सांसों का संकट: जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता है भारत, फिर क्यों घुट रहा देश का दम?

भारत अब तक जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता रहा है। फिर भी देश में ऑक्सीजन संकट जानलेवा बन गया है। यहां जानें अपनी जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले भारत में ऑक्सीजन संकट क्यों है?

देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर के प्रकोप के बीच देश में ऑक्सीजन की किल्लत से हाहाकार मच गया है। देश भर सैकड़ों मरीजों ने ऑक्सीजन के अभाव में तड़प-तड़प कर दम तोड़ दिया। जबकि भारत अब तक जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन का उत्पादन करता रहा है। फिर भी देश में ऑक्सीजन संकट जानलेवा बन गया है। यहां जानें अपनी जरूरत से ज्यादा ऑक्सीजन उत्पादन करने वाले भारत में ऑक्सीजन संकट क्यों है?
देश के कई हिस्सों में अस्पताल पर्याप्त ऑक्सीजन पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। भारत सरकार ऑक्सीजन संयंत्र लगाने और विदेश आयात करने तक मरीजों की जान बचाने के लिए हर संभव कदम उठा रही है। इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि देश में ऑक्सीजन की कमी बिल्कुल भी नहीं है। आपको जानकर हैरानी होगी कि कुल ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता में से केवल एक फीसदी से ऑक्सीजन चिकित्सा क्षेत्र में उपयोग की जाती है। कोरोना संकट में यह 5 फीसद तक उपयोग हो रही है, इससे ज्यादा नहीं।


एक लाख टन से ज्यादा है उत्पादन क्षमता
अनुमान के मुताबिक, भारत में प्रतिदिन 100,000 टन कुल ऑक्सीजन उत्पादन हो रहा है, जिसमें 80 फीसदी ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता स्टील कंपनियां कर रहीं हैं। जामनगर में रिलायंस की प्रतिदिन उत्पादन क्षमता 22000 टन है। देश में अधिकांश ऑक्सीजन संयंत्र मुंबई, गुजरात और कर्नाटक में हैं, जो आमतौर पर 5 से 10 फीसदी लिक्विड ऑक्सीजन का उत्पादन कर स्टोर करते हैं, जिसे ये संयंत्र बैकअप के तौर पर रखते हैं।
देश में ऑक्सीजन के संकट का कारण
स्टोरेज उपकरणों की कमी
देश में ऑक्सीजन टैंकर और सिलेंडर की कमी है। इसकी वजह है कि ये महंगे हैं। एक टैंकर की कीमत करीब 45 लाख है। वहीं सिलेंडर की कीमत 10 हजार है, जिसमें 300 रुपये की ऑक्सीजन बेची जाती है।  

प्रबंधन संबंधी कमियां व मुनाफाखोरी
इंडस्ट्री से जुड़े लोगों का कहना है कि भारत में ऑक्सीजन संकट की वजह उत्पादन क्षमता नहीं बल्कि ट्रांसपोर्टेशन के लिए जरूरी इंफ्रास्ट्रक्चर का न होना है। देश के ज्यादातर ऑक्सीजन दूर दराज इलाकों में स्थापित हैं, जहां से ग्राहकों तक ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए टैंकरों को 200-1000 किलोमीटर की दूरी तय करनी होती है। कई जगह सड़कें ठीक न होने पर 7-10 दिन में सिलेंडर और टैंकर ग्राहकों तक पहुंच पाते हैं। वहीं ज्यादातर गैस कंपनियां मुनाफा होने पर ही संयंत्र में उत्पादन क्षमता बढ़ाती है।
कैसे खत्म होगा ऑक्सीजन संकट
विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत में ऑक्सीजन संकट की सबसे बड़ी वजह मजबूत परिवहन ढांचा न होना है। सरकार और इंडस्ट्री इसी दिशा में प्रयास कर रही हैं। कई देशों से क्रायोजैनिक कंटेनर लाए जा रहे हैं। ऑक्सीजन ट्रेन भी चलाई गई हैं।
कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्रीज (सीआईआई) के मुताबिक, सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्यूफेक्चरर (एसआईएम) ऑक्सीजन परिवहन करने वाले वाहनों के इकोसिस्टम को सैनिटाइज और अधिक अलर्ट कर रही है ताकि परिवहन समय को कम किया जा सके। कनेक्टेड व्हीकल और ट्रैक एंड ट्रेस जैसी तकनीक को लागू किया जा रहा है। इन वाहनों के संचालन के लिए हर तरह का सहयोग दिया जा रहा है।
भारतीय वायुसेना और रेल नेटवर्क भी इन वाहनों के परिवहन में मदद कर रहे हैं। सीआईआई के एक अधिकारी के मुताबिक, फोकस परिवहन समस्या के समाधान पर है। क्रायोजैनिक टैंक आयात करना भी एक विकल्प है। सहयोगी देशों से भी मदद मांगी जा रही है।

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