अपरा एकादशी व्रत से मिलती है ब्रह्म हत्या जैसे पापों से मुक्ति

पंडित देवेंद्र मिश्र के अनुसार अपरा एकादशी व्रत 6 जून रविवार को है। यह एकादशी अजला और अपरा दो नामों से जानी जाती है। इस दिन भगवान त्रिविक्रम की पूजा का विधान है। अपरा एकादशी का एक अर्थ यह कि इस एकादशी का पुण्य अपार है। इस दिन व्रत करने से कीर्ति, पुण्य और धन की वृद्धि होती है। वहीं मनुष्य को ब्रह्म हत्या, परनिंदा और प्रेत योनि जैसे पापों से मुक्ति मिलती है।


अपरा एकादशी से एक दिन पूर्व यानि दशमी के दिन शाम को सूर्यास्त के बाद भोजन नहीं करना चाहिए। रात्रि में भगवान का ध्यान करते हुए सोना चाहिए।

एकादशी के दिन प्रात:काल स्नान के बाद भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। पूजन में तुलसी, चंदन, गंगाजल और फल का प्रसाद अर्पित करना चाहिए।

 व्रत रखने वाले व्यक्ति को इस दिन छल-कपट, बुराई और झूठ नहीं बोलना चाहिए। इस दिन चावल खाने की भी मनाही होती है। विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए। एकादशी पर जो व्यक्ति विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करता है उस पर भगवान विष्णु की विशेष कृपा होती है।


अपरा एकादशी व्रत का महत्व

पुराणों में अपरा एकादशी का बड़ा महत्व बताया गया है। धार्मिक मान्यता के अनुसार जो फल गंगा तट पर पितरों को पिंडदान करने से प्राप्त होता है, वही अपरा एकादशी का व्रत करने से प्राप्त होता है। जो फल कुंभ में केदारनाथ के दर्शन या बद्रीनाथ के दर्शन, सूर्यग्रहण में स्वर्णदान करने से फल मिलता है, वही फल अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से मिलता है।,,, पं देवेन्द्र प्रताप मिश्र अखिल भारतीय विद्वत् महासभा गोरखपुर।

Comments