ब्रह्मलीन पंडित मेघराज मिश्र के चतुर्थ पुण्यतिथि पर विद्वत् गोष्ठी

गोरखपुर। धर्मशाला बाजार के जटाशंकर स्थित केन्द्रीय कार्यालय  प्राचीन शिव मन्दिर मे अखिल भारतीय विद्वत् महासभा के संस्थापक ब्रह्मलीन पंडित मेघराज मिश्र के चतुर्थ पुण्यतिथिि शनिवार को  पे विद्वत् गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें सर्वप्रथम संस्थापक ब्रहृमलीन पं मेघराज मिश्र जी के प्रतिमा पर विद्वानों द्वारा पुष्प वर्षा एवं माल्यार्पण कर संस्थापक ज़ी को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की गई उसके बाद विद्वानों द्वारा मंगलाचरण का कार्यक्रम द्वीप प्रज्जविलत करके प्रारम्भ हुआ। संस्था के अध्यक्ष डॉ राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने ब्रहृमलीन पं मेघराज मिश्र जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि परम पूज्य पंडित मेघराज मिश्र जी गुरुदेव भगवान को अखिल भारतीय विद्वत महासभा के तरफ से श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं और इस आयोजन में उपस्थित समस्त संरक्षक एवं पदाधिकारी गणों का आभार प्रकट करते है आज उनके चतुर्थ पुण्यतिथि के अवसर पर उनको स्मरण करते हैं और उनके द्वारा बताए गए मार्ग पर चलने का पूरा विद्वत समाज प्रयास कर रहा है मैं आजीवन उनका आभारी रहूंगा संस्कृत की सूक्ति है धर्म के बिना यह शरीर नश्वर है यतो धर्मस्ततो जय जहां धर्म है वही विजय है अखिल भारतीय विद्वत महासभा के महामंत्री आचार्य धर्मेंद्र कुमार त्रिपाठी ने कहा जन्म से लेकर षोडश संस्कार का ज्ञान इस महा सभा के अंतर्गत विद्वत जन व्रत पर्व त्योहार के बारे में जो निर्णय करते हैं उसे समाज के लोग स्वीकार करते हैं वेद का उद्घोष है संस्कार हीन व्यक्ति को वेद भी पवित्र नहीं कर सकते है हमारा धर्म शास्त्र वसुधैव कुटुंबकम यह पूरी वसुधा ही परिवार है इसी क्रम में ज्योतिष यज्ञ संस्कार समीति के अध्यक्ष डॉ दिग्विजय शुक्ल जी ने भी पं मेघराज मिश्र जी की प्रतिमा पर माल्यार्पण करते हुए अपने वक्तव्य देते हुए कहा कि संस्थापक महोदय विद्वान तो थे ही वे एक देवपुरुष भी थे,अखिल भारतीय विद्वत महासभा के संस्थापक ब्रह्मलीन पंडित मेघराज मिश्र उन्होंने व्रत पर्व में मत भिन्नता को देखते हुए इस विद्वत महासभा की स्थापना की उस समय अनेक भ्रांतियां समाज में व्याप्त थी इसी उद्देश्य दृष्टि में रखते हुए आज उनके पुण्यतिथि के अवसर पर उनके सुयोग्य पुत्र पंडित देवेंद्र प्रताप मिश्र इस महासभा को आगे बढ़ा रहे हैं इस क्रम में निरंतर नूतन मार्ग एवं रास्ता प्रशस्त कर रहे हैं हमें भगवान शिव से यही प्रार्थना है कि निरंतर उनके कृतित्व को आगे बढ़ा रहे हैं। संस्था के कोषाध्यक्ष पं देवेन्द्र प्रताप मिश्र ने कहा कि मेरे पिता पंडित मेघराज मिश्र जी जो अब हम लोगों के बीच नहीं हैं फिर भी उनकी बातें आज भी मेरे दिल दिमाग में है वे कहते थे कि शिक्षा एक किताबी अध्ययन है, और ज्ञान एक मनुष्य के मस्तिष्क की उपज है।

शिक्षा को किताब के द्वारा अर्जित किया जा सकता है परंतु ज्ञान प्राप्ति के लिए हमें समाज में उठना बैठना पड़ता है। उठने बैठने का तात्पर्य आना जाना और सभी लोगों के संबंधों को बनाए रखने से हैं।

शिक्षा के द्वारा हम अपना जीवन यापन करने के लिए धन अर्जित कर सकते हैं ,परंतु ज्ञान प्राप्त करके मनुष्य समाज में इज्जत और मान सम्मान प्राप्त करता है।

शिक्षा प्राप्त करने के लिए हमें पैसे और किताबों व स्कूल की आवश्यकता होती है परंतु ज्ञान प्राप्ति के लिए हमें समाज में आना जाना अन्य समारोह में शामिल होने के द्वारा ज्ञान अर्जित कर पाते हैं। और मैं उन बातों को अपने जीवन में प्रयोग भी करता रहता हूं। समारोह में उपस्थित विद्वतजन पं नवनीत चतुर्वेदी, आचार्य कृष्ण कुमार मिश्र, आचार्य अंकित राम त्रिपाठी, प्रधानाचार्य पं घनश्याम पांडे,पं प्रदीप शुक्ला, संस्था के सलाहकार पं सतेन्द्र कुमार पाण्डेय,पं ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी,पं प्रेम नारायण तिवारी, आचार्य गणेश पाण्डेय, आचार्य अरविंद मिश्र, आचार्य अभिषेक ओझा, आचार्य कृष्ण कांत त्रिपाठी,पं हरिशंकर तिवारी,पं कुबेर नाथ त्रिपाठी, आचार्य गोपाल राम त्रिपाठी,पं अखिलेश त्रिपाठी,पं प्रमोद द्विवेदी, एवं काफी संख्या में विद्वानों की सहभागिता रही है। भवदीय अखिल भारतीय विद्वत महासभा गोरखपुर।

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