गोरखपुर। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर महायोगी गुरु गोरक्षनाथ योग संस्थान गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर के द्वारा आयोजित ऑनलाइन साप्ताहिक योग शिविर एवं शैक्षिक कार्यशाला के द्वितीय दिवस में 'महायोगी गुरु गोरखनाथ जी के हठ योग की चिकित्सकीय उपयोगिता' इस विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में कटक उड़ीसा के नाथ योगी महन्त शिवनाथ जी महाराज ने कहा कि महायोगी गुरु गोरखनाथ जी ने हठयोग के द्वारा सभी संसार के मनुष्यों को निरोगी काया प्रदान करने का मार्ग बताया है। हठयोग में बताए गए सभी प्रकार की क्रियाएं अलग-अलग रोगों के सन्दर्भ में अपना महत्व रखती हैं। उनमें से कुछ ऐसी क्रियाएं भी हैं जिनका प्रयोग सभी प्रकार के रोगों की चिकित्सा में किया जाता है।
उन्होंने कहा कि किसी भी व्यक्ति को कोई भी यौगिक क्रियाएं आसन-प्राणायाम इत्यादि करने से पूर्व शरीरशुद्धि, मनशुद्धि तथा नाड़ी शोधन की विशेष आवश्यकता होती है। मनुष्य के शरीर में 72000 नाडियां कार्य करती हैं। उन सभी नाड़ियों का अनुलोम विलोम तथा स्वास-प्रश्वास के नियमित प्रयोग के द्वारा तीन महीनों में शोधन करके किसी भी रोग से मुक्ति पायी जा सकती है।
हठयोग के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन करते हुए उन्होंने कहा की हठयोग में नाड़ी-शोधन, आसन, षट्कर्म, मुद्रा, महामुद्रा और प्राणायाम का अभ्यास तथा नादानुसंधान का क्रम होता है। योगी इन सभी क्रियाओं को एक सद्गुरु के माध्यम से सीखता है और इन क्रियाओं से होने वाले लाभ को न केवल स्वयं के लिए अपितु सम्पूर्ण समाज के कल्याण के लिए जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करता है।
हठयोग प्रदीपिका में वर्णित एक श्लोक का उद्धरण देते हुए उन्होंने कहा कि 84 आसनों में से साधक को सदा सिद्धासन का हीं अभ्यास करना चाहिए । सिद्धासन से शरीर की 72000 नाड़ियों का मैल साफ हो जाता है जिससे साधक योग मार्ग में सफलता और सिद्धि को प्राप्त कर लेता है।
उन्होंने मत्स्येंद्रासन, शवासन, पद्मासन, गोरक्षासन, गोमुखासन, बद्धपद्मासन, सिंहासन, भद्रासन इत्यादि अनेक आसनों के बारे में जानकारी देते हुए उनके चिकित्सकीय उपयोगिताओं का वर्णन किया।
मुद्राओं एवं महामुद्राओं का लाभ बताते हुए उन्होंने कहा कि मुद्राओं से अनेकों रोगों का निदान किया जाता है जिसमें खेचरी मुद्रा सर्वश्रेष्ठ मुद्रा बताई गई है, जिसके द्वारा रोग-व्याधि के साथ ही मरण पर भी विजय प्राप्त किया जा सकता है। मुद्रा और बंध के विधिवत प्रयोग से शरीर के सभी अंगों को स्वस्थ व सुदृढ़ बनाया जा सकता है।
हठयोग में गुरु गोरखनाथ जी के द्वारा वर्णित आठ प्रकार के प्राणायामों पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने बताया की सभी प्रकार के प्राणायाम में वायु की गति पर साधक को विशेष ध्यान देना चाहिए। प्राणायाम में पूरक, कुंभक और रेचक के बीच में 1:4 :2 का अनुपात होना चाहिए। तथा पूरक और रेचक करते समय वायु की गति इतनी धीमी होनी चाहिए की नाक के सामने रखी रुई भी वायु से न हिले।
प्राणायाम से होने वाले लाभों की चर्चा करते हुए महन्त जी ने कहा की प्राणायाम न केवल मनुष्य ही करते हैं अपितु सभी जीव-जन्तु, पशु-पक्षी भी प्राणायाम का अभ्यास करते हैं और उनके श्वास प्रश्वास के द्वारा ही उनकी आयु का निर्धारण भी होता है। कछुआ, सांप, हाथी, मनुष्य, घोड़ा, बिल्ली, बंदर, कबूतर, खरगोश इत्यादि सभी जीव अपने प्राणायाम के द्वारा अपनी आयु को पूरा करते हैं। हम सभी साधकों को चाहिए कि हम अपने प्राण की गति पर ध्यान दें और प्राण के नियमन के द्वारा अपनी जीवनी शक्ति को मजबूत करें और रोग रहित होकर के 100 वर्ष या उससे अधिक जीने का प्रयास करें। बूधवार दितीय दिवस के प्रातः काल में 6 बजे 7 बजे तक योगाचार्य शुभम द्विवेदी ने योगासन व प्राणायाम का आनलाइन अभ्यास कराया।
इसी के साथ आज दोपहर बाद अपराह्ण ४ बजे से शैक्षिक कार्यशाला का भी प्रारम्भ हुआ, जिसमें महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद् की निर्धारित संस्थाओं ने प्रतिभाग किया। कार्यशाला में प्रास्ताविकी महाराणा प्रताप पी जी कालेज के प्राचार्य डॉ॰ प्रदीप कुमार राव ने किया तथा तथा समस्त कार्यक्रमों का सञ्चालन व आभार ज्ञापन कार्यशाला प्रभारी व श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के प्राचार्य डॉ॰ अरविन्द कुमार चतुर्वेदी ने किया।
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