नाथपन्थ ने योग-परम्परा को जन-जन तक पहुँचाया- प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल

 

गोरखपुर। अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस के उपलक्ष्य में महायोगी गुरु गोरक्षनाथ योग संस्थान एवं गोरखनाथ मन्दिर गोरखपुर की तरफ से आयोजित आनलाइन साप्ताहिक योग शिविर एवं शैक्षिक कार्यशाला के चतुर्थ दिवसीय व्याख्यान माला के क्रम में 'नाथपन्थ की योग परम्परा' इस विषय पर मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित संस्कृत एवं प्राच्यविद्या अध्ययन संस्थान जे एन यू नयी दिल्ली के संकाय प्रमुख प्रो. सन्तोष कुमार शुक्ल ने कहा कि योग विद्या सृष्टि के प्रारम्भ से हीं विद्यमान है जिसको भगवान श्रीकृष्ण से लेकर पतञ्जलि आदि  महर्षियों ने शास्त्र परम्परा में लाने का कार्य किया। किन्तु उस विद्या को सामान्य जन ग्राह्य बनाकर प्रत्येक जन-जन तक पहुँचाने का कार्य गुरु गोरखनाथ व उनके नाथ पन्थ ने किया। नाथपन्थ में योग की अत्यन्त विस्तृत परम्परा रही है, जो कि षडंग योग दर्शन के मौलिक विवेचन में अपनी सिद्धान्त पद्धति को समाज के समक्ष प्रस्तुत करते हुए समाज को भोग से योग तथा योग से मुक्ति का मार्ग बताने का महत्वपूर्ण कार्य किया है।

उन्होंने पतंजलि के अष्टांग योग का उल्लेख करते हुए कहा कि यम और नियम न केवल योग के अंग हैं, अपितु ये प्रत्येक व्यक्ति के जीवन के अंग होने चाहिए।इसीलिए महायोगी गुरु गोरखनाथ जी ने यम और नियम को स्वीकार किया है किंतु योग का अंग नहीं अपितु मनुष्य की जीवन पद्धति का अंग बताते हुए आसन आदि षड्ङ्ग को ही योगाङ्ग बताया है।

उन्होंने कहा कि गुरु गोरखनाथ जी ने गोरक्ष पद्धति में साफ कहा है कि आसनों से सभी प्रकार के रोग नष्ट होते हैं। आसन 84 प्रकार के होते हैं जिसमें 2 आसन प्रमुख है पहला सिद्धासन और दूसरा कमलासन या पद्मासन। आसन के बाद प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान व समाधि का विस्तृत विवेचन करते हुए उन्होंने कहा कि इन 6 अंगों के विधिवत अनुष्ठान से योगी न केवल निरोग व सुखी होता है अपितु मोक्ष रूपी परम पुरुषार्थ को भी प्राप्त करता है।

नाथ पंथ का वैशिष्ट्य बताते हुए उन्होंने कहा कि अन्य सभी दर्शन जीव की तीन या चार अवस्थाएं मानते हैं जबकि नाथ पंथ में जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, तुरीय और तुरीयान्त अवस्थाओं का वर्णन किया गया है पांचवी अवस्था परम पद की अवस्था होती है जिसमें योगी समाधि की अवस्था में आत्मज्योति का दर्शन करता है और उस दर्शन के बाद जीव के सभी बंधन कट जाते हैं, और वह सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाता है।

गोरखपुर का महत्व बताते हुए प्रोफेसर शुक्ल ने कहा कि संसार भर की अन्य भूमियां भोग भूमियां हैं जबकि गोरखपुर की भूमि योग भूमि है यहां से संपूर्ण संसार के कल्याण के लिए योग का संदेश दिया जाता है।     


यहां नाथ पंथ के सिद्धों की एक विशाल परंपरा रही है जोकि देश तथा विदेशों के विभिन्न क्षेत्रों में जा-जाकर योग मार्ग का उपदेश दिए हैं।

योग शिविर में प्रातःकाल व सायंकाल में अन्य दिवसों की तरह ६ बजे से ७ बजे तक योगाचार्य श्री शुभम द्विवेदी ने आनलाइन माध्यम से योगासन व प्राणायाम का अभ्यास सभी प्रशिक्षुओं को कराया। 

कार्यक्रम का सञ्चालन व आभार ज्ञापन कार्यशाला प्रभारी व श्री गोरक्षनाथ संस्कृत विद्यापीठ के प्रचार्य डॉ अरविन्द कुमार चतुर्वेदी ने किया।

कार्यक्रम का सजीव प्रसारण जूम एप के साथ हीं गोरखनाथ मन्दिर के फेसबुक पेज, यूट्यूब व ट्वीटर अकाउण्ट पर हुआ,जिसमें महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद के विभिन्न प्राचार्य व आचार्य सहित अनेक श्रोतागण  तथा प्रशिक्षु जुड़े रहे।

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