बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष पूजन के उपरांत आसहाय ओर पीड़ितों में बांटे दवा और खाद्य सामग्री


गोरखपुर, 26 मई। पूर्णिमा के संध्या पर के सभी ने महात्मा बुद्ध के चित्र पर पुष्पांजलि, ,मोमबत्ती द्विप प्रज्जवलित कर पूजन प्रारम्भ किया ,उसके उपरांत वैश्विक महामारी कोरोना के परिदृश्य में उत्पन्न हुए माहौल में मां अकलेश व समाजसेवी व राजनेता डॉ अशोक की स्मृति में चिन्हित्व गरीब असहाय निर्धनों में खाद्य सामग्री व वह गृहस्थ सामानों का वितरण किया गया ,विशेष पूजन का कार्य मंजीत कुमार ने किया।

महात्मा बुद्ध का जीवन कभी भी भौतिकता से प्रभावित नहीं हुआ। उन्होंने भौतिकता को गौड़ मानते थे, सदैव अध्यात्म के महत्व को देखा और उसे अपनी प्रज्ञा से ही प्रदीप्त करने में सफलता प्राप्त की। यह सच ही माना जाय कि महात्मा बुद्ध के जीवन, चिन्तन और कृतित्व के परिपेक्ष्य में उन्हें भौतिकवाद के दायरे में नहीं कैद रखा जा सकता। येसा करना संकीर दृष्टि का परिचायक है और वास्तव में यह बुद्ध के प्रति अन्याय होगी, महात्मा बुद्ध सनातन धर्म की श्रृंखला की ,मुख्य कड़ी हैं। उक्त उदगार यहाॅं बुद्ध जयंती के अवसर पर डॉ अशोक कुमार श्रीवास्तव फैंस क्लब ,शीतला प्रसाद फूलमती देवी शिक्षा संस्थान व मंगिरिश वेलफेयर ट्रस्ट के सयुक्त तत्वावधान में वैश्विक महामारी करो ना के वजह से सीमित कार्यक्रम में मा अक्लेश सदन मे बुध पूर्णिमा पर पूजन व अन्य कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पूज्य श्री दुर्गा प्रसाद (बाबू जी) ने व्यक्त किये। 

ई संजीत कुमार (मुखिया मंगीरिश समूह) व ई रंजीत कुमार ( यम डी डी पी टेलीकॉम) ने कहा कि महात्मा बुद्ध भारतीय इतिहास के पहले व्यक्ति हैं जिनके विचार भारत के बाहर भी गये। बुद्ध के जिन विचारों के कारण बौद्ध धर्म का प्रसार सारी दुनिया में हुआ वह है बुद्ध के मन में जीवन की वास्तविकता से साझतकर। यह सही भी है कि समस्त आकांक्षाओं को समाप्त करने की बेचैनी ने ही बुद्ध को महान और विशिष्ट बनाया। 

डीआर प्रदीप कुमार श्रीवास्तव प्रिंसिपल सिग्नल एवं टेलीकॉम ट्रेनिंग सेंटर हेड क्वार्टर गोरखपुर एनी रेलवे व डाॅ0 मनोज कुमार श्रीवास्तव (प्रसिद्ध शिक्षाविद व विभागाध्यझ, शिक्षा शास्त्र, सेडिका) ने कहा कि आज चारों ओर जहाॅं हिंसा, आतंकवाद का दौर जारी है महात्मा बौद्ध के सत्य,अहिंसा,प्रेम,दया,करुना की भावना से प्रार्थना परिपूर्ण उपदेश हमारे लिए, आज भी प्रासंगिक हो गए हैं। महात्मा बुद्ध भाव से जीवन की वास्तविकता का बोध करने के कारण ही भगवान की उपाधि से विभूषित हो गए, परन्तु वे स्वयं इश्वरत का बोध करते रहे। तात्पर्य यह कि मनुष्य सहज भाव से ही ज्ञान के चरमोत्करश तक पहुॅंच सकता है। बौद्ध धर्म का प्रचार-प्रसार समूचे विश्व में हुआ लेकिन उसके आदर्शो का आत्मसात पूरी तत्परता से न किये जाने केे कारण सारी दुनिया घोर संकट काल से गुजर रही है। इस स्थिति को समाप्त करने के लि, चाहि, कि आर्थिक दृष्टिकोण से ही नहीं भावात्मक, चारित्रिक दृष्टि से भी मनुष्य विकास का मार्ग प्रशस्त करे।

अध्यक्षता करते हुए मुक्त प्रधान इंजीनियर सिगनल एंड टेलीकॉम एनी रेलवे के सचिव इं. प्रदीप कुमार श्रीवास्तव ने कहा कि महात्मा बुद्ध के अनुसार शरीर से अलग होकर देखना ही अध्यात्म है। यही कारन है कि बुद्ध ने असुविधाओं के बीच में भी सुख की अनुभूति की। बुद्ध के मतानुसार दुःख सत्य मार्ग दुःख का बोध नहीं है वह जीवन के मर्म तक पहुॅंचने से ही उत्पन्न होता है। 

ई अनुभव श्रीवास्तव व मंजीत कुमार ने कहा कि सत्य और अहिंसा के मार्ग को अपनाने वाले महात्मा बुद्घ का मानना है कि इस भौतिक जगत में दुःख का कारण इच्छा है और इच्छाओं का कोई अन्त नहीं होता। भगवान बुद्ध ने संसार को दुःखों का सागर कहा है। दुःख है तो उसका कारण भी है। अब यह हमारा दायित्व है कि हमउस कारण को खोजें और उसका निवारण करने की सोचें। उनके अनुसार यदि मनुष्य अपनी इच्छाओं का दमन करना चाहे तो उसे सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलना होगा । संसार में दुःख का सबसे बड़ा कारण दुःख का बोध होना है। 

इस अवसर पर परिवार के शिखर वर्मा, ई.प्रखर कुमार, मांगरीश बाबू , मानित बाबू , ई.अनुभव कुमार उपस्थित रहे।

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