संस्कृति को बचाने के लिए युवाओं को रीति-रिवजो से जोड़ना जरूरी : डॉ. राम शब्द सिंह


दो लोक कला विभूतियों को "पुरवाई कला सम्मान 2001" से सम्मानित 

गोरखपुर। "पूर्वांचल की परंपरागत लोक कलाएं" एवं पुरवाई कला सम्मान 2001 से कला के क्षेत्र में अपनी अलग पहचान बनाने वाले दो लोगों सम्मानित किए गए। विजय चौक स्थित एक होटल के सभागार में सोमवार को पुरवाई कला अकादमी के संस्थापक डॉ राजीव वेतन की प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ। 

इस दौरान पुरवाई कला अकादमी की ओर से वयोवृद्ध कलाकार कृष्णा चौधरी और युवा कलाकार विनय कुमार को सम्मानित किया गया। इसके पूर्व मुख्य अतिथि राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष सीताराम कश्यप, व्यापारी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पुष्पदंत जैन, लोक कलाकार हरिप्रसाद सिंह, एवं संस्था की सचिव ममता केतन, डॉ राजीव के चित्र पर पुष्प अर्पित कर श्रद्धांजलि किया। 

अतिथियों का परिचय स्वागत कार्यक्रम संयोजक प्रेमनाथ के किया। 

विषय प्रवर्तन ममता श्रीवास्तव ने किया। वर्चुअल के माध्यम से विशिष्ट वक्ता के रूप में जेवी जैन महाविद्यालय सहारनपुर के ललित कला विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. राम शब्द सिंह ने कहा कि पूर्वांचल की लोक कलाएं विलुप्त होती जा रही हैं, उन्हें संरक्षित करने के लिए आयोजन होते रहना बहुत जरूरी है। अपनी संस्कृति को बचाने के लिए सबसे पहले युवाओं को अपने रीति रिवजो से जोड़ना होगा तथा उससे परिचित कराना होगा । 

प्रोफेसर राम शब्द सिंह इस मौके पर भूमि चित्र, गोवर्धन पूजा, नाग पंचमी आदि समेत हिंदू रीति रिवाज में बनने वाले चित्रों के रंगों, विशेषताओं और उसकी शैली के बारे में विस्तार से बताएं।

वक्ता हरिप्रसाद सिंह ने कहा कि जिस तरह से चित्र का महत्व शादी विवाह में है। उसी तरह इन आयोजनों में गायन व वाद्य यंत्रों का है। पूर्वांचल में विवाह के दौरान खिचड़ी खाने का रसम है। इस मौके पर वर पक्ष की ओर से आने वाले व्यक्तियों को गाली दी जाती है। वर्तमान में यदि किसी को अनायास गाली दी जाए तो वह मारपीट पर उतारू हो जाएगा। हमारी संस्कृति ही है जिसमें हम किसी को गाली भी दे सकते हैं।

विशिष्ट अतिथि व्यापारी कल्याण बोर्ड के उपाध्यक्ष पुष्पदंत जैन ने कहा कि डॉ केतन असीम प्रतिभा के धनी थे उनके चित्र सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करने वाले होते थे।

मुख्य अतिथि सीता राम कश्यप ने कहा कि लोक कलाएं जनमानस में गहराई से जुड़ी होती हैं। इनके माध्यम से अपनी संस्कृति एवं संस्कार अगली पीढ़ी को सौंपती है। पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में लोक कलाएं धीरे-धीरे विलुप्त होती जा रही हैं। उन्हें सहेजने की जरूरत है।

संचालन रीता देवी श्रीवास्तव ने किया। 

इस मौके पर प्रो. हर्ष सिन्हा, राकेश श्रीवास्तव, प्रो. निशा जयसवाल, वीरेंद्र गुप्ता, मिथिलेश तिवारी, आशा मिश्रा, सुजीत पांडेय , एसपी सिंह, मिथिलेश तिवारी, डॉ नवीन श्रीवास्तव, जितेंद्र सैनी, विवेक असथाना, शिवेंद्र पांडेय, हृदय त्रिपाठी, शबनम, अनुपम श्रीवास्तव, खुशबू मोदी, विनीता, मनोज, डॉ. अमित सिंह, डॉ. शिवप्रताप सिंह, मानवेंद्र त्रिपाठी, अजीत प्रताप सिंह, वैभव मणि त्रिपाठी आदि समेत शहर के अनेक गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।

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