72 घंटे का निर्जला उपवास का पर्व छठ 8 से


तृतीय दिन बुधवार

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार यह निर्जल उपवास का रहेगा। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 33 मिनट पर ही और षष्ठी तिथि का मान दिन में 1 बजकर 58 मिनट तक पश्चात सप्तमी है। नक्षत्र उत्तराषाढ़ है। यह रात को 9 बजकर 36 मिनट तक रहेगा। उत्तराषाढ़ का नक्षत्र स्वामी सूर्य ही हैं। इसलिए यह व्रतार्चन के लिए पूर्ण प्रशस्त और उत्तम है। यह व्रती महिलाओं के लिए कठोर उपवास का दिन रहता है,जल भी ग्रहण नही करती हैं। मध्याह्न में सूप और दौरी (डलिया) सहित धूमधाम से षष्ठी माता और सूर्यदेव का गीत गाती हुई जलाशय पर पहुॅचती हैं। सूप में ठेकुआ (जो गेहूॅ के आंटे और गुड़ से बनता है और इस पर सूर्यदेव का चक्र अंकित रहता है।) तथा लडुआ (चावल के आंटे का) और विभिन्न प्रकार के फलों का प्रसाद होता है। इस व्रत में सूप और डलिया ढोने का बड़ा महत्व है। इसे व्रती महिला का पति, पुत्र या घर का कोई पुरूष ही उठाकर जलाशय तक लाते हैं। सायंकाल व्रती महिला जलाशय मे खड़ी होकर सूर्यास्त के समय सूर्यदेव को जल एवं दूध से अर्घ्य देती है, साथ ही सूप में लाया प्रसाद चढ़ाती है। इस दिन सूर्यास्त 5 बजकर 27 मिनट पर है। इस समय सांयकालीन अर्घ्य प्रदान किया जायेगा।


सूर्योदय के समय अर्घ्य का चतुर्थ दिवस

यह 11 नवम्बर दिन बृहस्पतिवार को हैं। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 34 मिनट पर है। इसी समय सूर्योदय कालीन अर्घ्य दिया जायेगा। इस दिन श्रवण नक्षत्र है। जो निर्मल बुद्धि और वैभव की वृद्धि करने वाला रहेगा। सप्तमी नक्षत्र दिन में 12 बजकर 10 मिनट तक है। इस चौथे दिन भी व्रती महिला जलाशय मे ख़ड़ी होकर अरूणोदय की प्रतिक्षा करती हैं। जैसे ही क्षितिज पर अरूणिमा दिखती है, वह मन्त्रोचार के साथ भगवान भुवन भास्कर को अर्घ्य प्रदान करती हैं। तत्पश्चात ब्राह्मणों को दक्षिणा देती है और प्रसाद वितरण के बाद व्रत का पारण करती है।

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