सप्तमी तिथि को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य, गुरुवार को प्रातः पारण

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

सप्तमी तिथि को प्रातः उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देने के बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता हैp। इसी दिन इस व्रत की समाप्ति भी होती है और व्रती द्वारा भोजन ग्रहण किया जाता है ।किसी भी पर्व को मनाने के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य ही होता है। छठ पर्व को मनाने के पीछे अनेकानेक पौराणिक एवं लोकगाथाएं हैं एवं एक लम्बा इतिहास छिपा हुआ है। भारत में सूर्यीपासना की परम्परा वैदिक काल से ही रही है। महाभारत की एक कथा में सूर्योपासना- पूजा का सविस्तार वर्णन मिलता है। वैदिक साहित्य में भी सूर्य को सर्वाधिक प्रत्यक्ष देव माना गया है। सन्थ्योपासना नित्य अवश्यकरणीय कर्म में मुख्य रूप से भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। उपस्थान किया जाता है और सूर्यमण्डल में भगवान नारायण का ध्यान किया जाता है।छठ पर्व की एक लोकगाथा को द्रौपती से जोड़ते हुए ऐसा कहा जाता है कि जब पाण्डवों जुए के खेल में अपना सम्पूर्ण राजपाट हार गए,तब उन्हे राज छोड़कर जंगल जाना पड़ा।पांडव थब राज्यविहीन होकर जंगल में भटक रहे थे, तो उस समय द्रौपदी भी उनके साथ थी। पाण्डवों की स्थित से दुःखी द्रौपदी ने जुए में खोए राज्य की प्राप्ति और सुख समृद्धि एवं शान्ति की कामना को लेकर कार्तिक मास में षष्ठी तिथि को सूर्य की आराधना उपासना की थी।द्रौपदी की अपार श्रद्धा भक्ति से प्रभावित होकर भगवान सूर्य ने उसे मनोवांछित फल प्रदान किया जिससे पाण्डवों ने अपना खोया हुआ राज्य प्राप्त कर लिया था।

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