मानसरोवर रामलीला मैदान में भगवान श्रीराम की आरती शिव प्रताप शुक्ला ने की

गोरखपुर जिले के आर्यनगर श्री श्री राम लीला समिति द्वारा मानसरोवर रामलीला मैदान में भगवान श्रीराम जी, लक्छ्मण जी और हनुमानजी की आरती की गई। राज्य सभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला ने राम दरबार की आरती पूजन की। इस दौरान राज्य सभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला के अलावा रामय जी, सरदार जसपाल सिंह, सरदार नीटू सिंह, अरसद जमाल समानी, राजेश सिंह प्रधानाचार्य, उद्योग पति अशोक जालान का परिवार एवम अन्य गणमान्य लोग मौजूद थे। समिति के महामंत्री पुष्पदन्त जैन ने सभी अतिथियों को अंगवस्त्र पहनाकर एवं स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया।


_लिंग थापि बिधिवत करि पूजा , सिव समान प्रिय मोहि न दूजा_ 



गोरखपुर। आर्य नगर रामलीला समिति के तत्वावधान में बुधवार को अयोध्या की प्रसिद्ध माँ सरयू आदर्श रामलीला मंडल के पंडित शिव शरण मिश्र के संयोजन में कलाकारों ने विभीषण द्वारा भगवान राम की शरणागति, अंगद रावण संवाद, रामेश्वर स्थापना की लीला का मंचन किया। मंचन का प्रारम्भ राज्यसभा सांसद मा. शिव प्रताप शुक्ला, विद्या भारती के संगठन मंत्री रामय जी, शिशु मन्दिर के प्राचार्य राजेश सिंह, सरदार नीटू , सरदार जसपाल सिंह, समाजसेवी श्याम बिहारी अग्रवाल, पोद्दार द्वारा आरती के साथ शुरू हुआ । विभीषण का चरित्र एक उदात्त चरित्र है। जिन्हें अन्याय प्रिय नहीं है। वे केवल स्वार्थ की पूर्ति या राज्य पाने की व्यग्रता से ही रावण का परित्याग नहीं करते। उनका प्रयत्न यही था कि रावण बुराइयों का परित्याग कर दे। जगज्जननी सीता को लौटा दे, किन्तु यह सम्भव न होने पर ही उन्होंने रावण के विरुद्ध खुला विद्रोह किया और भरी सभा में श्रीराम के शरण में जाने की यही घोषणा की। उनके सहयोग से दुष्ट राक्षसों का संहार हुआ। यों तो विभीषण का जन्म भी राक्षस जाति में हुआ था पर वस्तुतः श्रीराम जाति को नहीं, वृत्ति को महत्त्व देते हैं। इसलिए राक्षसी वृत्ति का संहार करने के बाद वे विभीषण जैसे साधु राक्षस को ही लंका में सिंहासन प्रदान करते है । लीला मंचन में आगे भगवान श्री राम समुद्र को मनाते हैं बात न मानने पर आग्नेयास्त्र चलाकर समुद्र को सुखाने की सोचते हैं तब घबराकर समुद्र देव भगवान के सामने अनेकों रत्नों से भरी थाली लेकर उपस्थित होते हैं । और बताते हैं प्रभु मेरे उत्तर के किनारे पर अनेकों राक्षस है जो मुझे कष्ठ पँहुचाते है , आप उनका विनाश कर दीजिए । वानर सेना में नल - नील है, वे ही पुल बांधेंगे । वे शिल्प -शास्त्र के ज्ञाता है । श्री राम जी की आज्ञा से पुल बांधने के लिए बड़े-बड़े शिला खण्ड लाये गए । नल - निल ने पुल बाँधना शुरू कर दिया । श्री राम जी नित्य भगवान शिव का पूजन किया करते थे । समुद्र के किनारे का दिव्य वातावरण देखकर शिव जी की स्थापना कर पूजन का संकल्प लिया । लेकिन वहाँ शिवलिंग नही मिल सका । हनुमान जी महाराज को शिवलिंग लेने काशी क्षेत्र भेजा गया । उन्हें विलम्ब होता देख श्री राम जी ने स्वयं शिवलिंग बनाकर "रामेश्वर महादेव " की स्थापना की । यह देख आशुतोष भगवान शिव पार्वती जी सहित लिंग में प्रकट हुए भगवान श्री राम - लक्षमण जी ने पूजन करते है । आगे की लीला में अंगद ने रावण के दरबार में पांव जमाकर रामादल की शक्ति का अहसास कराया और युद्ध का ऐलान किया।रावण व अंगद दोनों ने एक-दूसरे से संवादों में युद्ध किया। जो दर्शकों को खूब पसंद आया। रावण के दरबार में अंगद ने पांव जमाकर रावण के एक-एक योद्धा को ललकारा और अंगद की ललकार सुनकर सबसे पहले रावण पुत्र अक्षय कुमार ने जोर आजमाया। फिर मेघनाथ ने गरजना के साथ जोर आजमाया। उसके बाद रावण के भाई कुंभकर्ण ने जाेर आजमाइश की। लेकिन रावण का कोई भी योद्धा अंगद का पांव तक नहीं हिला सका। तब रावण स्वयं पांव उठाने लगे तो पांव हटाकर अंगद ने कहा पांव छूने से मेरे न हरगिज मुक्ति पाएगा, पांव छू ले श्रीराम के जो चाहेगा मिल जाएगा। इसके बाद अंगद युद्ध का ऐलान करते है।लीला मंचन का विश्राम होता है । इस अवसर पर अध्यक्ष रेवती रमण दास,महामंत्री पुष्प दन्त जैन, विकास जालान, राजीव रंजन अग्रवाल, मनीष अग्रवाल सराफ, कीर्तिरमन दास, दीप अग्रवाल, जीतेन्द्र नाथ अग्रवाल जीतू , विनय गौतम, नवोदित त्रिपाठी, सन्तोष अग्रवाल शशि, श्याम मोहन अग्रवाल सहित अनेकों की सहभागिता रही।

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