भगवान जगन्नाथ का रथ यात्रा 12 को, जाने, रथ में कौन भगवान हैं विराजते



आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने बताया कि आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को भगवान जगन्नाथ का रथ यात्रा उत्सव मनाया जाता है। जो इस बार 12 जुलाई सोमवार को यात्रा निकाली जाएगी। रथ यात्रा की लंबी तैयारी बहुत पहले से ही चलती है। पूरी की रथयात्रा महोत्सव वहां का सबसे बड़ा उत्सव माना जाता है भगवान जगन्नाथ का रथ 65 फुट लंबा और 45 फुट ऊंचा है। रथ में कुल सात फिट व्यास के 16 पहिए लगे रहते हैं। खींचने में पहले राजा (स्थानीय नरेश) स्वयं हाथ बढ़ाते हैं, फिर स्थाई रूप से नियत 4200 मजदूर रथ को खींचकर आगे ले जाने में लग जाते हैं। इन 4200 लोगों के भरण पोषण के लिए राज्य की ओर से जमीन दी गई है। इसके अलावा श्रद्धालु दर्शनार्थी भी अपनी श्रद्धा एवं भक्ति का परिचय देते हुए रथ खींचते हैं। रथ यात्रा में 3 रथ होते हैं। भगवान जगन्नाथ जी का रथ सबसे बड़ा है तीनों रथ साथ ही खींचे जाते हैं। तीनों रथों को एक डोरी में मैं बांध कर पहले राजा स्वयं आगे खींचते हैं।जब बालू वाले भूखंड में पहुंचता है तो गंतव्य स्थान तक पहुंचने में कई घंटे लग जाते हैं। मंदिर से चलकर जनकपुर (गंतव्य स्थान) पहुंचता है ।जनकपुर और मंदिर की दूरी बहुत अधिक नहीं है। परंतु बालू वाले भूखंड के कारण बृहद् आकार का रथ बहुत परिश्रम से आगे बढ़ता है इसी कारण ज्यादा समय लगता है चौथे दिन एक साथ भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन लक्ष्मी जी करती हैं। इस उत्सव को विशेष रुप से सज धज कर मनाया जाता है आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन रथ मंदिर में आ जाता है। मंदिर में वापस आने पर मूर्तियां यथा स्थान रख दी जाती हैं। उस समय भी विशेष रूप से उत्सव मनाया जाता है।

इन लोगों ने ब्रह्मा जी से पृथ्वी पर नीलांचल में तीनों मूर्तियों की स्थापना करने का निवेदन किया। राजा ने यह भी बताया कि स्थापना निमित्त समूह संपूर्ण सामग्री तैयार है ।ब्रह्मा जी ने सर्वप्रथम मूर्तियों की स्थापना की बात मान ली। ब्राह्मा जी ने यह भी कहा कि आप लोग पृथ्वी पर से जब चले तब से मेरे हिसाब से बहुत समय व्यतीत हो चुका है। सामग्री भी नष्ट हो चुकी है। आप धरा पर चलें और पुनः नई सामग्री तैयार करें। मैं अभी आता हूं। पृथ्वी पर पहुंचकर नारद जी की सहायता से पुनः स्थापना की सामग्री तैयार हुई और ब्राह्मण जी भी समय से पधारे। तब राजा इंद्रद्युम्न नारद जी के साथ ब्रह्मा जी के धाम की यात्रा पर चले थे और उससे फिर वापस हुए थे सबसे पर्याप्त दिन व्यतीत हो चुका था। इस अवधि में महाराज मालवा ने अपने ही जगन्नाथ जी की पूजा अर्चना की और  राजा इंद्रद्युम्न ने पुनः जगन्नाथ मंदिर का निर्माण करवाया ।उस विशाल मंदिर में भगवान श्री कृष्ण बलराम जी और सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की गई। वह मंदिर बहुत दिनों तक विद्यमान रहा। उस मंदिर के जीर्ण भीड़ होने पर महाराज अनंगदेव ने उन्हें वर्तमान मंदिर का निर्माण करवाया ।यह मंदिर जब अपनी जनता में पहुंच चुका  चुका है। जगन्नाथ मंदिर अब तो राष्ट्र की संपत्ति है अतः भारत सरकार ही इस मंदिर के जीर्णोद्धार कराने में सक्षम है।
रथयात्रा महोत्सव में भारत के कोने कोने से तीर्थयात्री जगन्नाथपुरी पहुंचते हैं। उस समय पुरी में बहुत भीड़ एकत्र हो जाती है। ठीक वैसे ही जैसे कुम्भ के अवसर पर प्रयाग नगरी में भीड़ इकट्ठी होती है यात्रियों के लिए स्थान नहीं मिल पाता है धर्मशालाएं हैं किन्तु मैदान की कमी है।आषाढ़ शुक्ल एकादशी को भगवान जगन्नाथ जी को शयन कराया जाता है और कार्तिक शुक्ल एकादशी को भगवान को जगाया जाता है। भगवान के शयन और जागरण के बीच कई तिथियों में उत्सव चलते रहते हैं।श्रावण शुक्ल एकादशी को भगवान को झूलनोत्सव और भाद्र कृष्ण अष्टमी को भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव मनाया जाता है। पौष पूर्णिमा को भगवान के मन्दिर में पुण्याभिषेक किया जाता है। वैशाख पूर्णिमा के दिन चंदन यात्रा होती है।भगवान जगन्नाथ चल प्रतिमा को उठाकर चंदन यात्रा कराई जाती है। जगन्नाथ पुरी पहुंचने पर दर्शनार्थी समुद्र का स्नान करते हैं। जगन्नाथपुरी में समुद्र स्नान भी अपना विशेष महत्व रखता है।प्रातः काल सूर्योदय का दृश्य बहुत ही मनोरम होता है प्रतीत होता है कि भगवान सूर्य देव मध्य समुद्र से शनः-शनैः निकल रहे हैं।

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