आसुरी शक्तियों से मुक्ति दिलाने के लिए प्रभु श्रीराम ने की थी देवी की आराधना

जानिए कैसे मिला मिला मां अंबे को उनका जग प्रतिष्ठित दुर्गा नाम


आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

दशहरा का पर्व 15 अक्टूबर दिन शुक्रवार को है। इस दिन सूर्योदय प्रातः 6 बजकर 16 मिनट पर और दशमी तिथि का मान सूर्योदय से लेकर रात 8 बजकर 22 मिनट तक,इसी तरह श्रवण नक्षत्र दिन में 12 बजकर 41 मिनट तक पश्चात धनिष्ठा नक्षत्र है। इस दिन के शुभ मुहुर्त इस प्रकार है जिनमें समस्त मांगलिक कार्य सम्पादित किये जा सकते हैं। अभिजित मुहुर्त मध्याह्न मे 11 बजकर 23 मिनट से 12 बजकर 37 मिनट तक (उत्तम शुभ मुहुर्त), अपराह्न 1 बजकर 9 मिनट से 3 बजकर 27 मिनट तक ( शुभ बेला), दिन मे 1 बजकर 55 मिनट से 2 बजकर 41 मिनट तक (विजय मुहुर्त)। इसके अतिरिक्त सायंकाल जिस समय तारा उदय हो (तारकोदय काल) यह सायंकाल 5 बजकर 44 मिनट से 6 बजकर 32 मिनट तक (दो घटी) उत्तम मुहुर्त के रूप में मान्य रहेगा।

बार-बार गायब होने लगे कमल पुष्प

राम अपनी शक्ति पूजा शुरू कर देते हैं, और इसी कड़ी में एक दिन उन्होंने निश्चय किया कि वह देवी को 108 कमल पुष्प चढ़ाएंगे। नवमी के दिन लिए गए इस संकल्प पर देवी दुर्गा उनकी परीक्षा लेने लगती हैं. मंत्रों के साथ राम एक-एक कमल पुष्प अर्पित करते जाते हैं।

देखते हैं कि माला का एक बीज बाकी है और पुष्प समाप्त हो चुके हैं यानी सिर्फ 107 कमल ही अर्पित हुए। राम फिर से कमल चढ़ाना शुरू करते हैं और इस बार भी एक कमल कम निकलता है।

इस तरह नौ बार यह प्रक्रिया दोहराने के बाद राम बाण उठा लेते हैं. कहते हैं कि उन्हें भी कमल नयन कहते हैं तो क्यों न 108वें कमल की जगह अपना एक नेत्र अर्पण कर दूं। यह संकल्प देख देवी खुद प्रकट होती हैं और राम का हाथ पकड़ लेती हैं। इस तरह राम की शक्ति पूजा अपनी उचित फल के साथ समाप्त होती है. इस प्रसंग को निराला ने बेहद निराले अंदाज में काव्य के रूप में ढाला है।

‘यह है उपाय’ कह उठे राम ज्यों मन्द्रित घन-

 “कहती थी माता मुझे सदा राजीव नयन।

 दो नील कमल हैं शेष अभी यह पुरश्चरण

पूरा करता हूँ देकर मातः एक नयन।

कहकर देखा तूणीर ब्रह्म –शर रहा झलक

ले लिया हस्त वह लक-लक करता महाफलक;

ले अस्त्र थामकर दक्षिण कर दक्षिण लोचन

 ले अर्पित करने को उद्दत हो गए सुमन।


देवी ने दिया वरदान

श्री राम की शक्ति पूजा पूरी तरह सफल होती है। देवी उनके धनुष-बाण छीन लेती हैं और अभय का वरदान देती हैं। वह कहती हैं कि मैं ही आपकी योगमाया शक्ति हूं, और आपके आग्रह के कारण ही अब तक युद्ध क्षेत्र में प्रकट नहीं हो सकी थी। अब मैं पुनः आपके आज्ञा चक्र में स्थित होकर आपके द्वारा पाप का नाश कराऊंगी।

यह मेरा संकल्प है। देवी मां के वचनों को सुनकर श्रीराम और उनकी सेना निर्भय हो जाती है और दशमी के दिन दुराचारी रावण का अंत होता है।

इस प्रकार अपराजिता पूजन के पश्चात उत्तर पूर्व शमी वृक्ष की तरफ जाकर पूजन करना चाहिए।शमी का अर्थ शत्रुओं को शमन करने वाला होता है।शमी पूजन के लिए इस मन्त्र का पाठ करना चाहिए--प्रार्थना मन्त्र-

"शमी शमयते पापं शमी लोहित कण्टका। 

धारिष्यर्जन बाणानां रामस्य प्रियवादिनी। 

करिष्यमाण यात्रायां यथाकाल सुखं मया। 

तत्र निर्विघ्नकर्त्रीत्वंभव श्रीरामपूजिते।।"

अर्थ- शमी पापों का शमन करती है। शमी के कांटे तांबे के रंग के होते है।यह अर्जुन के बाणों को धा,ण करती है।हे शमी!राम ने तुम्हारी पूजा की है।मैं।यथाकाल विजय यात्रा पर निकलूंगा।तुम मेरी इस यात्रा को निर्विघ्नकारक व सुखकारक करों।"-

आज भी अनेक परिवार इस दिन शमी वृक्ष की पूजा करते हैं और इसकी छाल का टुकड़ा अमूल्य निधि के रूप में लाकर अपने पूजन ग्रह में रखते हैं। इस दिन नीलकंठ नामक पक्षी के दर्शन करना शुभ माने जाता है। इस दिन जिस व्यक्ति को इस दिन नीलकंठ पक्षी के दर्शन हो जाएं, तो उसका यह वर्ष आर्थिक समृद्धि, सम्पन्नता, आरोग्यता में व्यतीत होता है। ऐसी लोक मान्यता है। विजयदशमी का तान्त्रिक दृष्टि से भी बहुत अधिक महत्व माना जाता है। मुहूर्त ग्रन्थों में इस दिन को अक्षय तृतीया जैसी विशेष ढाई मुहुर्तो में माना जाता है। प्रसिद्ध कालिका पुराण के अनुसार भगवान श्रीराम ने नवरात्र में मां शक्ति की आराधना की थी और उनकी कृपा से रावण का वध किया था। प्रसिद्ध हिन्दी कवि पण्डित सूर्यकांत निराला इस आशय से मर्म पर राम की शक्ति पूजा नामक एक सुन्दर कविता की रचना की थी। हिमाचल प्रदेश में कुल्लू का दशहरा बहुत प्रसिद्ध है ।यहां एई सप्ताह पूर्व इस पर्व की तैयारी आरम्भ हो जाती है। पहाड़ी लोग अपने ग्रामीण देवता का धूमधाम से जुलूस निकालकर पूजन करते हैं और कुल्लू नगर में देवता रघुनाथ जी बन्दना से दशहरा उत्सव का आरम्भ करते हैं। दशहरा के दिन इस उत्सव की शोभा निकाली जाती है। पंजाब में दशहरा नवरात्र के नौ दिनों तक उपवास रखकर मनाते हैं। इस दौरान यहां आगन्तुकों का स्वागत पारम्परिक मिठाई रूप से किया जाता है ।यहां भी रावण दहन के आयोजन होते हैं और मेले लगते हैं ।छत्तीसगढ़ स्थित बस्तर में दशहरा का मुख्य कारण राम की रावण पर विजय न मानकर, मां दंतेश्वरी जो कि बस्तर जंगल के निवासियों की आराध्य देवी है, की आराधना के रूप में मनाते हैं। यहां दशहरा श्रावण मास की अमावस्या परे असोज शुक्ल त्रयोदशी को ओहाड़ी पर्व के रूप में होता है।

इसके बाद शमी वृक्ष के नीचे चावल,सुपाड़ी व तांबे का सिक्का रखते हैं।फिर वृक्ष की प्रदक्षिणा कर उसकी जड़ के पास कुछ मिट्टी और पत्ते घर लेकर आते हैं। भगवान राम के पूर्वज रघु ने विश्वजीत यज्ञ कर अपनी सम्पूर्ण धन -सम्पत्ति दान कर दी और पर्ण कुटिया में रहने लगे।इसी समय कौत्स को चौदह करोड़ स्वर्ण मुद्राओं की आवश्यकता गुरू दक्षिणा के लिए पड़ी।तब रघु ने कुबेर पर आक्रमण कर दिया और उसी के पश्चात कुबेर ने शमी एवं अश्मंतक पर स्वर्ण मुद्राओं की वर्षा की थी। तभी से शमी और अश्मंतक की पूजा की जाती है। अश्मंतक के पत्र घर में लाकर स्वर्ण मानकर लोगों में बांटने कि रिवाज प्रचलित हुआ। अश्मंतक के पूजा के समय निम्न मन्त्र बोलना चाहिए-"अश्मंतक महावृक्ष महादोष निवारणम।

इष्टानां दर्शनं देहि कुरू शत्रुविनाशम्। "

-अर्थात हे अश्मंतक!तुम महादोषो का निवारण करने वाले हो,मुझे मेरे मित्रो का दर्शन कराकर शत्रु का नाश करो।इस प्रकार मान्यता है कि विजयादशमी का पर्व मनाने से सुख-समृद्धि प्राप्त होकर विजय की प्राप्ति होती है।

ज्योतिष शास्त्र में इसे अबूझ मुहुर्त की संज्ञा दी गई है।इस दिन किया गया कोई भी कार्य सफल होता है।किसी भी प्रकार के शुभ कार्य के लिए इस पर्व का अवश्य उपयोग करना चाहिए।

बंगाल, उड़ीसा एवं असम में दुर्गा पूजा पर्व

बंगाल उड़ीसा एवं असम में यह पर्व दुर्गा पूजा के रूप में मनाया जाता है। यहां यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है ।पूरे बंगाल में पाॅच दिन और उड़ीसा तथा असम में चार दिन तक यह त्योहार चलता है। दसमी के दिन विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है एवं प्रसाद चढ़ाया जाता है ।तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में दशहरा नौ दिनों तक चलते है। जिसमें तीन देवियों लक्ष्मी, सरस्वती और दुर्गा की पूजा होती है। यहां दशहरा बच्चों के लिए शिक्षा से सम्बन्धित नवीन कार्य सीखने के लिए शुभ समय होता है। कर्नाटक के मैसूर में दशहरा और राजस्थान के कोटा नगर का दशहरा भी समूचे भारत में प्रसिद्ध है।यह पर्व सामूहिकता,सन्मार्ग और नैतिकता का प्रतीक है। जिस तरह राम ने बानरों की सेना के साथ रावण और उसकी सेना का डटकर सामना किया और एक संघ का निर्माण किया, उसी तरह व्यक्ति को भी बड़े कार्यो के लिए सामूहिकता की शक्ति का एकत्रीकरण करना चाहिए। अन्याय का डटकर सामना करना चाहिए धर्म के मार्ग का अनुसरण करना चाहिए और अपनी सामर्थ्य क्षमता का निरन्तर विकास करना चाहिए। क्योंकि दुर्बल कमजोर और सशक्त कभी भी विकास नहीं कर सकता ।आज हमारे समाज में विभिन्न प्रकार के आतंक सिर उठाए हुए हैं और अपने आतंक का उन्मत्त प्रदर्शन कर रहे हैं। जिस प्रकार रावण के आतंक का दमन श्री राम के पराक्रम से हुआ, उसी प्रकार आज समाज में फैले हुए नीतिगत अत्याचार ,भ्रष्टाचार और अधर्म का शमन करने के लिए शुभ विचारों की सुदृढ़ सेना होनी चाहिए। जब तक हमारे समाज में मर्यादा पुरुषोत्तम राम के समान उत्कृष्ट व्यक्तियों का निर्माण नहीं होगा, तब तक हमारे समाज मे आसुरी शक्तियों के प्रतीक रावण का आतंक समाप्त नहीं होगा। ऐसा उदित होने की शुभ शक्तियों को पुनः सामूहिक ढंग से एकत्र होने और प्रयास करने की आवश्यकता है।

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