पति के प्राणों की रक्षा के लिए सुहागिन महिलाएं करती वट सावित्री व्रत

सावित्री को भारतीय संस्कृति में आदर्श नारी और पतिव्रता के लिए ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। पति के प्राणों की रक्षा के लिए वे यमराज के पीछे पड़ गईं और अपने पति को जीवनदान देने के लिए विवश कर दिया।

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

हिंदू धर्म में वट सावित्री व्रत का ख़ास महत्त्व है। इस व्रत को महिलाएं बहुत श्रद्धा से रखती हैं। सावित्री को भारतीय संस्कृति में आदर्श नारी और पतिव्रता के लिए ऐतिहासिक चरित्र माना जाता है। पति के प्राणों की रक्षा के लिए वे यमराज के पीछे पड़ गईं और अपने पति को जीवनदान देने के लिए विवश कर दिया। इस वजह से हर वर्ष ज्येष्ठ अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत रखा जाता है। वट वृक्ष का पूजन और सावित्री-सत्यवान की कथा का स्मरण करने का विधान है। हिंदू विवाहित महिलाएं अपने पति की लम्बी उम्र और संतान प्राप्ति के लिए वट सावित्री व्रत रखती हैं। पौराणिक कथा के अनुसार सावित्री देवी ने अपने पति सत्यवान की आत्मा को अपने तपोबल से यमराज से वापस ले लिया था। वट सावित्री व्रत की पूजा बहुत ही विधि विधान से की जाती है। इस पूजा के लिए इन चीजों की जरूरत होती है इसके बिना पूजा अधूरी रहती है। आइए जानते हैं वट सावित्री व्रत के बारे में।

कहां और कब मनाते हैं

उत्तर भारत जैसे पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं उड़ीसा में वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ अमावस्‍या को मनाया जाता है। जबकि महाराष्ट्र, गुजरात और दक्षिणी भारतीय राज्यों में विवाहित महिलाएं उत्तर भारतीयों की तुलना में 15 दिन बाद अर्थात् ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को समान रीति से वट सावित्री व्रत रखती हैं।

व्रत का महत्व

सावित्री व्रत कथा के अनुसार, वट वृक्ष के नीचे ही उनके सास-ससुर को दिव्य ज्योति, छिना हुआ राज्य तथा उनके मृत पति के शरीर में प्राण वापस आए थे। पुराणों के अनुसार, वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु व महेश तीनों देवताओं का वास है। इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा सुनने से सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था। अतः वट वृक्ष को ज्ञान, निर्वाण व दीर्घायु का पूरक माना गया है।


वट सावित्री व्रत के दिन करें ये काम

पंडित देवेंद्र कुमार मिश्र के अनुसार महिलाएं व्रत-पूजन कर कथा कर्म के साथ-साथ वट वृक्ष के आसपास सूत के धागे परिक्रमा के दौरान लपेटती हैं, जिसे रक्षा कहा जाता है। साथ ही पूजन के बाद अपने पति को रोली और अक्षत् लगाकर चरणस्पर्श कर प्रसाद वितरित करती हैं। अतः पतिव्रता सावित्री के अनुरूप ही, अपने सास-ससुर की भी उचित पूजा और सम्मान करें।

वट सावित्री व्रत, इन 5 चीजों के बिना अधूरी रहेगी पूजा

वट सावित्री व्रत आज यानी 10 जून को है। यह व्रत सुहागिन महिलायें अखंड सौभाग्य वती होने और पति की लंबी आयु के लिए रखती है। पर क्या आप जानती हैं कि इस पूजा में ये 5 चीजें बहुत ही महत्त्वपूर्ण होती है जिनके बिना व्रत और पूजा अधूरी रहती है।

वट वृक्ष: 

वट सावित्री वृक्ष पूजा के लिए बरगद का वृक्ष बहुत जरूरी है। पौराणिक कथाओं के अनुसार वट वृक्ष ने अपनी जटाओं से सावित्री के पति सत्यवान की मृत शरीर को घेर रखा था। ताकि जंगली जानवर उनके शरीर को कोई नुकसान न पहुंचा पायें। इसी लिए वट वृक्ष की पूजा की जाती है।

चना: 

पौराणिक कथाओं के अनुसार, यमराज ने सावित्री को उनके पति की आत्मा को चने के रूप में लौटाया था। इस लिए इस व्रत पूजा में प्रसाद के रूप में चना रखा जाता है।

कच्चा सूत:

मान्यता है कि सावित्री ने वट वृक्ष में कच्चा सूत बांधकर अपने पति की शरीर को सुरक्षित रखने की प्रार्थना की थी। इस लिए व्रत में कच्चा सूत आवश्यक है।

सिंदूर: 

हिंदू धर्म में सिंदूर को सुहाग का प्रतीक माना गया है। सुहागिन महिलायें सिंदूर को वट वृक्ष में लगाती हैं। उसके बाद उसी सिंदूर से महिलाएं अपनी मांग भरकर अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र का वरदान मांगती हैं।


बांस का पंखा {बेना}

ज्येष्ठ में बहुत गर्मी होती है. वट वृक्ष को अपना पति मानकर महिलाएं उसे बांस के पंखे से हवा देती हैं। मान्यता है कि सत्यवान लकड़ी काटते समय अचेत अवस्था में गिरे थे तो सावित्री ने उन्हें बांस के पंखे से हवा झला था। इसी लिए इस व्रत में बांस के पंखे की जरूरत होती है।

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