आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,
दीपावली पर्व मां आद्या शक्ति की गुणात्मक स्वरूप के पूजन का दिन है। इसलिए इस दिन महालक्ष्मी के साथ-साथ महासरस्वती एवं महाकाली की भी पूजा की जाती है। व्यवसायी दीपावली से नववर्ष का आरम्भ मानते हैं ,इसलिए इस दिन नए बही खातों का पूजन, तुला (तराजू)तिजोरी ,व्यवसाय स्थान पर प्रयुक्त मशीनरी आदि का पूजन किया जाता है। दीपावली पर्व प्रकाशोत्सव है। प्रकाशोत्सव को मनाने के अनेक कारण किए जाते हैं। भगवान राम जब 14 वर्ष का वनवास पूरा करने के पश्चात अयोध्या वापस लौटे थे तब अयोध्या वासियों ने इस दिन को उत्सव के रूप में मनाया और रात्रि में दीपमालाएं प्रज्जवलित की थी। तब से भारतवर्ष में यह पर्व प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। यह भी आख्यान मिलता है कि वामन अवतार में जब भगवान विष्णु ने बलि के अहंकार को भी नष्ट कर दिये थे और उसे पाताल लोक भेज दिये। तब उन्होने यह भी व्यवस्था दी थी कि पृथ्वी पर धनत्रयोदशी से दीपावली तक तीन दिन तक बालि का राज्य रहेगा। इस बलिराज के दौरान जो व्यक्ति दीपमालाएं प्रज्जवलित करेगा ,उसके यहां लक्ष्मी स्थायी रूप से निवास करेंगी। माना जाता है कि तबसे इन तीन दिनों में दीपमालाएं प्रज्जवलित की जाती हैं। द्वापर युग में भगवान श्री कृष्ण ने नरकासुर का वध किया तो ब्रज में दीपमालाएं प्रज्वलित की गई। तब से यह पर्व प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। दार्शनिक दृष्टि से देखें तो यह अन्धेरे को दूर कर प्रकाश को लाने का पर्व है। न केवल रूप से वरन् आंतरिक रूप से भी मन को सत्य के प्रकाश से आलोकित करने का पर्व है। महालक्ष्मी से जुड़ा हुआ पर होने के कारण दीपावली स्वतः ही धन प्राप्ति के लिए उपासना का पर्व भी बन गया है। इसके अतिरिक्त यह भारतीय संस्कृति में ऐसे वार्षिक पर्व के रूप में स्थापित हो चुका है जिसमें घर के वार्षिक साफ सफाई व मरम्मत करवाई जाती है ।नई वस्तुएं खरीदी जाती है। और आगामी वर्ष को सुखी और संपन्न बनाए रखने के लिए भौतिक एवं आध्यात्मिक प्रयास किए जाते हैं।
Comments