श्रावण के महिने में रूद्राभिषेक से अनेकों लाभ

भगवान शिव की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए बेलपत्र और धतूर चढ़ाएं। दूध इन्हें अत्यन्त प्रिय है।अतः शिव की अर्चना में दूध का प्रयोग अवश्य करें। दुग्ध से रूद्राभिषेक से सभी कामनाएं पूर्ण होती है।

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

वैदिक परम्परा के अनुसार रूद्राभिषेक का मानव जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। रूद्राभिषेक से मन शुद्ध और सत्वगुणी होता है।संकल्प शक्ति मे वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त ज्ञानशक्ति, विचारशक्ति, श्रद्धा, भक्ति और पवित्रता मे भी वृद्धि होती है। धन लाभ और आरोग्यता का क्रम प्राप्त होता है। धर्मशास्त्र में कहा गया है कि वेद शिव है और शिव वेद हैं। इसलिए वेदमन्त्रों द्वारा भगवान आशुतोष का पूजन अभिषेक किया जाता है।जैसे ब्रह्म सभी पदार्थों मे व्याप्त है।वैसे ही भगवान रूद्र (शिव) अग्नि, जल, ओषधि, वनस्पति आदि सभी पदार्थो मे समाहित हैं। समस्त ब्रह्माण्ड को वह अपनी शक्ति से सामर्थ्यवान बनाते है। इसलिए उनका नाम रूद्र पड़ा है। श्वेताश्वरोपनिषद् मे कहा गया है कि- "एको हि रूद्रो न द्वितीयाथ तस्थुः"-अर्थात ब्रह्माण्ड में केवल एक रूद्र की ही सत्ता है ,किसी दूसरे की नही। 

रूद्राभिषेक के लिए पदार्थ

जल से वर्षा, कुशा के जल से शान्ति, दधि से पशु प्राप्ति, मधु और घी से धन, तीर्थजल से मोक्ष, दुग्ध से शिघ्र सन्तति प्राप्ति,प्रमेह रोग की शान्ति और मनोवांछित फलों की प्राप्ति, शर्करा मिले दूध से रूद्राभिषेक करने से जड़ बुद्धि निर्मल होता है।सरसो के तेल से करने पर विरोधियों का प्रभाव न्यून होता है। जिस ग्रह की जो समिधा है उसको मिलाकर कर अभिषेक करने से उस ग्रह का प्रकोप समाप्त होता है। रूद्रभिषेक से संक्रामक रोगो का नाश, शारीरिक समस्त दोषो का नाश, सर्वविध अमंगलों का नाश, पैशाचिक कष्टों से निवृति और सभी प्रकार की विघ्न बाधाएं दूर हो जाती है। रूद्राभिषेक से शत्रु भी मित्र हो जाते हैं। असाध्य कार्य भी साध्य हो जाता है और सर्वत्र विजय प्राप्त होती है। इससे अतिवृष्टि, अनावृष्टि, अकाल मृत्यु, महामारी जैसे रोग-शोकादि का भी शमन हो जाता है।

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