विष्णु जी को भोग लगाने में तुलसी पत्र को अवश्य रखे: पं. बृजेश पाण्डेय
भारतीय विद्वत महासंघ के केन्द्रीय महामंत्री पं बृजेश पाण्डेय ज्योतिषाचार्य ने बताया कि 21 जून दिन सोमवार को निर्जला एकादशी व्रत है, निर्जला एकादशी को सभी एकादशी में सबसे अधिक श्रेष्ठ माना गया है, इस दिन व्रत करने से 24 एकादशी व्रत करने के समान फल की प्राप्ति होती है। 21 जून दिन सोमवार को सूर्योदय काल में एकादशी तिथि मिल रही है दुसरे दिन मंगलवार को प्रातः काल 7 बजे के अंदर पारण करने का मुहूर्त है।
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी व्रत रहने मात्र से ही बारहों महीने के एकादशी व्रत का सम्पूर्ण फल प्राप्त हो जाता है। ज्योतिषाचार्य पं. बृजेश पाण्डेय ने व्रत कि महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि एकादशी तिथि भगवान विष्णु को समर्पित होती है, इस दिन विधि-विधान से भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है। हिंदू पंचांग के अनुसार हर माह में दो बार एकादशी पड़ती है तथा साल में कुल 24 एकादशी कि मान्यता है। हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत अधिक महत्व होता है। ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को ही निर्जला एकादशी या भीमसेनी के नाम से जाना जाता है। एकादशी पूजा सामग्री मे श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति, वस्त्र, पुष्प, नारियल, सुपारी, फल, लौंग, धूप, दीप, घी, पंचामृत, अक्षत, तुलसी दल, चंदन और मिष्ठान आदि पूजा के समय रखें।
पं. बृजेश पाण्डेय ने कहा कि निर्जला एकादशी पूजा के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त हो जाएं, घर के मंदिर में दीप प्रज्वलित करें, भगवान विष्णु का गंगा जल से अभिषेक करें तथा पुष्प और तुलसी दल अर्पित करें और संभव हो तो इस दिन व्रत भी रखें तथा भगवान की आरती करें। भगवान को भोग लगाते समय इस बात का विशेष ध्यान रखें कि भगवान को सिर्फ सात्विक चीजों का भोग लगाया जाये और विष्णु जी को भोग लगाने में तुलसी पत्र को अवश्य रखे, ऐसा माना जाता है कि बिना तुलसी के भगवान विष्णु भोग ग्रहण नहीं करते हैं। इस पावन दिन भगवान विष्णु के साथ ही माता लक्ष्मी की पूजा भी करें। एकादशी व्रत के उपवास कर्ता द्वारा जल से भरा घट का दान, स्वर्ण दान, धेनू दान, पंखा दान, शकरा दान और अन्न-वस्त्र आदि का दान करना श्रेयस्कर होता है। एकादशी व्रत रखने से व्यक्ति निरोगी रहता है, राक्षस, भूत-पिशाच आदि योनि से छुटकारा पाता है, सभी पापों का नाश होता है, संकटों से मुक्ति मिलती है, सर्वकार्य सिद्ध और सौभाग्य कि प्राप्ति होती है, मोक्ष मिलता है, विवाह बाॅधा समाप्त होती है। धन यश और समृद्धि प्राप्त होती है, मन को शांति तथा मोह-माया और बंधनों से मुक्ति मिलती है, मनवांक्षित मनोरथ कार्य पूर्ण होते हैं,खुशियां तथा सिद्धि कि प्राप्त होती है। उपद्रव शांत और दरिद्रता दूर होती है, खोया हुआ सब कुछ फिर से प्राप्त हो जाता है तथा पितरों को अधोगति से मुक्ति मिलती तथा भाग्य जागृत होता है एवं ऐश्वर्य एवं पुत्र रत्न कि प्राप्ति होती है। शत्रुओं व सभी रोगों का नाश होता है, कीर्ति और प्रसिद्धि मिलती है, निर्जला एकादशी व्रत से ही वाजपेय और अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है।
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