‘‘बेगम अख्तर पुरस्कार‘‘ से नवाजे जाएंगे दादरा/ ठुमरी/ गजल के प्रतिभावान गायक

तलाशे जा रहें हैं दादरा/ ठुमरी/ गजल विधाओं के प्रतिभावान गायक

‘‘बेगम अख्तर पुरस्कार‘‘ का आवेदन-पत्र का अंतिम तिथि 15 अक्टूबर, 2021 तक 

गोरखपुर। उप्र संस्कृति विभाग द्वारा मल्लिका-ए-गजल बेगम अख्तर की स्मृति में दादरा/ठुमरी/गजल विधाओं में प्रतिभावान गायक, (जिसकी उम्र 40 वर्ष से अधिक हो) को वित्तीय वर्ष 2021-22 में ‘‘बेगम अख्तर पुरस्कार‘‘ से सम्मानित किया जाएगा। इसके अन्तर्गत चयनित कलाकार को 5 लाख (रू0 पाॅच लाख मात्र) की धनराशि, अंगवस्त्र एवं प्रशस्ति पत्र भेंट किया जायेगा। बेगम अख्तर पुरस्कार से सम्मानित किये जाने के सम्बन्ध में गोरखपुर मण्डल एवं जिले के पात्र नामांकन कर सकते हैं।

  ‘‘बेगम अख्तर पुरस्कार‘‘ से सम्बन्धित मार्गदर्शी सिद्धान्त सम्बन्धी शासनादेश सं0 3718/चार-2015-1(पुरस्कार)/14, दिनांक 24.08.2015 एवं आवेदन पत्र का प्रारूप राजकीय बौद्ध संग्रहालय, गोरखपुर से प्राप्त कर पूर्ण/स्पष्ट रूप से भरकर उप निदेशक, राजकीय बौद्ध संग्रहालय, रामगढ़ताल-गोरखपुर/प्रभारी, क्षेत्रीय सांस्कृतिक केन्द्र, गोरखपुर से 08 अक्टूबर, 2021 तक अग्रसारित कराते हुए अपना आवेदन को 15 अक्टूबर, 2021 तक  निदेशक, संस्कृति निदेशालय, उप्र लखनऊ को प्रेषित कर सकते हैं।


बेगम अख़्तर : जिन्होंने ग़ज़ल को कोठे से निकालकर आम लोगों तक पहुंचाया

मल्लिका-ए-ग़ज़ल बेगम अख्तर की आवाज़ का जादू ऐसा चला कि रिकॉर्ड्स कम पड़ गए और म्यूज़िक कंपनी को विदेश से नया प्लांट ही मंगवाना पड़ा

बता दें कि उनका पहला कॉन्सर्ट 1949 में नहीं होना था. पर तकदीर को कुछ और ही मंज़ूर था. बिहार में आये भूकंप पीड़ितों की सहायता के लिए एक शो किया गया था. मशहूर शहनाई वादक अमान अली खान साहब और उनके नौजवान शागिर्द (उस्ताद) बिस्मिल्लाह खान ने भी इसमें शिरकत की. शो के दूसरे हिस्से में अफ़रा तफ़री मच गई क्योंकि एक मशहूर शास्त्रीय गायक आने का वादा करके ऐन वक्त पर दगा दे गए थे. आयोजकों की भद्द न पिटे, इसके लिए पटियाला घराने के उस्ताद मोहम्मद अत्ता खान साहब ने कहा कि उनकी एक शागिर्द को आगे कर दिया जाए, फिर जो होगा अल्लाह मालिक है।

लोगों का हुजूम शोर मचा रहा था. कांपती टांगों से 20 साला अख़्तरी बाई फ़ैज़ाबादी मंच पर आईं. दर्शकों का रेला देखने के बाद उन्होंने आंखें बंद कर ख़ुदा को याद किया और जानी-मानी ग़ज़ल गायिका मुमताज़ बेग़म का कलाम उनके मुंह से निकल पड़ा।

तूने बुत-ए-हरजाई कुछ ऐसी अदा पाई

तकता है तेरी ओर हर एक तमाशाई’

ग़ज़ल पूरी हुई. लोग आवाज़ की कशिश से हैरत में पड़ गए. तालियों की गड़गड़ाहट ख़त्म होने तक वे चार ग़ज़ल गा गईं. शो तो ख़त्म हो चुका था, दास्तां अभी बाकी थी. एक महिला कार्यक्रम पूरा होने के बाद उन तक आई और कहा, ‘मैं ये तय करके आई थी कि मुझे कुछ देर ही इस कार्यक्रम में रुकना है, तुम्हें सुना तो ठहर गई.’ उस महिला ने आगे कहा, ‘अब कल तुम मुझे सुनने आना.’ ये कहकर उसने अख़्तरी बाई को खादी की साड़ी भेंट की. वह महिला कोई और नहीं, बल्कि भारत की स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू थीं!


बचपन की मुश्किलें और एंजेलिना योवर्ड का ऐलान

अख़्तरी और उनकी जुड़वां बहन अनवरी का जन्म फैज़ाबाद में हुआ था. उनकी वालिदा मुश्तरीबाई लखनऊ के नवाबों की दरबारी गायिका थीं. उनके शौहर को गाना-बजाना पसंद नहीं था. मियां-बीवी की अनबन के चलते मुश्तरीबाई बेटियों को लेकर फ़ैज़ाबाद चली आईं और संघर्ष शुरू हो गया. शौहर लखनऊ में सिविल जज थे पर फ़ैज़ाबाद में मां-बेटियों पर तंज कसे जाते. जैसे-तैसे दिन गुज़र रहे थे कि अनवरी का इंतेकाल हो गया. मां-बेटी अकेले रह गए और सामने बेदर्द ज़माना. मां अक्सर कहतीं, ‘हाय अल्लाह अब क्या होगा?’

फिर एक दिन, एंजेलिना योवर्ड, जिनकी पूरे हिंदुस्तान में धूम थी, फ़ैज़ाबाद आईं. इत्तेफ़ाक से वे उस कक्षा में गई जहां ‘बिब्बी’ उर्फ़ अख़्तरी पढ़ती थीं. किस्सा है कि बिब्बी ने योवर्ड का दामन थाम लिया और कहा, ‘आप गौहर जान हैं न?’ आप ठुमरी गातीं हैं. गौहर जान बोलीं, ‘क्या तुम भी गाती हो?’ बिब्बी ने उन्हें ख़ुसरो का कलाम ‘अम्मा मोरे भैया को भेजो सवान आया’ सुनाया. कहते हैं कि गौहर जान इसे सुनकर अवाक रह गईं. बोलीं, ‘अगर इस बच्ची को तालीम मिल गई तो ये मल्लिका-ए-ग़ज़ल बनेगी!

लंबी दास्तान कम लफ़्ज़ों में यूं है कि अख़्तरीबाई को संगीत विरसे में मिला था. उधर, मां की ख्वाहिश बेटी को पढ़ा-लिखाकर किसी अच्छे घराने में ब्याहने की थी. न चाहते हुए भी उन्होंने उसे उस्तादों की शागिर्दी में रख छोड़ा. बेटी जिद्दी और तिस पर गुरु उससे भी बड़े जिद्दी. अख़्तरी को सुगम संगीत का चाव, उस्ताद मोहम्मद अत्ता खान को उन्हें शास्त्रीय गायक बनाने की ज़िद. दोनों में ठन गई. बिब्बी ने उस्ताद की शागिर्दी छोड़ दी. पर गुरु ने तब तक वह सिखा दिया था जो उनके ज़िंदगी भर काम आने वाला था. उन्होंने ख़्याल, ठुमरी, दादरा और ग़ज़ल का फन सीख लिया था. अब उड़ने का वक़्त आ गया था।


तंगहाली में पहला ग्रामोफ़ोन रिकॉर्ड

बिब्बी को अब तक गुरु का मतलब समझ आ गया था. फिर गुरु को उन्होंने ऐसा पकड़ा कि नहीं छोड़ा. फ़ैज़ाबाद से परिवार कोलकाता चला आया. साथ में उस्ताद भी आए. एक तरफ़ गायकी की शिक्षा का ख़र्च, दूसरी तरफ शहरी ज़िंदगी का बोझ. मुश्तरीबाई जैसे-तैसे काम चला रही थीं. बिब्बी की गायकी अब तक मशहूर हो गई थी. ग्रामोफ़ोन कंपनी वाले उनसे गवाने के लिए इसरार करने लगे. उन दिनों म्यूजिक कंपनी या फ़िल्मों के लिए गाना कमतर समझा जाता, सो उस्ताद ने मना कर दिया. बिब्बी से घर की तंगहाली देखी न गयी और एक दिन वे एचएमवी के दफ़्तर चली गयीं. लपककर, कंपनी ने दादरा और ग़ज़लें रिकॉर्ड कर लीं. इसके बाद तो उन्हें पीछे मुड़कर देखने की ज़रूरत नहीं पड़ी. यह उनका ही जादू था कि ग़ज़ल कोठों से निकलकर आम लोगों की ज़िंदगी आने को बेक़रार हो गयी। बिब्बी अब बेगम अख्तर हो गई थीं।

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