रहे थे। दो बेटे दानिश और हैदर हैं। दानिश आईटी इंजीनियर है और गुरुग्राम में एक बहुराष्ट्रीय कंपनी में काम करता है। छोटा बेटा हैदर भी इंजीनियर है और गुरुग्राम में ही भाई के साथ रहकर जॉब कर रहा है। 

दुखी मन से दानिश कहते हैं कि पापा ने बहुत मेहनत करके हम लोगों को बेहतरीन तालीम दिलाई, हमें इंजीनियर बनाया। अब हमारी बारी थी उनकी खिदमत करने की, जब खिदमत कराने का मौका आया तो पापा अचानक हमें छोड़ गए। पापा अपनी अम्मी यानी हमारी दादी को बहुत प्यार करते थे, कब्रिस्तान में उन्हें दादी के पैताने (पैरों के पास) जगह दिलाई है ताकि कयामत तक पापा दादी के साथ रहें।




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