बन गमन के विलाप में राजा दशरथ के प्राण त्यागने पूरा अयोध्या शोकाकुल में डूब गया

मानसरोवर रामलीला मैदान

राम राम कहि राम कहि , राम राम कहि राम ।

तनु परिहरि रघुबर बिरह , राऊ गयउ सुरधाम ।।

गोरखपुर। आर्यनगर रामलीला समिति के तत्वावधान में पांचवे दिन शनिवार को अयोध्या की प्रसिद्ध  माँ सरयू आदर्श रामलीला मंडल के पंडित शिव शरण मिश्र के संयोजन में कलाकारों ने दशरथ मरण, भरत कौशल्या संवाद, भरत जी का चित्रकूट प्रस्थान का मंचन किया। आज की लीला मंचन का आरम्भ डॉ महापौर सीताराम जायसवाल, शिव शंकर शाही, डॉ ज्वाला प्रसाद मिश्र, डॉ जे.पी.मिश्र द्वारा भगवान की आरती के पश्चात हुआ। निषाद राज व केवट द्वारा भगवान श्रीराम, लक्षमण जी व जानकी जी को गंगा जी के पार पहुंचाकर लौटा देखकर मंत्री सुमंत्र व्याकुल होकर हा राम, हा सीते, हा लक्षमण पुकारते हुए धरती पर मूर्छित होकर गिर पड़ते है। रथ के घोड़े भी व्याकुल हो कर अश्रु बहा रहे है। बिना पंख के पक्षी की भांति सुमंत्र जी ग्लानि कर रहे हैं अयोध्या जाकर महाराज दशरथ व नगर के स्त्री पुरूष का सामना मैं कैसे करूँगा । कौशल्या जी मुझसे प्रश्न करेंगी कि मेरे राम को तुम कहाँ छोड़ आये? जो अयोध्या श्री राम के दर्शन को व्याकुल रहती है, मैं सबको क्या जवाब दूँगा। यह सब सोचते हुए सुमंत्र जी रात के अंधेरे में अयोध्या में प्रवेश करते है। महाराज दशरथ के समीप पहुँच कर भगवान श्री राम की वनयात्रा की बात बताई यह सुनकर सभी रानियाँ करुण विलाप करने लगी। सुमंत्र जी से महाराज दशरथ श्रीराम को वापस लाने की बात पूछते है तब वे बताते ही कि श्रीराम जी ने मुझे यह कहकर वापस कर दिया कि पिताजी की आज्ञा का पालन करना मेरा धर्म है। आपके आशीर्वाद से वन में हमारा मंगल ही होगा। महाराज दशरथ यह सुनकर पृथ्वी पर गिर कर विलाप करने लगे कि राम के बिना जिने की आशा को धिक्कार है। यह कहते कहते उनके प्राण कंठ में आ गये। हा राम हा राम कहकर शरीर का त्याग कर स्वर्गलोक सिधार गए। यह समाचार सुनकर दास -दासी सभी करुण रुदन करने लगे। ऋषि मुनियों सहित वशिष्ठ जी वहाँ आये और  महाराज का शरीर रखवा दिया। फिर दूतो को भेजकर  भरत जी को ननिहाल से बुलवाया और यह समाचार महल के बाहर किसी से भी ना बताने की आज्ञा दी। दूत भरत व शत्रुधन जी को अयोध्या लेकर आते है ,भरत जी अयोध्या में प्रवेश करते समय देखते है कि कहि भी तनिक - सा उल्लास आनन्द नही दिख रहा उन्हें किसी अनहोनी की शंका होती है। भरत जी कैकेयी के महल में आये और पूछा कि माँ पिता जी कहाँ है तब कैकेयी बताती है कि महाराज देवलोक गमन हो गया है। भरत जी यह सुनकर व्याकुल हो जाते है। माता कौशल्या के समझाने पर ऋषियों के सानिध्य में महाराज दशरथ का अंतिम संस्कार सरयू जी के तट पर विधि पूर्वक करके। भरत जी श्री राम जी का राज्याभिषेक करने की तैयारी करके माताओं, चतुरंगिणी सेना व अयोध्या की प्रजा लेकर भगवान राम से मिलने व माता कैकेयी की गलती के लिए क्षमा याचना करने चित्रकूट प्रस्थान करते है। भील लोग देखते है कि भरत जी चतुरंगिणी सेना लेकर आ रहे है तो राजा गुह को समाचार देते हैं। गुह राज विचार करते हैं कि कैकेयी का पुत्र है जरूर रामजी से युद्ध करने जा रहे होंगे। फिर समीप जाकर यह जानने की कोशिश करते हैं तो भरत जी से वार्ता के पश्चात यह जानकारी होती है कि श्री राम जी से क्षमा याचना करने जा रहे हैं। इधर जानकी जी को स्वप्न हुआ कि भरत जी पैदल चलकर श्री राम से मिलने आ रहे हैं साथ अयोध्या की प्रजा, चतुरंगिणी सेना है लेकिन सासु जी अमंगल वेष में है। श्री राम जी जानकी जी की बात सुनकर अमंगल सूचना की बात कहते है। इधर लक्षमण जी को भील लोग बताते है कि राजा भरत जी चतुरंगिणी सेना लेकर आये हैं। तो लक्षमण जी बोलते हैं कि भरत जी साधु हैं, परन्तु राज्य मिलने के बाद उसकी बुद्धि बिगड़ गयी है। वह स्वयं का राज्य निष्कंटक करने आया है। यह सुनकर रघुनाथ जी उनको अपने पास बैठा कर समझाते है कि भरत ऐसा नही कर सकता उसे आने दो, भरत जी जहाँ श्री सीताराम जी पर्णकुटी में विराजमान थे आते है और नतमस्तक हो जाते हैं यही आज की लीला का विश्राम हुआ।

इस अवसर पर पुष्प दन्त जैन, राजीव रंजन अग्रवाल, दीप अग्रवाल, विकास जालान, कीर्ति रमन दास, मनीष अग्रवाल सराफ, बृजेश मणि मिश्र, जितेन्द्र नाथ अग्रवाल जीतू , डॉ सुरेश , दिनेश शर्मा, विनय गौतम, सन्तोष राजभर, अमन गौड़ सहित अनेकों की  सहभागिता रही।

 आज के लीला मंचन के सम्बन्ध समिति के प्रवक्ता विकास जालान ने बताया कि श्री राम जी का मिलन, जनक जी का आगमन,राम भरत संवाद, भरत जी का चरण पादुका लेकर वापस लौटना, पंचवटी प्रवेश व विश्राम का मंचन किया जाएगा।

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