भारत पर आक्रमण हमारा धर्म, संस्कृति एवं व्यवस्था को बदलने का उद्देश्य : सुभाष

अमृत महोत्सव : देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ पर मनाया जा रहा है।

गोरखपुर। पक्कीबाग स्थित सरस्वती शिशु मन्दिर में बुधवार को विद्या भारती अखिल भारतीय शिक्षा संस्थान द्वारा आयोजित अमृत महोत्सव कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एवं मुख्य वक्ता आदरणीय सुभाष जी प्रांत प्रचारक गोरक्ष प्रांत, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हुआ। इस समय देश की आजादी की 75 वीं वर्षगांठ हम सभी लोग मना रहे हैं। 75 वर्ष बीतने के बाद भी हमें यह समझना होगा कि अंग्रेजों का भारत पर आक्रमण सिर्फ धन संपदा लूटने के लिए नहीं था, उनका आक्रमण बहुआयामी था जिसमें हमारा धर्म, हमारी संस्कृति एवं व्यवस्था को बदलना उनका उद्देश्य था। हमारे देश के माहपुरुषों का संदेश सिर्फ हमें अच्छा नहीं बनाना था बल्कि संपूर्ण विश्व को अच्छा बनाना था।

हमे इतिहास में यह पढ़ाया जाता है कि आर्य बाहरी थे अर्थात वे मध्य एशिया से आए थे, यह गलत तथ्य हमें पढ़ाया जाता है। आर्य यहीं के निवासी थे। आर्य का अर्थ है श्रेष्ठ। 

उन्होंने कहा कि देश के लिए बलिदान होने वाले युवा क्रांतिकारी सरफिरे नहीं थे, वे यह जानते थे कि वे क्या कर रहे और क्यों कर रहे।

हमें यह पढ़ाया जाता है कि वास्कोडिगामा ने भारत की खोज 1498 में की। क्या इसके पहले भारत नहीं था ? या खो गया था ? हमें हमारा इतिहास बहुत ही तोड़ मरोड़ कर पढ़ाया जाता है। भारत का उत्कर्ष गंगा, गऊ, गणेश, गीता एवं ऋषि - महात्मा हैं।

भारत कभी भी पूर्णतः पारितंत्र नहीं रहा। विभिन्न हिस्सों में सतत संघर्ष निरन्तर चलता रहा। 1763 में हमारे देश के साधु-संतों ने अंग्रेजों का सामना किया। ऐसी अनेक तिथियां है जिन पर हमारे आदिवासी योद्धाओं ने अंग्रेजों से लोहा लिया। 1557 से पहले रामसिंह कूका ने देश के लिए काम किया। 1875 से 1925 तक बिरसा मुंडा ने अपने पेट की चिंता न करते हुए अंग्रेजों को परास्त किया। 1857 की क्रांति की कहानी हम लोगों ने पढ़ी है रानी लक्ष्मी बाई, मंगल पाण्डेय, भगत सिंह आदि लोगों ने किस प्रकार से भारत माता के लिए काम किया। अंग्रेजों ने ऐसे काले कानून बनाए थे जिसके द्वारा किसी भी भारतीय को बिना किसी आधार के जेल में डाल कर उस पर मुकदमा चलाया जा सकता था जिसके प्रति कोई भी भारतीय अपील नहीं कर सकता था।

चौरी चौरा में जन क्रांति हुई थी जिसको अंग्रेजों ने बहुत छोटी घटना के रूप में दिखाया था। 1923 में काकीनाडा में एक घटना घटी है कांग्रेस के अधिवेशन में वंदे मातरम गाने से इनकार कर दिया जाता है फिर भी देश के कुछ राष्ट्र भक्तों ने वंदे मातरम गाया।

रक्षा सूत्र बांधना एक शुभ कार्य है परंतु बाहरी शक्तियां इसे नीचा दिखाने का कार्य करती हैं। पंडित दीनानाथ दीक्षित ने माताओं बहनों किसानों मजदूरों का एक संगठन बनाया था जो भारत माता के लिए काम करते थे। काकोरी कांड को अनजाम देने वाले महान क्रांतिकारी पंडित राम प्रसाद बिस्मिल का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि राम प्रसाद बिस्मिल अपना मुकदमा स्वयं लड़ना चाहते थे। अंग्रेजों ने अनुमति तो दे दी लेकिन उनको लगा बिस्मिल अपना मुकदमा जीत जाएंगे इसलिए उन्होंने षड्यंत्र के तहत उनका मुकदमा दूसरे को हस्तांतरित कर दिया। इस पर राम प्रसाद बिस्मिल ने कहा यदि देश हित में मरना पड़े तो हम हजारों बार मरने को तैयार हूँ। बिपिन चंद्र पाल एवं भगिनी निवेदिता का जिक्र करते हुए कहा कि यह भारत मां के असली सपूत हैं विद्यार्थियों ने भी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर के देश की आजादी के लिए काम किया।

उन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की भूमिका के बारे में चर्चा करते हुए बताया कि स्वतंत्रता आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों का भी योगदान था। सवयं संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार बंगाल के क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति के सक्रिय सदस्य थे। सर्वप्रथम पूर्ण स्वराज की बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ही की, गौ हत्या पर प्रतिबंध की मांग भी संघ ने की, संघ ने यह भी प्रस्ताव भी रखा था की विश्व में जहां-जहां अंग्रेजों का अधिपत्य है उन देशों को स्वतंत्र किया जाए, जिसे वर्तमान कांग्रेस नेतृत्व ने अस्वीकार कर दिया।

इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ समय अतिथियों द्वारा किया गया कार्यक्रम की प्रस्ताव की रखते हुए डॉक्टर सुरेंद्र दुबे जी क्षेत्रीय अध्यक्ष विद्या भारती पूर्वी उत्तर प्रदेश ने कहा कि 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता मिली जिसमें सिर्फ सत्ता का हस्तांतरण हुआ 1857 में स्वाधीनता की प्रथम लड़ाई प्रारंभ होती है हमें अब तक यह पढ़ाया जाता रहा कि दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल। परंतु यह वास्तविकता नहीं है देश की आजादी हेतु लाखों आजादी के मतवालों ने अपना बलिदान दिया जिसके फलस्वरूप हमें आजादी प्राप्त हुई।

हमारे इतिहास में हजारों ऐसे बलिदानों का कोई जिक्र नहीं है जिन्होंने देश की आजादी हेतु अपना बलिदान दिया। उन्होंने कहा कि आजादी की लड़ाई में मातृशक्ति की भी भूमिका रही है जिसका विवरण हमारे इतिहास में नहीं मिलता। इस क्रम में मातंगिनी हाजरा, कनकलाता बरूआ, भीकाजी कामा ऐसे कई नामों का उल्लेख करते हुए उन्होंने क्रांतिवीर सूर्य सेन के बारे में भी बताया कि 1930 में सूर्यसेन से अंग्रेजी सेना भय खाती थी उन्होंने अंग्रेजों की संपूर्ण संचार व्यवस्था को ध्वस्त कर दिया था। उन्हें बेहोश करने के पश्चात अंग्रेजों ने उन्हें फांसी दी। उन्होंने ऐसे समस्त स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अपनी बात समाप्त की।

अध्यक्षीय उद्बोधन में श्रीमान शिव जसवल जी (अवकाश प्राप्त मेजर जनरल) ने 1971 की भारत-पाकिस्तान की लड़ाई की कुछ घटनाओं जिक्र करते हुए ऑपरेशन सर्च लाइट के बहाने पाकिस्तान द्वारा 30 लाख नागरिकों के नरसंहार के षड़यंत्र को उजागर किया। उन्होंने कहा की हमें देश में आंतरिक दुश्मनों से भी लड़ना है और पाकिस्तान और चीन जैसे बाहरी दुश्मनों से भी जिसके लिए हमें हमारी सेना को और सशक्त और मजबूत होना पड़ेगा। उन्होंने कहा आज विश्व के जाने-माने संस्थानों डॉक्टरों आदि में भारतीय नेतृत्व कर रहे हैं उन्होंने कहा कि हमारे देश में काबिलियत की कमी नहीं है।

आभार ज्ञापन जिया लाल जी प्रदेश निरीक्षक जन शिक्षा समिति गोरक्ष प्रांत के द्वारा किया गया एवं अतिथि परिचय कमलेश सिंह प्रदेश निरीक्षक शिशु शिक्षा समिति द्वारा किया गया। इस अवसर पर पृथ्वीराज सिंह जी माननीय प्रांत संघचालक गोरक्ष प्रांत, श्री रामय जी संगठन मंत्री विद्या भारती गोरक्ष प्रांत, शिवजी सिंह, बलराम अग्रवाल जी प्रबंधक पक्कीबाग, प्रधानाचार्य डॉ राजेश सिंह जी, अरुण मल्ल जी, श्री प्रेमशरण मिश्र जी, अभय जी, उदय जी, हर्षवर्धन जी, पुनीत पांडे आदि उपस्थित रहे।

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