गोरखपुर में पहली बार मराठी परंपरा की थ्री डी मूर्तियों से गुलजार हुआ दुर्गा पूजा पंडाल

 

धर्माशाला बाजार स्थित महाकाल समिति द्वारा स्थापित माता की प्रतिमा को अष्टभुजी माता के स्वरूप में हैं सिंहासन पर विराजमान

 पहली बार मराठी परंपरा की थ्री डी मूर्तियों से गुलजार होंगे दुर्गा पूजा पंडाल

गोरखपुर। शारदीय नवरात्रि पर्व पर शहर में सजने वाली दुर्गा पांडालों में पहली बार मराठी परंपरा के अनुसार माता दुर्गा की थ्री डी प्रतिमा बनाई गई है। महाकाल समिति धर्माशाला बाजार में स्थापित प्रतिमा अष्टभुजी माता के स्वरूप में सिंहासन पर बैठी दिखाई गई हैं। माता दुर्गा जिस अंदाज में सिंहासन पर बैठी हैं, उनमें छत्रपति शिवाजी की झलक दिख रही है। 

अध्यक्ष हर्षित गुप्ता ने बताया की हमेशा कुछ नया करने के लिए मशहूर ‘सुभसा स्कल्पटर्स’ की तिकड़ी सुशील गुप्ता, भास्कर विश्वकर्मा और संत किशोर चौहान की तिकड़ी ने एक महीने की कड़ी मेहनत से यह थ्री डी मूर्ति बनाई है। करीब सात फीट की इस मूर्ति की खासियत यह है कि इसमें पूरी तरह से मराठी संस्कृति की झलक दिख रही है। महाकाल समिति धर्माशाला बाजार के अध्यक्ष हर्षित गुप्ता, कोषाध्यक्ष नीतेश सोनकर, अमन चौधरी व विशेष गुप्ता ने करीब तीन महीने पहले इस ऑर्डर के सम्बंध में ‘सुभसा’ के कलाकारों से मुलाकात की थी। उसके बाद मराठी पैटर्न पर मां दुर्गा की मूर्ति बनाने का निर्णय लिया गया। 


अष्टभुजी है माता की मूर्ति 

माता जब सौम्य अवस्था में होती हैं तब अष्टभुजी होती हैं, जब क्रोधित अवस्था में होती हैं तो दसभुजी होती हैं। इसमें सौम्य अवस्था में माता को दर्शाया गया है। इसमें दाहिने हाथ में सबसे ऊपर चक्र, दूसरे हाथ में ब्रह्मफास, तीसरे में गदा है। माता चौथे हाथ से आशीर्वाद दे रही हैं। बाईं और ऊपर के पहले हाथ में शंख है। दूसरे में फरसा, तीसरे में तलवार और चौथे में त्रिशुल है। 


पूरी तरह मराठी है वेशभूषा 

माता दुर्गा की वेश भूषा पूरी तरह मराठी है। मराठी बिंदी, नाक में मराठी नथूनी, कान में मराठी बाली, गले में मराठी मंगलसूत्र, मराठी चूड़ी है। साड़ी मराठी परंपरा के अनुसार ही पहनाया गया है। 


इसलिए खास है यह मूर्ति 

इस थ्री डी मूर्ति में छत्रपति शिवाजी का अंदाज इसे खास बनाता है। सिंहासन पर बैठी माता का एक पैर फर्श पर तो दूसरा पैर भव्य चरणपादुका आसनी पर रखा गया है। 


बंगाली या अन्य मूर्तिकार जब मूर्ति बनाते हैं तो वह पीछे से पूरी तरह से खाली रहता है। उसमें सिर्फ सामने के हिस्से को ही सजाया जाता है। परंतु इस मूर्ति में पूरी मूर्ति को जीवंत बनाया गया है। माता की सवारी एक ही शेर होता है। माता दो शेरों वाले सिंहासन पर विराजमान हैं। शेर को मैटेलिक कलर दिया गया है। सिंहासन पर मसनद भी है।

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