श्रीमद्भागवत जीवन को अखंड सुख देने वाला ग्रंथ : स्वामी गोविंददेव गिरि

गोरखपुर, 27 अक्टूबर। मातनहेलिया परिवार और साकेतनगर हाउसिंग सोसायटी के तत्वावधान में लच्छीपुर स्थित साकेतनगर में आयोजित श्रीमद्भागवत सप्तदिवसीय कथा तृतीय दिवस बुधवार को व्यास पीठ से कथा वाचक स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज ने कथा का श्रवण कराते हुए कहा कि भगवान कपिल महामुनी के चरणों में माता देवहुती माता ने चरणों में प्रणाम किया। कपिल मुनि भगवत अवतार हैं यह माता को पता नहीं था वह भूल गई थी परंतु आज माता को ध्यान आया और पहचान गई की ये कपील मेरे पुत्र तो है परंतु वह केवल मेरे पुत्र नहीं वह भगवान के अवतार भी हैं और आज माता ने भगवान कपिल से क्षमा मांगते हुए प्रणाम कर प्रार्थना की हे प्रभु मेरा उद्धार करो। यह सुनकर भगवान कपिल महामुनी मां के पास देख कर स्मिथ (मंदमुस्कान) करते हुए मंद मंद मुस्कुराने लगे और कहा मां सुनो.. भगवान कपिल के मुखारविंद से निकला उपदेश कपिल गीता नाम से प्रसिद्ध हुआ। मां संसार का हर व्यक्ति सुख चाहता है, लेकिन सुख टिकता नहीं या हर इंसान अखंड सुख चाहता है लेकिन वह टिकता नहीं। श्रीमद्भागवत ग्रंथ जीवन को अखंड सुख देने वाला जीवन को सफल करने वाला आनंद देने वाला ग्रंथ है। भगवान कपिल कहते हैं आनंद का प्रवाह हमारे भीतर से बहता है परंतु जीव उसे बाहर ढूंढता है जीवन का आनंद तो अंदर ही है लेकिन हम उसे उजाले में सुगंध में में भौचक्के में ढूंढते हैं यह नहीं समझता कि यह सब मेरे अंदर ही है । भगवान कपिल ने मां को सांख्य योग का उपदेश किया है जैसे जड़ और चेतन यह सब संसार जड़ है जो उसे पाता है समझता हो उसे चेतन कहते हैं भगवान कहते हैं यह जीव मेरा अंश है जैसे जीव जड़ है और भगवान चेतन है। जब भगवान हमारे भीतर आ जाए तो यह जड़ शरीर जड़ रहता है क्या वह चैतन्य रूप बन जाता है, आनंद बाहर नहीं हमारे भीतर है और इसे पहचानने का सही रूप है भागवत भक्ति, संतों का कोई वेश नहीं होता है। संत सहनशील होते हैं संत के भीतर से सदैव करुणा झलकती है वह सब का भला ही चाहते हैं जो अनन्य होकर भक्ति कर लेते हैं। वह ही संत होते हैं, मां सुनो.. वे ही संत होते हैं और मां हम भगवान के भक्ति भोगों के लिए करते हैं सुख के लिए करते हैं। मां कभी संतो ने भगवान से सुख नहीं मांगा। मां.. वे तो केवल भगवत भक्ति मांगते हैं।

स्वामी गोविंददेव गिरि जी ने कहा कि धन दौलत किसी को दो-बस दे दो अपना प्यार मुझे ऐसे किसी प्रेमी भगवत भक्त दर्शन से कल्याण होता है। मन को भगवान में कैसे लगाएं यह साधना कपिल मुनि सबीज ध्यान योग का साधन बताते हुए कहते हैं मां... भगवान में ध्यान लगाना हो तो पहले अपने सब काम समापन करो और औरों के काम का विचार हम नहीं करें मन को जरा समाधानी रखो इंसान कमाने के लिए... दिनभर दौड़ता है। लेकिन भगवान की भक्ति में ध्यान नहीं लगाता। मां किसी के प्रति द्वेश क्रोध नहीं रखो वह अपना कितना भी बड़ा शत्रु हो लेकिन मा.. उस के भी प्रति क्रोध नहीं रखो नहीं तो मन शांत नहीं रहेगा। मां... एक आसन पर बैठने का प्रयास करो और सीधे बैठो प्राणायाम करो कपिल गीता में यह सब आया कि ध्यान योग के लिए क्या करना। मां... नित्य प्राणायाम करने वाले को कोई रोग नहीं होते चित्र शांत होता है इसके बाद भगवान कपिल मुनि ने भगवान नारायण का ध्यान कैसे करना यह बताया। कपिल मुनि ने भगवान का ध्यान उनके चरणों से प्रारंभ किया और मुख मंडल तक किया है । माता जी भगवान का ध्यान जब भगवान के मुख मंडल तक हो जावे इसके बाद कुछ नहीं करना जब भगवान का ध्यान पूर्ण हो जाता है भगवान के स्मित हास्य तक जो जीवात्मा पहुंच जाता है उसके बाद भगवान स्वयं उस जीव का कल्याण करते हैं। क्योंकि ध्यान से जीव का मन द्रवित होता है, करुणित हो जाता है। उसके बाद भगवान उसको संभालते हैं।

कथा व्यास स्वामी गिरि जी ने कहा कि पिघले हुए मन का नाम ही भक्ति है और इसके बाद रोज चेतना में विलीन हो जाता है। यह सांख्य के ज्ञान से भी होता है और यह भक्ति से भी हो जाता है परंतु ज्ञान और भक्ति दोनों से हो जावे तो उस जीव का कल्याण हो जाता है। मां के प्रार्थना पर ध्यान योग का उपदेश कर मां को प्रणाम किया और भगवान कपिल वहां से औरों को सिखाने चले जाते हैं और माता देवहूती का ध्यान चलत रहा। और वे नदी का रूप ले भगवान में विलीन हो गई । 

कथा व्यास ने कहा कि भगवती देवहूती की बहन माता अनुसूया का चरित्र बताते हैं, जहां भगवान दत्तात्रेय का अवतार होता है और एक बहन प्रसूति का इतिहास बताते हैं कि प्रसूति के ही घर में माता सती का जन्म होता है और सती का विवाह भगवान शिव से होता है जो आगे राजा दक्ष के अहंकार के कारण सती को यज्ञ कुंड में प्रवेश करना पड़ा राजा दक्ष को अहंकार हो गया कि मैं भगवान शिव का ससुर हूं इस कारण मैं मैं बड़ा हूं इसी कारण भगवान शिव और दक्ष में आगे चलकर क्लेश निर्माण हो गया और दक्ष ने सभी देवताओं को निमंत्रण दिया केवल भगवान शिव को निमंत्रण नहीं दिया यहीं से ही भगवान शिव और दक्ष में क्लेश निर्माण हो गया इसी कारण क्लेश आदि के बीच भगवान शिव का दक्ष ने अपमान किया इस अपमान को सती सह नहीं पाई और वह अग्निकुंड में प्रवेश कर लेती हैं। 

कथा व्यास ने कहा कि भगवान शिव सती के जले हुए कलेवर को उठाकर दुःखित मन से पूरे सृष्टि में घूमे इसी समय सती के अंग जहां-जहां कटकर गिरे वहां वहां सिद्ध पीठ निर्माण हो गए। पूरे सृष्टि में भगवती के शरीर से जगदंबा के सिद्ध स्थान निर्माण हुए इसी बीच स्वामी जी ने प्रियव्रत उत्तानपाद की कथा सुनाते हैं उत्तानपाद का शरीर उल्टा नहीं है लेकिन उसकी सोचने की क्षमता उल्टी थी उन की दो पत्नियां एक सुरुचि दूसरे सुनीति। सुनीति के पुत्र ध्रुव और सुरुचि के पुत्र उत्तम।

कथा व्यास ने कहा कि आगे चलकर एक घटना घटी है ध्रुव और उत्तम और अन्य कई बालक खेलते हुए रहने से थक जाते हैं। इसी बीच ध्रुव थककर राजा के गोद में जाकर बैठ जाते हैं यह देखकर सुरुचि दौड़ कर आती है और राजा के गोदी से ध्रुव को अपमानित कर हाथ पकड़ कर खींच कर अलग कर देती है यह ध्रुव सह नहीं पाते हैं और वह मां के पास आते हैं यह सारा वृत्तांत मां को बालकों से पता चल जाता है माता समझाती है परंतु वे समझ नहीं पाते हैं और राज को छोड़कर तपस्या के लिए वन में चले जाते हैं। नारद जी का दर्शन होता है नारद जी ध्रुव को समझाते हैं परंतु क्षत्रिय बालक होने के कारण वह समझते नहीं। नारद जी द्वारा मंत्र को प्राप्त कर मधुबन में जाकर तपस्या करते हैं। केवल 5 माह की तपस्या में ही भगवत प्राप्ति कर पुनः राज लौट कर आते हैं राज्य में ध्रुव का स्वागत होता है कुछ वर्ष राज करते हैं। ध्रुव का विवाह होता है उनकी भी दो पत्नियां जिसमें एक का नाम ईला और एक भ्रमि होती है। दोनों को पुत्र और कन्या होते हैं कुछ वर्ष राज पाठ करते हैं इस बीच उत्तम वन में वे यक्ष द्वारा मारे जाते हैं । विमाता भी जलकर समाप्त हो जाती है उसके बाद ध्रुव द्वारा पुनः बद्रिका आश्रम में साधना होती है अंत में वह शरीर मृत्यु पर विजय पाकर अपनी माता के साथ उत्तम लोक में चले जाते हैं कुछ सिद्ध पुरुष भी मृत्यु पर विजय कर वैकुंठ में जाते हैं केवल भक्ति मार्ग से ही यह सत्य है।

कथा व्यास ने कहा कि ध्रुव जी का वंश चला इसमें एक पापी का जन्म हुआ जिसका नाम वेन है यह गद्दी पर बैठ कर इस ने जनता को काफी काफी तकलीफ दिया अंत में ऋषि यों ने उसका मंथन किया जिसके कारण उनके मंथन से प्रुथू और अरची का जन्म हुआ। उन्होंने उत्तम राज्य किया। इसके बाद अनेक उत्तम पुरुषों का जन्म हुआ उसमें ऋषभदेव जी का भी जन्म हुआ उनका ऐसा व्रत देखकर राजा राजा अरिहंत ने जैन धर्म की स्थापना की उनके बड़े पुत्र राजा भरत उनकी पत्नी जिनका नाम पंचजनी उनको 5 पुत्र हुए राज पाठ बाढ़ देकर वह बन में तपस्या के लिए चल दिए एक गलती होती है इस कारण उनको तीन जन्म लेने पड़ते हैं अंतिम जन्म में वह पुनः मनुष्य जन्म में आते हैं और और इस जन्म में कुछ भी नहीं करना इसको धारण कर मूर्खों की तरह से अपना जीवन व्यतीत करने लगे। राजा रहुगन को जन्म मृत्यु, स्वर्ग नरक का उपदेश कर भेजते हैं, उद्धार करते हैं। अंत मे नरसिंह अवतार के साथ आज की कथा का विश्राम हुआ। संचालन अजय पोद्दार ने किया।

कथा के पूर्व विष्णु अजीतसरिया, हर्ष मातनहेलिया, संजय मातनहेलिया, शिव शरण दास, रामनिवास अग्रवाल, संतोष अग्रवाल, डॉ सत्यनारायण अग्रवाल समेत अन्य लोगों ने कथा व्यास का माल्यार्पण किया। कथा पंडाल में मेयर सीताराम जायसवाल भी मौजूद रहे।

यह कथा मातनहेलिया परिवार एवम साकेतनगर हाउसिंग सोसायटी, लच्छीपुर के तत्वावधान में *परमपूज्य स्वामी गोविंददेव गिरि जी महाराज* (कोषाध्यक्ष- श्री रामजन्मभूमि तीर्थ न्यास, अयोध्या) जी के श्री मुख से प्रतिदिन अपराह्न 3 बजे से 6.30 बजे तक होगी।

श्रीमद्भागवत सप्ताहिक कथा का आयोजन 25 से 31 अक्टूबर तक प्रतिदिन अपराह्न 3 से 6.30 बजे तक जारी रहेगा।

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