यमराज को भी मात देता है शिव की आराधना-उपासना


आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

सावन का महीना अनेक पौराणिक कहानियों से सम्बद्ध रखता है। सावन का महीना सर्वोत्तम मास के नाम से विख्यात है। कहा जाता है इस महिने मे मृकण्डु ॠषि के पुत्र मारकण्डेय जी ने दीर्घायु होने के लिए घनघोर तपस्या की थी। भगवान शिव की कृपा प्राप्त कर दीर्घायु हो गए थे। उन्होंने ऐसी शक्ति प्राप्त कर ली थी कि मृत्यु के देवता यमराज भी उनके सामने नतमस्तक हो गए थे। एक अन्य कथा के अनुसार इस महीने में भगवान शिव पृथ्वी पर आते हैं, तथा अपने ससुराल राजा हिमाचल के यहां गमन  करते है और यह भी कहा जाता है कि सावन के महीना में भगवान शिव का निवास पृथ्वी पर होता है। पृथ्वी पर रहने वाले समस्त भक्तजन उनकी कृपा प्राप्त करने के लिए  जलाभिषेक से उनका अभिषेक करते हैं। इसी महीने में समुद्र मंथन की हुआ था। समुद्र मंथन से हलाहल विष निकला था। उसे भगवान शिव ने संसार के कल्याण के लिए स्वयं पान कर लिया था। इसलिए उनका कंठ नीला हो गया था और वे नीलकंठ के नाम से विख्यात हुए। विष के प्रभाव को कम करने के लिए सभी देवताओं ने बिल्वपत्र और जल चढ़ाकर उनके ताप को कम किया था। यही कारण है कि सावन के महीने में भगवान शिव का जलाभिषेक कर उनकी कृपा प्राप्त की जाती है। शिव का एक नाम जल है। इसलिए जल  उनके स्वागत के लिए सर्वोत्तम वस्तु है। कहा जाता है इस महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा में चले जाते हैं यह तपस्वियो के तपस्या करने का सर्वोत्तम समय है। इस महीने में भगवान विष्णु के स्थान पर  भगवान शिव ही समस्त संसार का संचालन करते हैं। इसलिए सावन के महीने के प्रधान देवता भगवान शिव माने गए हैं। तभी जलाभिषेक की प्रथा चली आ रही है।

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