गोरखपुर। विश्व हिंदू परिषद के धर्म प्रसार विभाग द्वारा चौरी चौरा स्थित ब्रह्मपुर के लल्लन द्विवेदी जनता इंटर कॉलेज में शुक्रवार को विश्व हिंदू परिषद का स्थापना दिवस धूमधाम के साथ मनाया गया कार्यक्रम में बतौर मुख्य वक्ता राष्ट्रीय स्वयं संघ के माननीय प्रांत प्रचारक सुभाष जी रहे। अध्यक्षता पूज्य संत चिन्मयानंद दास ने की। तथा विशिष्ट अतिथि के रूप में विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्र धर्म प्रसार प्रमुख लखनऊ क्षेत्र के प्रदीप जी, प्रसिद्ध सर्जन डॉक्टर जेपी जयसवाल, सेवानिवृत्त जज राम प्रकाश, एडवोकेट अशोक शुक्ला, आईआरएस रेलवे स्टेशन निवृत्त अधिकारी रामाधार, डीके सिंह बजरंग दल के सह प्रान्त संयोजक उपस्थित रहे।
कार्यक्रम का शुभारंभ अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन एवं पुष्पार्चन कर किया।
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रांत प्रचारक सुभाष जी ने विश्व हिंदू परिषद की जीवन यात्रा के संदर्भ में बताते हुए कहा कि कहा कि विश्व हिंदू परिषद की स्थापना को इस कृष्ण जन्माष्टमी पर 57 वर्ष पूरे हो गए। राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के प्रचारक दादासाहेब आप्टे ने समाज जीवन के विविध क्षेत्रों में कार्य करने वाली शक्तियों को एक बैठक हेतु बुलाय। यह बैठक 29 अगस्त 1964 को श्री कृष्ण जन्माष्टमी के पावन अवसर पर पवई, मुम्बई स्थित स्वामी चिन्मयानन्द के आश्रम सांदीपनि साधनालय में बुलाई गई। इसमें स्वामी चिन्मयानन्द, राष्ट्रसंत तुकडो महाराज, सिख सम्प्रदाय से मास्टर तारा सिंह, जैन सम्प्रदाय से सुशील मुनि, गीता प्रेस गोरखपुर से हनुमान प्रसाद पोद्दार, केएम मुंशी तथा गुरु गोलवलकर सहित 40-45 अन्य महानुभाव भी उपस्थित थे। इसी दिन इन महा-पुरुषों ने विश्व हिंदू परिषद के गठन की घोषणा कर दी।
इसी बैठक में 1. हिन्दू समाज को संगठित और जागृत करने, 2. उसके स्वत्वों, मानबिन्दुओं तथा जीवन मूल्यों की रक्षा और संवर्धन करने तथा; 3. विदेशस्थ हिंदुओं से संपर्क स्थापित कर उन्हें सुदृढ़ बनाने व उनकी सहायता करने सम्बन्धी विश्व हिंदू परिषद के तीन मुख्य उद्देश्य तय किए गए. हिन्दू की परिभाषा करते हुए कहा गया कि ‘जो व्यक्ति भारत में विकसित हुए जीवन मूल्यों में आस्था रखता है या जो व्यक्ति स्वयं को हिन्दू कहता है वह हिन्दू है।’
22 से 24 जनवरी 1966 को कुम्भ के अवसर पर 12 देशों के 25 हज़ार प्रतिनिधियों की सहभागिता के साथ प्रथम विश्व हिंदू सम्मेलन प्रयाग में आयोजित किया गया. 300 प्रमुख संतों की सहभागिता के साथ पहली बार प्रमुख शंकराचार्य भी एक साथ आए और धर्मांतरण पर रोक व परावर्तन (घरवापसी) का संकल्प लिया गया. मैसूर के महाराज मा० चामराज जी वाडियार को अध्यक्ष व दादासाहब आप्टे को पहले महामंत्री के रूप में घोषित कर विहिप की प्रबंध समिति की घोषणा भी हुई. इस सम्मेलन में जहां परावर्तन को मान्यता देने का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित हुआ, वहीँ विहिप के बोध वाक्य “धर्मो रक्षति रक्षितः” और बोध चिह्न “अक्षय वटवृक्ष” भी तय हुआ।
13-14 दिसम्बर 1969 के उडुपी धर्म संसद में संघ के तत्कालीन सर-संघचालक गोलवलकर के विशेष प्रयासों के परिणाम स्वरूप, भारत के प्रमुख संतों ने एकस्वर से “हिन्दव: सोदरा सर्वे, ना हिन्दू पतितो भवेत्” के उद्घोष के साथ सामाजिक समरसता का ऐतिहासिक प्रस्ताव पारित किया।
1994 में काशी में हुई धर्म संसद का निमंत्रण डोम राजा को देने पूज्य संत ना सिर्फ स्वयं चलकर गए, बल्कि उनके घर का प्रसाद ग्रहण किया तथा अगले दिन डोम राजा धर्म संसद के अधिवेशन में संतों के मध्य बैठे और संतों ने उन्हें पुष्प हार पहनाकर स्वागत किया. इस धर्म संसद में 3500 संत उपस्थित थे. वनवासी, जनजाति, अति पिछड़ी व पिछड़ी जाति के हज़ारों लोगों को ग्राम पुजारी के रूप में प्रशिक्षण देकर उनका समय समय पर अभिनन्दन व मंदिरों में पुरोहित के रूप में नियुक्ति विहिप के ग्राम पुजारी प्रशिक्षण अभियान के कारण ही संभव हुई।
9 नवम्बर 1989 में श्रीराम जन्मभूमि का शिलान्यास एक अनुसूचित जाति के कार्यकर्ता कामेश्वर चौपाल द्वारा कराए जाने के अतिरिक्त, देश भर में आयोजित समरसता यज्ञ, समरसता यात्राएं, समरसता गोष्ठियां, हिन्दू परिवार मित्र योजना, अनुसूचित जाति व जन जातियों के लिए छात्रावास इत्यादि अनेक योजनाओं व कार्यक्रमों के माध्यम से हिन्दू समाज के बीच व्याप्त छुआछूत के अभिशाप से मुक्ति हेतु अभूतपूर्व कार्य किए हैं. सन् 2003 से लगातार देशभर में भगवान वाल्मीकि, संत रविदास तथा संविधान निर्माता डॉ भीमराव अम्बेडकर इत्यादि महापुरुषों, जिन्होंने देश की समरसता में योगदान दिया, की जयन्तियां व्यापक रूप से मनाई जा रही हैं. इन सब कार्यक्रमों के परिणाम स्वरूप अब संत समाज सहज रूप से वंचित बस्तियों में प्रवास, प्रवचन व सह-भोज सहजता से करते हैं.
द्वितीय विश्व हिंदू सम्मेलन भी प्रयाग की पावन धरा पर 27 से 29 जनवरी 1979 को 18 देशों के 60 हज़ार प्रतिनिधियों की सहभागिता से सम्पन्न हुआ। इसका उदघाटन पूज्य दलाई लामा जी ने किया. उनका स्वागत ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य जी ने किया. यह भी एक ऐतिहासिक प्रसंग था. देश के वनवासी, गिरिवासी व नगरवासियों के कुम्भ के रूप में असम के जोरहाट में 27 से 29 मार्च 1970 में देश की सभी प्रमुख तीर्थों व 45 नदियों के जल से एकात्म हुए इस सम्मेलन में अनेक पूज्य संत-महात्माओं व पूर्वोत्तर के विचारकों के साथ नागारानी गाइडिन्ल्यु ने यह घोषणा की कि प्रकृति पूजक वनवासी समाज जिसे ईसाई मिशनरियां अपने चंगुल में फंसा रही हैं, हिन्दू समाज का ही अभिन्न अंग है.
1982 में अशोक सिंघल विश्व हिन्दू परिषद के पदाधिकारी बने. व्यापक जन जागरण के कार्यक्रम होने लगे. 1983 में हुई एकात्मता यात्रा में तो देश के करोड़ों लोगों ने सहभाग किया. अप्रैल 1984 में नई दिल्ली में प्रथम धर्म संसद का अधिवेशन संपन्न हुआ।
समग्र ग्राम विकास अभियान जिसे एकल अभियान के रूप में भी जानते हैं, के अंतर्गत एक पंचमुखी परियोजना से अब तक 50 लाख से अधिक बच्चे लाभान्वित हो चुके है तथा लगभग 28 लाख विद्यार्थी अभी भी शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं. उन्हें एक साथ दी जा रही प्राथमिक शिक्षा, प्राथमिक स्वास्थ्य, ग्राम विकास (गौ-पालन, जैविक कृषि, कौशल विकास), संस्कार (हरिकथा व सत्संग) व जागरण शिक्षा (ग्रामीण विकास योजनाओं की जानकारी व उनका उपयोग) के माध्यम से देश के सुदूर क्षेत्रों में बड़े परिवर्तन देखने को मिले हैं. इसी कारण 26 फरवरी 2019 को भारत के राष्ट्रपति माननीय श्री रामनाथ कोविंद एवं माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा इस एकल अभियान को “गाँधी शांति पुरस्कार-2017” द्वारा राष्ट्रपति भवन में सम्मानित किया गया।
विश्व हिंदू परिषद द्वारा समाज के सहयोग से देश भर में 85 हजार से अधिक अन्य सेवा प्रकल्प भी चलाए जा रहे हैं. इनमें से लगभग 70 हजार संस्कार केंद्र, 2272 शिक्षा केंद्र, 1752 स्वास्थ्य केन्द्र, 1494 स्वावलंबन केंद्र तथा शेष लगभग दस हजार केन्द्रों में आवासी छात्रावास, अनाथालय, चिकित्सा केंद्र, कम्प्यूटर, सिलाई, कढ़ाई प्रशिक्षण केंद्र, विवाह केंद्र, महा-विद्यालय, कॉलेज इत्यादि प्रमुख हैं।
गौ रक्षा, गौ पालन व गौ सम्वर्धन के क्षेत्र में विश्व हिन्दू परिषद् ने अनेक कार्य किए हैं. देश में 60 स्थानों पर गौवंश की देशी नस्लों का सम्वर्धन, 40 स्थानों पर पंचगव्य आधारित औषधि निर्माण केंद्र तथा तीन पंचगव्य अनुसंधान केंद्र इस समय कार्यरत हैं. 20 लाख गौवंश की कसाइयों से मुक्ति, अनेक राज्यों में गौवंश हत्या के विरुद्ध कठोर कानून की व्यवस्था और गौपालन से स्वावलंबन की ओर योजना के अन्तर्गत पांच गायों से 50 हजार मासिक की कमाई तथा गौवंश आधारित ऋण मुक्त, कृषि व रोजगार युक्त युवक की दिशा में विहिप ने मह्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
विहिप ने अवैध धर्मांतरण पर रोक तथा धर्मान्तरित हिन्दू भाई-बहिनों को अपनी जड़ों से पुन: जोड़ने की दिशा में भी बड़ा कार्य किया है. अभी तक लगभग 62 लाख हिन्दुओं के धर्मांतरण को रोकने के साथ-साथ लगभग 8.5 लाख की घरवापसी भी हुई है. अनुसूचित जाति, जन जाति, वनवासी व गिरिवासी समाज के बीच सेवा, समर्पण व स्वावलंबन के मंत्र के साथ अनेक राज्यों में छल-बल पूर्वक धर्मान्तरण के विरुद्ध कठोर दण्ड की व्यवस्था वाले कानून विहिप के सतत प्रयासों के कारण ही बन पाए हैं।
भारत धर्म यात्राओं का देश है जिसकी आत्मा तीर्थों में वास करती है. इन यात्राओं के माध्यम से ही देश, धर्म व समाज की एकता, अखण्डता और समरसता प्रतिबिम्बित होती है. बात चाहे कांवड़ यात्रा की हो या कैलाश मान सरोवर की, अमर नाथ यात्रा हो या गोवर्धन परिक्रमा, जगन्नाथ की नव कलेवर यात्रा हो या सिन्धु यात्रा, श्रीराम जानकी विवाह बारात यात्रा हो या बाबा अमरनाथ की यात्रा, इन सभी को सस्ती, सफल, सुखद, संस्कारित व आध्यात्मिक स्वरूप देने में विश्व हिन्दू परिषद् के धर्मं यात्रा महासंघ ने वर्ष 1995 से एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. शासन-प्रशासन व सम्बन्धित सरकारों के साथ अनवरत संपर्क के माध्यम से इन्हें व्यवस्थित भी किया गया है।
‘वसुधैव कुटुम्बकम’ की अवधारणा को लेकर विदेशों में बसे हिन्दू समाज की सुरक्षा, संस्कार व उनके अन्दर हिन्दू जीवन मूल्यों को जीवंत रखने हेतु विहिप ने अनेक कदम उठाए है. विश्व के किसी भी भू भाग पर रहने वाले हिन्दू की आवाज के रूप में विहिप कार्यकर्ता सदैव अग्रणी रहे हैं. इसी कारण विहिप ने अमेरिका, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, कनाडा, फिजी, न्यूजीलेंड, डेनमार्क, थाईलेंड, इंडोनेशिया, ताईवान, श्रीलंका, नीदरलैंड, सिंगापुर, नेपाल, जर्मनी इत्यादि देशों में अनेक स्थानीय व वैश्विक स्तर के सम्मेलनों का आयोजन सफलता पूर्वक किया तथा इनमें से अधिकाँश देशों में हिन्दू त्योहारों, परम्पराओं को धूमधाम से मनाया जाता है।
अपने 56 वर्षों की विकास यात्रा में विहिप ने अनेक जन जागरण अभियान चलाए जो वैश्विक कीर्तिमान बन गए. 1984 में प्रारम्भ हुए श्री राम जन्म भूमि मुक्ति आन्दोलन ने देश के 3 लाख गाँवों के 16 करोड़ लोगों को जोडा. 5 अगस्त 2020 के अयोध्या में भूमि पूजन के ऐतिहासिक दिवस को स्वर्णाक्षरों में दर्ज करा दिया. पौराणिक राम सेतु का अस्तित्व बचाने के लिए भी विहिप ने महत्वपूर्ण अभियान चलाया।
विहिप की युवा शाखा बजरंग दल तथा दुर्गा वाहिनी ने 1984 से लेकर आज तक देश-धर्म संस्कृति व राष्ट्र की रक्षार्थ सदैव अग्रणी भूमिका निभाई है. सेवा, सुरक्षा व संस्कार इनके मूल मंत्र रहे हैं. संस्कृत भाषा, वेद पाठशाला तथा संस्कारों की अभिवृद्धि हेतु भी विहिप ने अनेक कदम उठाए हैं. विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा किए गए इन विभिन्न कार्यों तथा सफल आन्दोलनों के कारण हिन्दू दर्शन आज सम्पूर्ण विश्व के केंद्र में आ चुका है. अब विश्व को लगने लगा है कि हिन्दू दर्शन ही अब विश्व कल्याण का मार्ग प्रशस्त करेगा।
कार्यक्रम में प्रस्तावना विश्व हिंदू परिषद के क्षेत्र धर्म प्रसार प्रमुख श्रीमान प्रदीप पांडे एवं संचालन श्री अमरजीत जी ने किया कार्यक्रम में मुख्य रूप से विश्व हिंदू परिषद के श्री सुरेश द्विवेदी,सुशील द्विवेदी,शशांक श्रीवास्तव,राजेश जी ,अक्षयवर द्विवेदी,प्रधानाचार्य विकास द्विवेदी, अभिषेक रञ्जन द्विवेदी, विकास दुबे(छोटू), अरविंद दुबे(सुशील), उत्कर्ष दुबे, घनश्याम शर्मा, विकास विश्वकर्मा, सुधीर गुप्ता, गौरव दुबे (कुंदन) सहित सैकड़ो लोग उपस्थित रहे।
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