पत्नी के लिए सबसे बड़ा है पतिव्रत धर्म : राधाकृष्ण जी

 


गोरखपुर। संत भाईजी श्री हनुमान प्रसादजी पोद्दार  की पावन तपोभूमि गीता वाटिका प्रांगण में श्री भाईजी  50 वीं तिरोधान तिथि (पुण्यतिथि) के उपलक्ष्य में आयोजित नौदिवसीय श्री राम कथा के तीसरे दिन  जोधपुर से पधारे  गोवत्स श्रीराधाकृष्ण जी महाराज ने व्यासपीठ से शिव- पार्वती विवाह प्रसंग कथा के अंतर्गत कहा कि पत्नी को सहधर्मिणी कहा जाता  है। पत्नी अपने पति के आयुष्य के लिए करवा चौथ, तीज आदि अनेक व्रतों का अनुष्ठान करती है । शिव - पार्वती के विवाहोपरांत पार्वती की माता मैना पार्वती को सीख देती हैं ---
नारि धरम पतिदेव न दूजा ......
पत्नी के लिए पतिव्रत धर्म सबसे बड़ा धर्म है, परंतु इसी प्रकार पुरुष के लिए भी पत्नीव्रत धर्म है । पति अपनी पत्नी के अतिरिक्त किसी अन्य को वह स्थान न दे जो पत्नी का है । पत्नी के संबंध की ईमानदारी ही पत्नीव्रत धर्म है। पत्नी को पतिव्रत धर्म के पालन से यदि वैकुंठ की प्राप्ति होती है तो पति को भी पत्नीव्रत धर्म के पालन से वैकुंठ की प्राप्ति हो जाती है।
भगवान शिव-पार्वती के विवाह के समय मुनि गण वेद मंत्रों का पाठ कर रहे हैं .......
वेद मंत्र मुनिबर उच्चरहीं ।
जय जय जय संकर सुर करहीं ।।
 मुनि जन वेद मंत्रों का पाठ कर रहे हैं और देवता लोग भगवान शिव का जय- जयकार कर रहे हैं।  जब कहीं किसी पूजन अनुष्ठान आदि के समय हम उपस्थित हों और वहां  मंत्रोच्चार किया जा रहा हो और यदि हमें उस मंत्र के अर्थ का बोध न हो तो हमें अपने इष्ट के नाम या मंत्र का मानसिक जप करना चाहिए। इससे हमें उस मंत्र के  उच्चारण का फल प्राप्त हो जाता है ।
कथा प्रारंभ होने से पूर्व मंचस्थ त्रिवेणी संगम श्री भाईजी, मां जी एवं श्री राधा बाबा के चित्रपट तथा कथाव्यास का पूजन- अर्चन- माल्यार्पण किया गया ।
प्रातः 10 बजे से पद रत्नाकर के अनेक पदों का सस्वर गायन किया गया  ।
कथा 9 अप्रैल तक चलेगी ।
 श्री भाईजी का तिरोधन दिवस (पुण्यतिथि) चैत्र कृष्ण दशमी तदनुसार 6 अप्रैल मंगलवार को है ।
 इसी क्रम में श्री भाईजी की पावन स्मृति में  4 अप्रैल (रविवार) को प्रातः 7 बजे गीता वाटिका से नगर संकीर्तन यात्रा निकाली जाएगी ।

 

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