बांग्ला शारदीय दुर्गा पूजा की क्या है बोधन, आमंत्रण और अधिवास की परम्परा

 

दीपक चक्रवर्ती निशांत, 

बोधन का शाब्दिक अर्थ जागरण या चैतन्य की प्राप्ति से है। दुर्गा पूजा के आरंभ से पूर्व बोधन एक आवश्यक प्रक्रिया है।

पुराणों के अनुसार लंकापति राजा रावण के संसार से पूर्व दशरथ नंदन श्रीराम ने देवी दुर्गा का असमय आह्वान (अकाल बोधन) किया था और देवी को अपनी भक्ति से संतुष्ट कर वरदान प्राप्त किया था।

तभी से शरद काल में देवी पूजा के लिए अकाल बोधन (असमय आह्वान) की परम्परा चली आ रही है।

कल्पारम्भ :

कल्पारम्भ का तात्पर्य संकल्प से है। घट की स्थापना के साथ साथ देवी पूजा के लिए संकल्प लेने से है।

आमंत्रण एवं अधिवास :

आमंत्रण का तात्पर्य पूजा ग्रहण करने से है। इसके माध्यम से देवी दुर्गा को पूजन स्वीकार करने के लिए आमंत्रित किया जाता है।

अधिवास :

अधिवास का तात्पर्य स्थान ग्रहण करने से है। देवी दुर्गा को पांच दिनों के लिए स्थान ग्रहण करके पूजन स्वीकार करने के लिए श्रद्धा भक्ति भाव से प्रार्थना किया जाता है। इस दौरान घट के चार कोनों पर बांस की कंची और रक्षा सूत्र से एक घेरा बना दिया जाता है।

इस प्रकार नित्य पूजन की शुरुआत होती है।

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