प्रभु श्रीराम की आरती-पूजन के बीच हुआ रामलीला का मंचन


आर्यनगर रामलीला समिति (मानसरोवर रामलीला मैदान) द्वारा आयोजित मंचन

अयोध्या में चौदह वषों तक चरण पादुका ने किया शासन

आर्यनगर श्री रामलीला समिति के तत्वावधान में रविवार को अयोध्या की प्रसिद्ध माँ सरयू आदर्श रामलीला मंडल के पंडित शिव शरण मिश्र के संयोजन में कलाकारों ने श्री राम जी का मिलन, जनक जी आगमन, राम भरत संवाद , भरत जी का चरण पादुका लेकर वापस लौटना, पंचवटी प्रवेश व विश्राम का मंचन किया। लीला मंचन का प्रारम्भ भाजपा महिला मोर्चा की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रेखा गुप्ता, प्रदेश उपाध्यक्ष अस्मिता चन्द, क्षेत्रीय अध्यक्ष अमिता गुप्ता, शोभित मोहन दास, महामंत्री पुष्प दन्त जैन व उपनियंत्रक नासुको सत्य प्रकाश सिंह द्वारा मर्यादा पुरूषोत्तम श्री रामजी की आरती के साथ शुरू हुआ। सुमंत्र जी कोल भील निषादराज व केवट के सहयोग से भरत जी को गंगा जी पार करवा कर चित्रकूट पहुंचवा देते है जहाँ श्री राम जी जानकी जी के साथ विराजमान है। उनके साथ गुरु वशिष्ठ जी व अयोध्या की प्रजा भी रहती है । गुरु वशिष्ठ जी द्वारा महाराज दशरथ के देवलोक गमन का समाचार श्री रघुनाथ जी को बताते हैं , भगवान के नेत्र से अश्रुधारा निकल पड़ती है यह प्रसंग आते ही लीला मंचन देख रहे दर्शक भी अपने को नही रोक पाए । दर्शकों के आँखों में भी अश्रु आ गए । गुरु वशिष्ठ जी के सानिध्य में महाराज दशरथ जी का पिंडदान श्री राम जी द्वारा सम्पन्न किया जाता हैं । महाराज जनक जी का आगमन भी वहाँ होता है। जानकी जी को वनवासी वेष में देखकर विदेहराज का ह्रदय भर आया । जानकी जी को वापस ले जाने को कहते हैं लेकिन वह नही जाती की जहाँ श्री राम जी रहंगे वही वो भी रहेंगी । भरत जी राम जी से बारम्बार अनुनय विनय करते है , क्षमा याचना करते हैं कि आप अयोध्या लौट चलें , राम जी व भरत जी से काफी समय तक संवाद होता है । माता कौशल्या भी श्री राम को समझाती है कि भरत यह विरह सहन नही कर सकेगा ।लेकिन भगवान राम पिता जी महाराज दशरथ की आज्ञा का पालन करते हुए जाने से इनकार कर देते है । तब भरत जी आग्रह करते हैं कि मेरे प्राण चौदह वर्ष तक टिकने के लिए कोई आधार दीजिये । तब श्री राम जी ने भरत जी को चरण पादुका प्रदान की तत्पश्चात भरत जी श्री राम की पादुका को अपने शीश पर पधराकर अयोध्या के लिए प्रस्थान करते है। अयोध्या पहुँच कर चरण पादुका का पूजन कर सिंघासन पर पधराकर श्री राम जी के वापस आने तक इसी प्रकार चौदह वर्षो तक अयोध्या का राज चलाते है। आगे की लीला मंचन करते हुए कलाकारों ने दिखाया कि श्री राम जी चित्रकूट छोड़कर आगे की यात्रा करते हुए ऋषि अत्रि व अनसुया जी के आश्रम पँहुचते है वहाँ ऋषि मुनियों द्वारा भगवान स्वागत किया जाता है । ऋषियों के साथ सत्संग करके श्री राम जी शरभंग ऋषि के आश्रम वहाँ शरभंग ऋषि स्तुति करते-करते देहत्याग कर भगवान के धाम चले जाते है।सुतीक्षण ऋषि, अगत्स्य ऋषि के आश्रम में दर्शन देते हुए श्री राम, लक्षमण जी व जानकी जी गोदावरी नदी के तट पर पंचवटी में विराजमान होते है। वहाँ इंद्र का पुत्र जयन्त कौए का स्वरूप धारण कर श्री जानकी जी के चरण पर अपनी चोंच से प्रहार करता है। श्री जानकी जी के चरणों से रुधिर धारा निकली देख श्रीराम जी जयन्त पर क्रोध करके अस्त्र प्रहार कर देते है, जयन्त वहाँ से अपने प्राणों की रक्षा के लिए भागता है। इसी के साथ लीला मंचन का विश्राम होता है। 

इस अवसर पर महामंत्री पुष्प दंत जैन, कीर्ति रमण दास, विकास जालान, मनीष अग्रवाल सराफ, राजीव रंजन अग्रवाल ,दीप अग्रवाल ,जितेन्द्र नाथ अग्रवाल ,विनय गौतम ,ब्रजेश मणि मिश्र, सन्तोष राजभर, अमन गौड़, पीयूष अग्रवाल, नवोदित त्रिपाठी सहित अनेकों की सहभागिता रही।

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