पर्यावरण भी हो सकता है कोरोना महामारी की वजह

पर्यावरण हमें बार बार सावधान करता है और उसे हम नजर अंदाज कर देते हैं! इसी कारण से पर्याप्त वर्षा नहीं होना! जरूरत से ज्यादा गर्मी, बाढ़, भूकंप आना चेतावनी नहीं तो और क्या है। इसलिए हमे समय रहते सावधान होनें की आवश्कता है, क्यों कि जन वृद्धि और विकास भी किया जा रहा है। इसमें पेड़ पौधों की कटाई तो की जा रही है लेकिन लगाया नहीं जा रहा है। जिसके कारण पूरे पूर्वांचल में नीम के वृक्ष समाप्त सा हो गया है। यह हालत सिर्फ पूर्वांचल का नहीं बल्कि पूरे भारतवर्ष की हो गई है। यह संकेत है, यही वजह है कि  मानव जाति और मनुष्य जीवन पर कोरोनावायरस जैसी महामारी, पूरे भारतवर्ष में पैर पसार कर मानव जाति को अपने आगोश में ले रही है।

सरकार को लॉक डाउन लगाना, उनकी मजबूरी

लाकडाउन से शहरों, में, मानव जाति से संबंधित गतिविधियों पर रोक लगने से फिर से पेड़ पौधे हरे भरे होकर अपने अपने कार्य में लगकर आक्सीजन का आदान-प्रदान की प्रक्रिया को पूर्ण करेंगे। सभी मानव जाति को फिर से आक्सीजन मिलने लगेगा। परन्तु यह कब तक संभव है, जब तक वृक्ष जीवन्त है, तब तक हम सभी का जीवन है। सरकार कहती है मास्क है, जरूरी, मैं पूछता हूं क्यों, कारण, आक्सीजन की कमी, यदि पुरे विश्व में हर एक आदमी मास्क पहने तो फिर,आपकी आक्सीजन लेने की क्षमता कम हो जायेगी और सबको आक्सीजन मिलने लगेगा,, आपके एक दिन में लिये जाने वाले आक्सीजन में भी बंटवारे होने लगेगा। इसलिए कहता हूं सिर्फ वृक्ष लगाओ और उसका भरपूर लाभ लें। तथ्य है, lतो देखें नीम का वृक्ष नीम एक चमत्कारी वृक्ष माना जाता है। नीम जो प्रायः सर्व सुलभ वृक्ष आसानी से मिल जाता है। नीम को संस्कृत में निम्ब कहा जाता है। यह वृक्ष अपने औषधीय गुणों के कारण पारंपरिक इलाज में बहुपयोगी सिद्ध होता आ रहा है। चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्राचीन चिकित्सा ग्रंथों में इसका उल्लेख मिलता है।

निम्ब शीतों लघुग्राही कतुर कोअग्नी वातनुत।

अध्यः श्रमतुटकास ज्वरारुचिक्रिमी प्रणतु ॥

अर्थात नीम शीतल, हल्का, ग्राही पाक में चरपरा, हृदय को प्रिय, अग्नि, वाट, परिश्रम, तृषा, अरुचि, क्रीमी, व्रण, कफ, वामन, कोढ़ और विभिन्न प्रमेह को नष्ट करता है।

नीम के पेड़ का औषधीय के साथ-साथ धार्मिक महत्त्व भी है। मां दुर्गा का रूप माने जाने वाले इस पेड़ को कहीं-कहीं नीमारी देवी भी कहते हैं। इस पेड़ की पूजा की जाती है। कहते हैं कि नीम की पत्तियों के धुएं से बुरी और प्रेत आत्माओं से रक्षा होती है। और पीपल वृक्ष का महत्व जीवन में क्या है,पीपल देव : हिंदू धर्म में पीपल का बहुत महत्व है। पीपल के वृक्ष को संस्कृत में प्लक्ष भी कहा गया है। वैदिक काल में इसे अश्वार्थ इसलिए कहते थे, क्योंकि इसकी छाया में घोड़ों को बांधा जाता था। अथर्ववेद के उपवेद आयुर्वेद में पीपल के औषधीय गुणों का अनेक असाध्य रोगों में उपयोग वर्णित है। औषधीय गुणों के कारण पीपल के वृक्ष को 'कल्पवृक्ष' की संज्ञा दी गई है। पीपल के वृक्ष में जड़ से लेकर पत्तियों तक तैंतीस कोटि देवताओं का वास होता है और इसलिए पीपल का वृक्ष प्रात: पूजनीय माना गया है। उक्त वृक्ष में जल अर्पण करने से रोग और शोक मिट जाते हैं।

पीपल के प्रत्येक तत्व जैसे छाल, पत्ते, फल, बीज, दूध, जटा एवं कोपल तथा लाख सभी प्रकार की आधि-व्याधियों के निदान में काम आते हैं। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में पीपल को अमृततुल्य माना गया है। सर्वाधिक ऑक्सीजन निस्सृत करने के कारण इसे प्राणवायु का भंडार कहा जाता है। सबसे अधिक ऑक्सीजन का सृजन और विषैली गैसों को आत्मसात करने की इसमें अकूत क्षमता है।

गीता में भगवान कृष्ण कहते हैं, 'हे पार्थ वृक्षों में मैं पीपल हूं।'

मूलतः ब्रह्म रूपाय मध्यतो विष्णु रुपिणः। 

अग्रतः शिव रुपाय अश्वत्त्थाय नमो नमः।।

भावार्थ-अर्थात इसके मूल में ब्रह्म, मध्य में विष्णु तथा अग्रभाग में शिव का वास होता है। इसी कारण 'अश्वत्त्थ'नामधारी वृक्ष को नमन किया जाता है।-पुराण


पीपल परिक्रमा :

स्कन्द पुराण में वर्णित पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं का वास है। पीपल की छाया में ऑक्सीजन से भरपूर आरोग्यवर्धक वातावरण निर्मित होता है। इस वातावरण से वात, पित्त और कफ का शमन-नियमन होता है तथा तीनों स्थितियों का संतुलन भी बना रहता है। इससे मानसिक शांति भी प्राप्त होती है। पीपल की पूजा का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। इसके कई पुरातात्विक प्रमाण भी है।

अश्वत्थोपनयन व्रत के संदर्भ में महर्षि शौनक कहते हैं कि मंगल मुहूर्त में पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढ़ाने पर दरिद्रता, दु:ख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन-पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है। अश्वत्थ व्रत अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।

पीपल पूजा : 

शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष की पूजा और सात परिक्रमा करके काले तिल से युक्त सरसो के तेल के दीपक को जलाकर छायादान करने से शनि की पीड़ा से मुक्ति मिलती है। अनुराधा नक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या के दिन पीपल वृक्ष के पूजन से शनि पीड़ा से व्यक्ति मुक्त हो जाता है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान की पूजा करने से सभी तरह के संकट से मुक्ति मिल जाती है।

-पं देवेन्द्र प्रताप मिश्र 

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