भारत का जीवन दर्शन है योग : प्रो. कृष्णकान्त शर्मा


गोरखपुर, 20 जून। अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में महायोगी गुरु गोरक्षनाथ योग संस्थान एवं श्री गोरखनाथ मंदिर गोरखपुर की तरफ से आयोजित ऑनलाइन साप्ताहिक योग शिविर एवं शैक्षिक कार्यशाला के छठे दिन 'कोरोना महामारी के परिपेक्ष्य में योग' इस विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित काशी हिंदू विश्वविद्यालय वाराणसी के संस्कृत विद्या धर्म विज्ञान संकाय के पूर्व संकायाध्यक्ष प्रो. कृष्णकांत शर्मा ने कहा कि योग आज इस कोरोना काल में न केवल भारत में ही अपितु वैश्विक स्तर पर जिस प्रकार से जीवन रक्षक के रूप में स्वीकृत हुआ है वह हम सभी के लिए गौरव की बात है। प्राचीन काल से हमारे ऋषियों महर्षयों ने योग को जीवन दर्शन के रूप में स्थापित किया है। 

इसी क्रम में महायोगी गुरु गोरखनाथ ने हठयोग की परिकल्पना के माध्यम से भारतीय समाज के सामान्य जन से लेकर मुमुक्षु साधकों तक के लिए सहज और सरल मार्ग के रूप में योग को स्थापित किया।

हठयोग प्रदीपिका की बात का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि मनुष्य का शरीर कच्चे घड़े के समान होता है उसको योग रूपी अग्नि से पका कर साधना के अनुकूल बनाया जाता है। शरीर को साधना के अनुकूल बनाने के लिए सबसे पूर्व में षट्कर्मों के माध्यम से शरीर का शोधन किया जाता है। योग आसनों के अभ्यास से शरीर को स्वस्थ किया जाता है और मुद्राओं के द्वारा मन को स्थिर किया जाता है। प्राणायाम से प्राण स्थिर होता है तथा ध्यान और धारणा से कुंडलिनी जागृत होती है।

उन्होंने धौती आदि षट्कर्मों का विवेचन करते हुए कहा कि धौती शरीर को शोधन करने की क्रिया है जो चार प्रकार की होती है। उसको विधिवत करने से नाड़ियां निर्मल होती हैं। योगी को गुल्म, प्लीहा इत्यादि से संबंधित रोगों से मुक्ति मिलती है। तथा योगी दिव्य दृष्टि को प्राप्त करता है।

त्राटक क्रिया की विशेषता बताते हुए उन्होंने कहा की ब्लैक फंगस इत्यादि जो विषाणु जनित आंख के रोगों से बचने के लिए त्राटक क्रिया करना अत्यंत लाभदायक है । कपालभाति क्रिया कफ दोष को दूर करके फेफड़ों को शोधित करके ऑक्सीजन को सामान्य बनाता है तथा फेफड़े में ऑक्सीजन धारण करने की क्षमता बढ़ाता है।

उन्होंने कहा कि आसन हठयोग का प्रथम अंग है। आसन शरीर में स्थिरता लाता है साथ ही आरोग्य भी प्रदान करता है तथा शरीर को सुदृण व लघु बनाता है, इसके द्वारा शरीर में रजोगुण तथा तमोगुण का नाश होता है जिसके माध्यम से शरीर में धैर्य आता है जो कोरोना जैसी महामारी में अत्यंत आवश्यक है।

उन्होंने सिद्धासन, पद्मासन, भद्रासन, पश्चिमोत्तानासन इत्यादि अनेक आसनों का उल्लेख करते हुए उनके लाभ व कोरोना में उसकी उपादेयता को बताया।      

प्राणायाम की विवेचना करते हुए प्रोफेसर शर्मा ने कहा की प्राण अर्थात, ऑक्सीजन तथा आयाम अर्थात विस्तार होता है। अर्थात शरीर में ऑक्सीजन की मात्रा का विस्तार करने के लिए प्राणायाम अत्यंत आवश्यक है। कोरोना काल में ऑक्सीजन के लिए जिस प्रकार से हाहाकार मचा हुआ था,वह ऑक्सीजन हमारे पास ही है उसको प्राणायाम के द्वारा विस्तार करके स्वास रक्षण किया जाता है और उससे जीवन का रक्षण होता है।

 10 मुद्राओं का विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि मुद्राएं जरा मरण जैसी समस्याओं से बचाती हैं, जिसमें खेचरी मुद्रा के द्वारा शरीर में स्थित विष का नाश होता है, कोरोना भी एक प्रकार का विषाणु है इसलिए इसको नष्ट करने के लिए यह अत्यंत लाभकारी है।

अंत में उन्होंने कहा कि संपूर्ण योग साधना की प्रक्रिया में मिताहार या आहार शुद्धि अत्यंत आवश्यक है। आहार शुद्धि के बिना साधक 

साधना की प्रक्रिया में आगे बढ़ता है तो अनेक रोगों से घिर जाता है और योग मार्ग में असफल हो जाता है।

योग शिविर में प्रतिदिन की भांति योगाचार्य श्री शुभम द्विवेदी ने प्रातः 6 से 7 बजे तक ऑनलाइन माध्यम से योग व प्राणायाम का अभ्यास कराया तथा सायं 6:00 से 7:00 तक योगासन व ध्यान की क्रिया का अभ्यास कराया।

कार्यक्रम का संचालन व आभारज्ञापन श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के दर्शन विभाग के आचार्य डॉ॰ प्रांगेश कुमार मिश्र ने किया।

कार्यक्रम का सजीव प्रसारण जूम एप के साथ हीं गोरखनाथ मंदिर के फेसबुक पेज, यूट्यूब और ट्विटर अकाउंट पर हुआ, जिसमें महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के विभिन्न प्राचार्य व आचार्यगण के सहित अनेक श्रोतागण व प्रशिक्षु उपस्थित रहे।

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