इस दिन क्यों दी जाती थी बच्चे को कालभैरव को बलि

आंवला नवमी पूजा विधि, सामग्री और कथा

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

आंवला नवमी पूजा विधि सामग्री 

  • आंवले का पौधा पत्ते एवं फल, तुलसी पत्र
  • कलश एवं जल
  • कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा
  • धूप, दीप
  • श्रृंगार का सामान, 
  • दान के लिए अनाज
  • आंवला नवमी पूजा विधि, सामग्री और कथा
  • अक्षय नवमी पर आंवला वृक्ष का पूजन करती महिलाएं।

आंवला नवमी पूजा विधि 

  • प्रातः जल्दी उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। 
  • आंवले के पेड़ की पूजा कर उसकी परिक्रमा करें। 
  • आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की हल्दी, कुमकम, फल-फूल आदि से विधिवत् पूजा करें।
  • आंवला वृक्ष की जड़ में जल और कच्चा दूध अर्पित करें।
  • आंवले के पेड़ के तने में कच्चा सूत या मौली लपेटते हुए आठ बार परिक्रमा करें।
  • इसके बाद पूजा करने के बाद कथा पढ़े या श्रवण (सुने) करें।
  • महिलाएं बिंदी,चूड़ी, मेहंदी, सिंदूर आदि आंवला के पेड़ पर चढ़ाएं। 
  • इस दिन ब्राह्मण महिला को सुहाग का समान, खाने की चीज और पैसे दान में देना अच्छा मानते है। 

आंवला या अक्षय नवमी पूजा कथा 

एक व्यापारी और उसकी पत्नी काशी में रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन व्यापारी की पत्नी को जीवित बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने देने की किसी ने सलाह दी। व्यापारी की पत्नी ने बात मानकर ऐसा ही किया और परिणाम स्वरूप वो रोग ग्रस्त हो गई।अपनी पत्नी की यह हालत देख व्यापारी बहुत दुखी था। उसकी पड़ोसन ने एक दिन उससे कहा कि यदि वह किसी बच्चे को कालभैरव को बलि दे देवे तो उसे सन्तान की प्राप्ति होगी। उसने यह बात अपने पति को बताई, लेकिन उसके पति ने ऐसा दुष्कृत्य न करने की सलाह दी। उसने न मानी और एक बच्चे को चुराकर भैरव बाबा को बलि चढ़ा दी। इस कृत्य से उसे बच्चा तो न हुआ, वरन वह बच्चा प्रेत होकर उसे सताने लगा। कालान्तर वह स्त्री कुष्ठ रोग से ग्रसित हो गयी। उसके पति ने उसे सलाह दी कि वह वृन्दावन जाकर आंवला नवमी के दिन अनुष्ठान करे और भगवान नारायण की उपासना तथा आंवले का सेवन प्रारम्भ करे। उसने अपने पति की सलाह मानकर वृन्दावन चली गई और वहा रहकर आंवला नवमी के दिन भगवान विष्णु की पूजा की। ऐसा करने से इसी व्रत और अर्चन के प्रभाव से उसका कुष्ठ रोग समाप्त हो गया और वह स्वस्थ हो गयी। अन्त मे नारायण का स्मरण करते हुए वह सम्पूर्ण पापों से मुक्त होकर परमगति को प्राप्त हुई। पक्ष की नवमी को आंवला नवमी का व्रत रहने को कहा। व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि विधान के साथ पूजा की और उसे सुंदर शरीर के साथ ही पुत्र की प्राप्ति भी हुई। तभी से महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना करते हुए आंवला नवमी का व्रत रखती है। 

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