आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,
नरक चतुर्दशी (काली चौदस, रूप चौदस, छोटी दीवाली या नरक निवारण चतुर्दशी के रूप में भी जाना जाता है) हिंदू त्योहार अश्विन महीने की विक्रम संवत्में और कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी (चौदहवें दिन) पर होती है। यह दीपावली के पांच दिवसीय महोत्सव का दूसरा दिन है। हिन्दू साहित्य बताते हैं कि असुर (राक्षस) नरकासुर का वध कृष्ण, सत्यभामा और काली द्वारा इस दिन पर हुआ था। भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को इसी दिन मारकर पृथ्वीवासियों को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी। यह दिन सुबह धार्मिक अनुष्ठान, उत्सव और उल्हास के साथ मनाया जाता है।
नरक चतुर्दशी एवं हनुमान् जयन्ती दीपावली का द्वितीय पर्व कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को निम्नलिखित रूप में मनाया जाता है। यह पर्व 3 नवम्बर दिन बुधवार को मनाया।
प्रथम- रूप चतुर्दशी, द्वितीय- नरक चतुर्दशी, तृतीय- छोटी दीपावली और चतुर्थ- हनुमान् जयन्ती के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 6 बजकर 29 मिनट पर, त्रयोदशी प्रातः काल केवल 7 बजकर 14 मिनट तक ही, पश्चात सम्पूर्ण दिन और रात्रि शेष 5 बजकर 31 मिनट (4 नवम्बर को प्रातः) तक चतुर्दशी, विष्कुम्भ एवं प्रीति योग और आनन्द नामक महा औदायिक योग भी है। इस दिन के कृत्य-कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी को प्रातःकाल सूर्योदय से पूर्व तेल और उबटन लगाकर स्नान करने का विधान है। कारण है कि यह पर्व रूप निखारने से सम्बन्धित है। इसी कारण इसे रूप चतुर्दशी कहते हैं। इस दिन प्रातः स्नान से जहाॅ सौन्दर्य की प्राप्ति होती है वहीं शरीर में दिव्य शक्ति का संचार होता है और कई प्रकार के रोगों से छुटकारा भी मिलता है। स्नान से पूर्व वरूण देवता का ध्यान करते हुए, जल में हल्दी और कुंकुम डाल देना चाहिए।
-पौराणिक आख्यानों के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने नरकासुर को इसी दिन मारकर पृथ्वीवासियों को उसके भय से मुक्ति दिलाई थी। इसकी खुशी के उत्सव के कारण इस दिन दीपामालाएं आयोजित की जाती है। इसी कारण इसे छोटी दीपावली भी कहते हैं। दीपमालाएं आयोजित करने का एक कारण यह भी है कि राजा बलि को भगवान विष्णु ने प्रतिवर्ष इन तीन दिनों का राजा बनाने की व्यवस्था की है और बलि के राज्य में दीपमालाओं का आयोजन करने से स्थायी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।
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नरक चतुर्दशी कथामैंने भागवत नहीं पढ़ी है। मैं इस विषय में ज्यादा नहीं जनता। परन्तु मैंने सुना है कि भगवान् कृष्ण ने एक देश जो कि वर्तमान में ईराक है, को मुक्त कराया था। नरकासुर नामक एक राक्षस उस समय ईराक पर शासन करता था। उसकी 16000 उपपत्नियां (रखैलें) थीं और वह सभी को सताया करता था। उस देश की समस्त जनता परेशान थी। उसके पुत्र का नाम भागदत्त था और भागदत्त के कारण ही उस शहर को बग़दाद के नाम से जाना जाता है। अतः कहा जा सकता है कि ईराक आज जो सह रहा है, वो 5000 हजार वर्षों पहले भी उसके साथ घटित हो चुका है। 5000 वर्ष पहले भी ईराक में इसी प्रकार की शासन व्यवस्था थी। जब मैं ईराक में था तो कुर्दिस्तान में लोगों ने मुझे बताया कि वहां सैकड़ों गाँव ऐसे हैं, जिनमें एक भी पुरुष नहीं हैं क्योंकि सद्दाम हुसैन ने सभी पुरुषों को मार दिया है। उन सैकड़ों गावों में लोग इतने कष्ट में थे। हमने कुछ ग्रामीणों से बात की और वे सब की सब महिलायें थीं। वे सामने आ कर अपनी दुःखभरी कहानी सुना रही थीं।
यह बहुत ही निराशाजनक है कि इस युग में भी ऐसी असुरी प्रकृति की सोच विद्यमान हो सकती है। आपने युगांडा में भी इसी प्रकार की घटनाओं के विषय में सुना होगा। किसी ने फ्रिज में बहुत सारी खोपड़ियाँ इकट्ठी कर रखी थीं। नहीं सुना है क्या इसके बारे में? हाँ! और कम्बोडिया में भी लाखों लोग सताए जाते हैं, यहाँ तक कि आज भी वहां इस प्रकार की ज्यादतियां देखने को मिल जाती हैं। कम्बोडिया में एक कम्युनिस्ट जनरल ने सभी को खेती करने के लिए कहा। और लोगों को खेती करना नहीं आता था, जो लोग व्यापारी थे, खेती के बारे में कुछ नहीं जानते थे, उसने उनपर जबरदस्ती की। जिसने भी उसकी बात मानने से इनकार किया जनरल ने उसे मार दिया। लाखों लोग मारे गए। कम्बोडिया की एक तिहाई जनता एक आदमी के हाथों मारी गई।
अतः ऐसी आसुरी मानसिकता 5000 वर्ष पहले भी विद्यमान थी। नरकासुर ने 16000 स्त्रियों से जबरदस्ती विवाह किया, उन्हें बंदी बना के रखा और अपना दास बना लिया। अतः जब वो श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया तो उन सभी स्त्रियों का उद्धार हो गया। श्रीकृष्ण ने उन्हें मुक्त कर दिया। इसके बाद उन 16000 स्त्रियों ने कहा कि हम सभी आत्महत्या कर लेंगे। वे सभी सामूहिक आत्महत्या करना चाहती थीं क्योंकि उन दिनों स्त्रियों के लिए वर्जित था कि वे बिना पति के रहें। उन्हें समाज में वो सम्मान नहीं मिलता था, विशेषकर एक आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति के पत्नी को। इसलिए उन सभी ने श्रीकृष्ण से कहा कि ‘इस व्यक्ति के साथ रहने के कारण अब हमारा परिवार हमें नहीं अपनाएगा और ये संसार भी हमें स्वीकार नहीं करेगा क्योंकि हम उस आसुरी प्रकृति वाले व्यक्ति, जिसने लाखों लोगों के जीवन का विनाश किया है, की पत्नियाँ हैं। इसलिए अच्छा है कि हम सब मर जाएँ।
इस पर श्रीकृष्ण ने उनसे कहा, नहीं! मैं तुम सब को अपना उपनाम दूंगा। तुम्हें अपने आपको “ये या वो” अथवा “नरकासुर की पत्नी” कहलवाने की आवश्यकता नहीं है। श्रीकृष्ण उस काल में एक बहुत ही सम्मानीय एवं जाने - माने व्यक्ति थे। ऐसा करने पर वे सभी स्त्रियाँ मर्यादा के साथ रह सकती थीं, इसलिए उन्होंने कहा कि वे उन स्त्रियों को अपना नाम दे कर अथवा उनके स्वामी बन कर या उन्हें अपना पति मान कर, मर्यादा प्रदान कर रहे हैं। यह एक कथा है, एक पक्ष है। इस प्रकार श्रीकृष्ण ने नरकासुर की उन सभी 16000 उपपत्नियों (रखैलों) को अपना नाम दे कर एक सम्मान जनक जीवन प्रदान किया। ऐसा कर के उन्होंने कितना अच्छा काम किया ना? इस प्रकार श्रीकृष्ण ने उन्हें एक नया जीवन दिया। परन्तु उनकी वास्तविक पत्नियाँ तो रुक्मिणी, सत्यभामा एवं जाम्बवती ही थीं।
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