कार्तिक नवमी में किए गए दान और धर्मार्थ कार्य से अक्षय की प्राप्ति, आंवला नवमी कल

अक्षय नवमी 13 नवम्बर दिन शनिवार को

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र ने बताया कि कार्तिक मास में हिन्दू मान्यता के अनुसार बहुत से त्यौहार मनाये जाते है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी के नाम।से जाना जाता है। मान्यता है कि आंवला या अक्षय नवमी के दिन भगवान कृष्ण वृन्दावन से मथुरा गए थे। इस दिन उन्होंने अपने कर्मक्षेत्र में कदम रखा था। आंवला नवमी की पूजा खास तौर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। आइए जानते हैं आंवला नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है। साथ ही जानते हैं आंवला नवमी से जुड़ी कथा, पूजा सामग्री और पूजा विधि- 


अक्षय नवमी या आंवला नवमी कार्तिक शुक्ल नवमी को कहा जाता है। यह 13 नवम्बर दिन शनिवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 35 मिनट पर और नवमी तिथि का मान प्रातः काल 9 बजकर 37 मिनट तक पश्चात दशमी तिथि है। इस दिन शतभिषा नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और सायंकाल 7 बजकर 41 मिनट तक है। इस दिन आनन्द नामक महा औदायिक योग भी है। अतः पूर्ण प्रशस्त और उत्तम दिन के रूप मे मान्य रहेगा।

हिंदू धर्म के सबसे बड़े अनुष्ठानों में एक अक्षय नवमी को भी माना गया है। अक्षय नवमी के दिन किए दान या किसी धर्मार्थ कार्य का लाभ व्यक्ति को वर्तमान और अगले जन्म में प्राप्त होता है। यह देव उठनी एकादशी से दो दिन पूर्व होता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार अक्षय नवमी के दिन सतयुग प्रारंभ हुआ। अतः इसे युगादि तिथि भी कहा जाता है। साथ ही यह भी मान्यता है कि एक अन्य कल्प में इसी दिन त्रेतायुग भी प्रारम्भ हुआ था, अतः इसे त्रेतायुगादि तिथि भी माना गया है। इस दिन को किसी भी पुण्य कार्य के लिए अनुकूल और शुभ समय माना जाता है। मान्यता है कि आंवले के वृक्ष में अनेक देवताओं का निवास होता है। इस दिन जगधात्री देवी (सत्ता की देवी) के पूजन का विधान भी है। ऐसी मान्यता है कि जो इस दिन पवित्र तीर्थों की परिक्रमा करते या दान देते हैं उन्हें अक्षय फल प्राप्त होता है। यह अत्यन्त श्रद्धा और समर्पण के साथ मनाया जाता है। इस दिन अनुष्ठान करने करने से इच्छाएं पूर्ण होती है और भिक्षा देना अभी बहुत शुभ माना जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने कूष्माण्ड दानव का वध कर ब्रह्माण्ड में धर्म को प्रतिस्थापित किया था, इससे इस दिन का और भी महत्वपूर्ण बढ़ जाता है। इस दिन स्नान, पूजन, तर्पण तथा अन्नादि के दान से अक्षय फल प्राप्त होता है। इस व्रत मे पूर्वाह्न व्यापिनी तिथि ली जाती है।धर्मशास्त्र के अनुसार यदि यह दो दिन हो तो- "अष्टम्या नवमी विद्धा कर्तव्या फलकांक्षिणा, न कुर्यान्नवमी तात दशम्यां तु कदाचन।।" -ब्रह्मवैवर्त पुराण के इस वचन के अनुसार अष्टमी विद्धा नवमी ग्रहण करनी चाहिए। दशमी विद्धा नवमी त्याज्य है।


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