केसरी नंदन होते हुए भी वायु पुत्र क्यों कहलाते हैं महाबली हनुमान


आचार्य पंडित राम कैलाश चौबे,

पौराणिक कथाओं में हनुमान जी को भगवान शिव का अवतार माना गया है, क्योंकि बानर राज केशरी और माता अंजनी से विवाह के काफी दिनों तक जब कोई पुत्र की प्राप्ति नहीं हुई तो माता अंजनी ने भगवान शिव की घोर तपस्या कर उन्हें पुत्र के रूप में प्राप्त करने का वर मांगा था। तब भगवान शिव ने पवन देव के रूप में अपनी रौद्र शक्ति का अंश यज्ञ कुंड में अर्पित किया था और वही शक्ति अंजनी के गर्भ में प्रविष्ट हुई थी। फिर चैत्र शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को हनुमानजी का जन्म हुआ था।

हनुमान जी श्री रामायण के मुख्य पात्रों में से, प्रभु राम के अनन्य सेवक भक्त, वेदाध्यायी, राक्षस संहारी वानर देश के राजा केसरी एवं अंजनी के पुत्र हैं, यद्यपि इनके प्राकट्य के बारे में कई पौराणिक एवं अध्यात्मिक गाथाएं भी हैं। स्वयं राजा केसरी अति बलवान एवं बुद्धिमान थे, हाथियों के एक झुंड से ऋषियों की रक्षा करने पर प्रसन्न होकर आशीर्वाद स्वरूप उन्होंने उनको यह आशीर्वाद दिया था, ‘‘तुम्हारे ऐसा पुत्र होगा जो सहस्र हाथियों के समान बलशाली एवं अति विद्वान होगा।’’


भगवान विष्णु जब अपने आशीर्वाद को सत्य करने रामावतार होने को उद्यत हुए तब समस्त देवी-देवताओं को ब्रह्मा जी ने वानर रूप में भूलोक गमन करने को कहा। त्रिलोकी के नाथ भगवान शंकर भी प्रभु श्री राम को अपना सर्वस्व मानते थे, वह भी जब देवताओं का साथ देने को हुए तो मैया पार्वती को यह अच्छा न लगा, अपने स्वामी को उन्होंने स्मरण कराया, ‘‘हे नाथ आपने तो रावण को उस द्वारा अपने दस शीश सहर्ष काट कर आपको समर्पित करने पर आशीर्वाद स्वरूप उसे अजर, अमर रहने का वर दे रखा है, उस वचन का क्या होगा प्रभु?’’

 

पौराणिक गाथा अनुसार तब भोले शंकर ने कहा, ‘‘देवी, मैं अपने ईष्ट प्रभु श्रीराम की सेवा के लिए अपने ग्यारहवें अंश से हनुमान जी के रूप में अवतार लेकर अपने स्वामी की ही सेवा करूंगा।’’

 

एक बार राजा केसरी पत्नी अंजनी जब शृंगारयुक्त वन में विहार कर रही थीं तब पवन देव ने उनका स्पर्श किया, जैसे ही माता कुपित होकर शाप देने को उद्यत हुईं, वायुदेव ने अति नम्रता से निवेदन किया ‘‘मां! शिव आज्ञा से मैंने ऐसा दु:साहस किया परंतु मेरे इस स्पर्श से आपको पवन के समान द्युत गति वाला एवं महापराक्रमी तेजवान पुत्र होगा।’’

इसी पवन वेग जैसी शक्ति युक्त होने से सूर्य के साथ उनके रथ के समानांतर चलते-चलते अनन्य विद्याओं एवं ज्ञान की प्राप्ति करके अंजनी पुत्र पवन पुत्र हनुमान कहलाए।

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