महा पापों को नष्ट करती है योगिनी एकादशी व्रत

महा औदायिक योग में योगिनी एकादशी 5 जुलाई दिन सोमवार को  

त्वचा और कुष्ठादि रोग निवारण में योगिनी एकादशी व्रत की अहम भूमिका

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

गोरखपुर। योगिनी एकादशी व्रत 5 जुलाई दिन सोमवार को है। इस दिन सूर्योदय 5 बजकर 14 मिनट और एकादशी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन और रात्रि 10 बजकर 42 मिनट पर्यन्त। इसी प्रकार भरणी नक्षत्र और चर नामक महा औदायिक योग भी है। चन्द्रमा की स्थिति उच्चरोही मेष राशिगत होने से सुख सम्पन्नता की अभिवृद्धि हेतु प्रशस्त दावस है। इसी दिन योगिनी एकादशी का व्रत सम्पन्न किया जायेगा।

माहात्म्य

इस एकादशी व्रत का व्रत संसार रूपी समुद्र में डूबने वालो के लिए एक जहाज के समान और सब प्रकार के पापों का नाश कर मुक्ति प्रदान करने वाला है। इसके प्रभाव से गोहत्या और पीपल के वृक्ष को काटने जैसे महापाप भी नष्ट हो जाते हैं। व्रती भक्त का भयंकर कुष्ट रोग व्रत के प्रभाव से दूर हो जाता है। हजारों ब्राह्मणों को भोजन कराने का जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से मिलता है। व्रती के समस्त मनोरथों को पूर्ण करने और मोक्ष प्राप्ति के लिए भी यह व्रत फलदायी है।

व्रत कथा

इस व्रत की कथा का उल्लेख पद्मपुराण में इस प्रकार किया गया है --प्राचीन काल में यक्षों की नगरी अलकापुरी में हेम नाम का एक माली रहता था।माली अपने स्वामी कुबेर की आज्ञानुसार प्रतिदिन मानसरोवर से पुष्प लाता था,जिन्हे कुबेर जी भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए अपने पूजा में प्रयोग करते थे।।माली हेम की विशालाक्षी नाम की सुन्दर स्त्री थी एक दिन वह मानसरोवर से पुष्प तो ले आया किन्तु कामासक्त होने के कारण अपनी स्त्री के साथ रमण करने लगा और कुबेर के पास नही पहुंचा।इस पर कुबेर नाराज हो गये और हेम को शापित किये कि तूॅ स्त्री वियोग भोगेगा और मृत्यु लोक मे जाकर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जायेगा।शाप के कारण उसी समय से उसका शरीर कुष्ठ रोग से गलने लगा।वह कोढ़ी हो गया और इधर उधर भटकने लगा।एक दिन महर्षि मारकण्डेय के आश्रम में जा पहुंचा।उसकी ऐसी स्थिति देखकर मारकण्डेय महर्षि द्रवित हो गये।हेम ने अपना दोष और कुबेर जी के शाप की बात बताई तो मारकण्डेय को उस पर दया आ गई उन्होंने कहा-"चूंकि तुमने मेरे समक्ष सत्य बोला है,इसलिए मैं तुम्हारे उद्धार के लिए एक व्रत बताता हूॅ।यदि तूं आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की योगिनी एकादशी व्रत का विधिपूर्वक पालन करेगा,तो तेरे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे और तूं पहले की भाॅति रूपवान हो जायेगा।महर्षि मारकण्डेय के सुभाषित वचन को सुनकर हेम माली ने योगिनी एकादशी का व्रत किया।व्रत का प्रभाव इतना प्रबल था कि इस व्रत के अनन्तर अगले ही दिन वह दिव्य शरीर वाला बन गया।तभी से योगिनी व्रत रखने की परिपाटी चली आ रही है।पौराणिक शास्त्रों मे श्रीकृष्ण ने कहा है कि योगिनी एकादशी व्रत की कथा का फल 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के बराबर है।इस व्रत के प्रभाव से सभी पाप नष्ट हो जाते हैं और अन्त में प्राणी स्वर्ग और मोक्ष का अधिकारी बनता है।

पूजन विधि 

यह व्रत आषाढ़ मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है।इस दिन प्रातःकाल दैनिक कर्मों से निवृत्त होकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।भगवान विष्णु की प्रतिमा का गंगाजल से स्नान कराने के बाद चन्दन,रोली,धूप ,दीप ,पुष्प से पूजन कर ,आरती करें ।इस व्रत में लाल चन्दन और लाल गुलाब के पुष्पों के फूलों की माला का उपयोग करने का अधिक महत्व बताया गया है।मिष्ठान्न,नैवेद्य,फल में पांच प्रकार के मेवों का भोग लगाकर प्रसाद को भक्तों भे वितरण करें।पूजन के बाद याचकों और ब्राह्मणों को यथा शक्ति दान दक्षिणा भी दें।अगले दिन सूर्योदय के समय अपने इष्ट देव को भोग लगाकर ,दीप जलाकर और प्रसाद का वितरण कर व्रत का पारण करें।

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