बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है विजया दशमी

दशहरा बुराई पर अच्‍छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान श्रीराम ने बुराई के प्रतीक रावण का वध किया था। पूरे देश में दशहरे पर रावण, मेघनाद और कुंभकर्ण के पुतलों का दहन होता है। इस दिन मां दुर्गा की मूर्तियों का विसर्जन भी किया जाता है।

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र, 


"आश्विनस्य सिते पक्षे दशम्यां तारकोदये। 

स कालो विजयो ज्ञेयः सर्वकार्यर्थ सिद्धये।।"

अर्थात आश्विन शुक्ल दशमी को सायंकाल तारा उदय होने के समय विजयकाल रहता है,इसलिए इसे विजयादशमी कहते हैं।विजयादशमी का दूसरा नाम दशहरा भी है।भगवान श्री राम की पत्नी सीता जी को जब अहंकारी एवं अधर्मी रावण अपहरण कर लंका ले गया तो नारद मुनि के निर्देशानुसार भगवान श्रीराम ने नवरात्र व्रत कर नौ दिनो तक भगवती दुर्गा की अर्चना कर, प्रसन्नकर, वर प्राप्तकर रावण की लंका पर चढ़ाई की। इसी आश्विन शुक्ल दशमी के दिन राम ने रावण का वध कर विजय प्राप्त की थी। तब से इसे विजयादशमी के रूप में मनाया जाने लगा।

भगवान राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ किया था। इस यज्ञ के पश्चात अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ति का दान कर एक पर्ण कुटिया में रहने लगे। इस समय रघु के पास कौत्स आया, जिसने रघु से 14 करोड़ स्वर्ण मुद्रा की मांग की, क्योंकि कौत्स को गुरु दक्षिणा चुकाने हेतु 14 करोड स्वर्ण मुद्राओं की आवश्यकता थी। तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया। इस पर कुबेर ने किसी दिन अश्मंतक व शमी के पौधे पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा कर दी, जिसे लेकक कौत्स ने गुरु दक्षिणा चुकाई। शेष मुद्राएं जन सामान्य के उपयोग के लिए ले ली थी। इसी उपलक्ष में पर्व मनाया जाता है।

इस प्रकार से देखा जाए तो विजयादशमी का पर्व मुख्य रूप मे विजय के रूप में मनाया जाता है। आश्विन मास के नवरात्र में देश के अधिकांश भागों में रामलीला का आयोजन होता है। रामलीला का अन्त रावण दहन के साथ हो जाता है। रावण दहन के साथ मेघनाद व कुम्भकर्ण के पुतले बनाकर जलाए जाते हैं। गुजरात में नवरात्र के अवसर पर गरबा नृत्य का आयोजन किया जाता है। पहले विजयदशमी का पर्व का राज परिवार में सीमा उल्लंघन कर मनाया जाता था। परंतु समय चक्र के साथ राजतन्त्र की व्यवस्था का स्थान लोकतन्त्र ने ले लिया। अब यह पर्व आमजन भी विशेष उत्साह एवं उल्लास के साथ मना रहा है। वास्तव में यह बुराई के अन्त स्वरूप मनाया जाता है। यह पर्व असत्य पर सत्य की जीत का प्रतीक है, तो अन्याय पर न्याय की जीत, अधर्म पर धर्म की जीत दुष्कर्मों पर सत्कर्मों की जीत का प्रमुख पर्व है। यह पर्व हमें सत्य मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। सत्य चाहे कितना भी कड़वा हो हमेशा उसी का अनुसरण करना चाहिए, क्योंकि यह सनातन सत्य है कि हमेशा शुभ कर्मों कर्मों की ही जीत होती है। इसे विजय पर्व भी कहा जाता है।

महाभारत में वर्णन है कि दुर्योधन ने पाण्डवों को जुए में हराकर बारह वर्ष का बनवास दिया था एवं तेरहवाॅ वर्ष अज्ञात काल का था। इस वर्ष में यदि कौरव पाण्डवों को खोज निकालते तो पुनः बारह वर्ष का बनवास व एक वर्ष का अज्ञातवास का सामना करना पड़ता। इस अज्ञात काल में पाण्डवों ने राजा विराट के यहां नौकरी की थी। अर्जुन इस काल में बृहन्नला के वेश में रह रहा था। तब गौ रक्षा के लिए घृष्टद्युम्न ने कौरव सेना पर आक्रमण की योजना बनाई, तब अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने अस्त्र-शस्त्र उतारकर गौरव सेना पर विजय इसे दिन प्राप्त की थी। इस कारण भी विजयदशमी का पर्व प्रचलित हो गया।

विजयादशमी का पर्व प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में धूमधाम से मनाया जाता है। यह पर्व रावण पर राम की विजय के प्रतीक के रूप मे मुख्यतया मनाया जाता है। इस दिन रावण, मेघनाद व कुम्भकर्ण का पुतला बनाकर उसे जलाने की परम्परा मुख्य रूप से सर्वत्र प्रचलित है। इस दिन अपराजिता पूजन व शमी पूजन विशेष रूप से कई स्थानो पर किया जाता है। स्कन्द पुराण के अनुसार जब दशमी नवमी से संयुक्त हो तो अपराजिता देवी का पूजन दशमी को उत्तर-पूर्व दिशा में अपराह्न के समय विजर और कल्याण की कामना के लिए किया जाता है। 

धर्मसिन्धु के अनुसार अपराजिता पूजन के लिए अपराह्न में गाॅव के उत्तर पूर्व की ओर जाकर एक स्वच्छ स्थल को गोबर से लिपना चाहिए।फिर चन्दन से आठ कोण दल बनाकर संकल्प करना चाहिए--"मम सकुटुम्बस्य क्षेमसिद्धयर्थं अपराजिता पूजन करिष्ये"--।उसके पश्चात उस आकृति के बीच में अपराजिता का आवाहन करना चाहिए।इसके दाहिने एवं बायें जया एवं विजया का आवाहन करना चाहिए।साथ ही क्रियाशक्ति को नमस्कार करना चाहिए।उसके पश्चात,अपराजितायै नमः,जयायै नमः,विजयायै नमः-मन्त्रों के साथ षोडशोपचार पूजन करना चाहिए।इसके पश्चात यह प्रार्थना करनी चाहिए।

"हे देवी!यथाशक्ति मैने जो पूजा अपनी रक्षा के लिए की है,उसे स्वीकार कर आप अपने स्थान की ओर जा सकती हैं।"

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