पति के दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत, अर्घ्य रात्रि 7 : 52 बजे

रोहिणी चन्द्रमा के संयोग से व्रत के फल की गुणवत्ता मे भारी वृद्धि का सुयोग 

पाॅच वर्ष के पश्चात पुनः बन रहा है रोहिणी चन्द्र का संयोग 

चन्द्रोदय सूर्यास्त के पश्चात 7 बजकर 52 मिनट पर होगा। उसी समय अर्घ्य देने का मुहूर्त

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार सुहागिन महिलाएं अपने प्राम बल्लभ पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की कामना के लिए भगवान रजनीश (चन्द्रमा) का व्रत धारण करती हैं। करवा चौथ को पूरे दिन निराजल व्रत रहकर रात्रि बेला में अर्घ्य प्रदान कर व्रत पूर्ण करती हैं। 24 अक्टूबर 2021, रविवार को सूर्योदय 6 बजकर 22 मिनट पर और कार्तिक कृष्म चतुर्थी का मान रात्रि मे 2 बजकर 51 मिनट तक, रोहिणी नक्षत्र रात 11 बजकर 35 मिनट पर्यन्त, वरियान योग भी रात को 11 बजकर 13 मिनट तक है। चन्द्रमा की स्थिति रोहिणी नक्षत्र पर है। कहा जाता है कि चन्द्रमा रोहिणी से अत्यन्त प्रेम करते हैं।इसलिए इस दिन के व्रत से व्रती महिला के पति के आयुष्य मे प्रवर्धन के साथ दाम्पत्य जीवन मे भी मधुरता की भी अधिक वृद्धि होगी।

करवा चौथ का व्रत कार्तिक कृष्ण पक्ष मे चतुर्थी को किया जाता है।विवाहित स्त्रियों के लिए यह व्रत अखण्ड सौभाग्य का कारक होता है।विवाहित स्त्रियाॅ इस दिन अपने प्राम बल्लभ पति की दीर्घायु एवं स्वास्थ्य की कामना करके भगवान रजनीश(चन्द्रमा) को अर्घ्य प्रदान कर व्रत पूर्ण करती हैं।

इस व्रत मे रात्रि बेला में शिव, पार्वती, स्वामी कार्तिकेय, गणेश और चन्द्रमा के चित्रों एवं सुहाग की वस्तुओ के पूजा का भी विधान है।धर्मशास्त्र के अनुसार इस दिन व्रत रखकर चन्द्र दर्शन और चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान कर भोजन या फलाहार ग्रहण करना चाहिए। इस व्रत में पीली मिट्टी की गौरी बनाई जाती हैं। कुछ स्थानों पर चीनी या मिट्टी का करवा प्रयोग करती हैं। लोकाचार मे मधुरता के प्रतीक के तौर पर करवे मे चीनी डाल देती हैं। क्योंकि चीनी मधुरता की द्योतक है। इस दिन आंटे को घी मे मिलाकर चीनी डालकर लड्डू भी बनाई जाती हैै। जिसे देवताओ को अर्पण किया जाता है। इसके अतिरिक्त पूरी-पुआ और विभिन्न प्रकार के पकवान भी इस दिन बनाये जाते हैं।नवविवाहित स्त्रिया विवाह के पहले वर्ष से ही यह व्रत प्रारम्भ करती हैं।

इस दिन महिलाएं व्रत के दिन सूर्योदय से पूर्व सरगही ग्रहण करती है।सरगही शब्द सूर्योदयी का अपभ्रंश है जिसका आशय सूर्योदय से पूर्व का जलपान। सूर्योदय के पश्चात स्नान के अनन्तर व्रत का मानसिक संकल्प लेती हैं।इस दिन हाथों में मेहदी रचाकर, चूड़ी पहनकर व सोलह श्रंगार कर अपने पति की पूजा कर सम्पन्न करती हैं। व्रत अलग-अलग मान्यताओ के अनुसार कुछ क्षेत्र विशेष में अन्तर रहता है, परन्तु सबका एक ही उद्देश्य होता है। पति की दीर्घायु के निमित्त पूजा। यदि दो दिन चतुर्थी तिथि में सूर्योदय सो तो पूर्व दिन लिया जाता है। तृतीया से सम्मन्वित चतुर्थी मान्य रहता है-"मातृविद्धा प्रशस्यते"। तृतीया के स्वामी गौरी और चतुर्थी के गणेश जी है।इसलिए यह पूर्वविद्धा ही ग्राह्य माना गया है।

पूजन विधि

व्रत के दिन स्नान के अनन्तर संकल्प लेकर करवा चौथ का व्रत आरम्भ करें--"मम सुख सौभाग्य पुत्र पौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये"-। पूरा दिन निर्जला रहें। दीवार पर गेरू का फलक बनाकर पीसे चावल के गोल से करवा निर्मित करें। इसे वर कहते हैं। चित्रित करने की कला को करवा धरना कहते है।पूड़ी, हलुआ और पकवान बनाये। पीली मिट्टी से गौरी निर्माण करें।उनकी गोंद में गणेश जी को स्थापित करें। गौरी और गणेश जी को एक चौकी टर स्थापित कर दें। माता गौरी को चुनरी ओढ़ा दें और श्रंगार की सामग्री से उनका श्रंगार भी करें। एक जलपात्र रखकर उसे जल से परिपूरित करें। भेट देने के लिए एक टोटीदार करवा लें।करवे मे गेहूॅ और उसके ढक्कन मे चीनी रखें। उसके उपर दक्षिणा रखें।करवा पर स्वस्तिक अवश्य बनायें। शिव परिवार के समस्त देवताओं की पूजा करें।प्रार्थना करते हुए कहें--

"नमः शिवायै शर्वाण्यै सौभाग्यं सन्तति शुभाम्। 

प्रयच्छ भक्तियुक्तानां नारीणां हरिवल्लभे।।"

-करवा पर 13 बिन्दी लगायें और गेहूॅ या चावल के 13 दाने हाथ में लेकर करवा चौथ की कथा सुने। कथा सुनने के बाद करवा पर हाथ घुमाकर किसी वृद्ध महिला या उपनी सासु माता का पैर स्पर्श कर आशिर्वाद ग्रहण करें और उन्हे भेट दें। तेरह दाने गेहूॅ या चावल के और जलपात्र या टोटीदार करवा रख दें। रात्रि निकलने पर चलनी (छलनी) की ओट से चन्द्रमा को देखें और चन्द्रमा को अर्घ्य प्रदान करें। उसके बाद पति का चरण स्पर्श कर आशिर्वाद लें। उन्हें भोजन कराये और स्वयं भोजन करें। पूजन के बाद यदि समाप महिलाएं हों तो उनसे भेंट मुलाकात कर बधाई देकर व्रत को सम्पन्न करें।

यह व्रत प्रायः 12 वर्ष या 16 वर्ष तक लगातार किया जाता है। इसकी अवधि पूर्ण होने पर इसका उद्यापन किया जाता है। यदि सुहागिन महिला इसे आजीवन रखना चाहती है तो व्रत कर सकती है। भारत वर्ष मे चौथ माता के मन्दिर भी कहीं-कहीं हैं। हमारे पूर्वांचल भे तो कम परन्तु राजस्थान मे कई स्थानो पर इनके मन्दिर मिलते हैं सबसे प्राचीन और ख्याति प्राप्त मन्दिर राजस्थान के सवाई माधोपुर जनपद के बरवाड़ा गाॅव में है। कहा जाता है कि इसकी स्थापना महाराजा भीमसिंह चौहान ने की थी।यह पर्व अब पति दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त कर चुका है।

व्रत कथा

एक प्रसिद्ध कथा के अनुसार पाण्डवों के वनवास के समय जब अर्जुन नील पर्वत पर चले गए तो बहुत दिन तक उनके वापस न लौटने पर द्रौपति को चिन्ता हुई। श्री कृष्ण ने उसकी चिन्ता को दूर करने के लिए करवा चौथ का व्रत बताया। इस सम्बन्ध में जो कथा शिवजी ने पार्वती जी को सुनाई थी वह भी सुनाई। कथा इस प्रकार है--इंद्रप्रस्थ नगरी में एक विद्वान ब्राह्मण तथा उसके सात पुत्र तथा एक पुत्री थी। पुत्री का वीरावती था। उसका विवाह सुदर्शन नामक ब्राह्मण के साथ हुआ। ब्राह्मण के सभी पुत्र विवाहित थे। एक बार करवा चौथ के व्रत के समय भाभियों ने व्रत पूर्ण कर लिया, किन्तु वीरावती व्रत करने मे असमर्थ हो गई। सारा दिन निर्जला रहने के कारण भूख से निढाल हो गई। भाइयों की चिन्ता पर भाभियों ने बताया कि वीरावती भूख से पीड़ित है और करवा चौथ का व्रत चन्द्रमा देखकर ही खुलेगी। यह सुनकर भाईयों ने बाहर खेतों में जाकर आग लगाई तथा उपर कपड़ा तानकर चन्द्रमा जैसे दृश्य बना दिया और जाकर वीरावती से बोले कि चांद निकल आया है। अर्घ्य दे दो। यह सुनकर वीरावती अर्घ्य देकर खाना खा ली। नकली चंद्रमा को अर्घ्य देने से उसका व्रत खण्डित हो गया तथा उसका पति अचानक बीमार पड़ गया। वह ठीक न हो सका। एक बार इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी करवा चौथ का व्रत करने के लिए पृथ्वी पर आयीं। इस बात का पता लगने पर वीरावती ने जाकर इन्द्राणी से प्रार्थना की कि उसके पति के ठीक होने का कोई उपाय बताएं। इन्द्राणी ने कहा कि तेरे पति की यह दशा तेरी ओर से रखे गए करवा चौथ व्रत की खण्डित हो जाने के कारण हुई है। यदि करवा चौथ का व्रत सम्पूर्ण विधि से बिना खण्डित किए करोगी तो तेरा पति ठीक हो जाएगा। वीरावती ने करवा चौथ का व्रत पूर्ण विधि से सम्पन्न किया, जिसके फलस्वरूप उसका पति बिल्कुल ठीक हो गया। करवा चौथ का व्रत उसी समय से प्रचलित है। यह व्रत सौभाग्यवती महिलाओं को व्रत करना चाहिए और इस अवसर पर विभिन्न प्रकार के बधाई के गीत भी गाना चाहिए।

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