षष्ठी तिथि को ढलते सूर्यदेव को दिया जाता है अर्घ्य

अस्ताचलगामी : मनोकामना पूर्ण के लिए व्रती सूर्यदेव को सायंकाल देती हैं अर्घ्य, जाने क्या है छठ पर्व का महत्व


आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

भारत पर्व और त्यौहारों का देश है। यहां प्रत्येक दिवस, प्रत्येक मास कोई न कोई पर्व अवश्य मनाया जाता है। पर्वोत्सव की दृष्टि से कार्तिक मास का विशेष महत्व है। इस मास में यम पूजा, नरक चतुर्दशी, उजाले का उत्सव दिवाली के अलावा एक अत्यन्त ही महत्वपूर्ण एवं पवित्र "छठ पर्व" भी मनाया जाता है। यह महापर्व बिहार के सर्वाधिक प्रचलित एवं लोकप्रिय है। इस अवसर पर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य नारायण की पूजा की जाती है। श्रीवाल्मीकि रामायण के आदित्य हृदय स्तोत्र भगवान सूर्य की स्तुति करते हुए बताया गया है कि यही भगवान सूर्य,  ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा और वरुण है तथा पितर आदि भी यही हैं। हे राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो पुरुष इन सूर्यदेव का भजन करता है। उसे दुख नहीं भोगना पड़ता है। छठ पर्व सूर्य उपासना का अनुष्ठान है। इस अनुष्ठान को वर्ष में दो बार-चैत्र तथा कार्तिक मास में सम्पन्न किया जाता है। दोनों ही मासों में शुक्ल पक्ष की षष्ठी एवं सप्तमी को छठ पर्व का आयोजन होता है। षष्ठी तिथि को अस्ताचलगामी सूर्यदेव को सायंकाल अर्घ्य प्रदान किया जाता है और सप्तमी तिथि को प्रातः काल उदीयमान सूर्य को अर्घ्यदान किया जाता है। छठ पर्व का सबसे अधिक महत्व छठ की पूजा की पवित्रता में है। यूं तो यह पर्व विशेष रूप से स्त्रियों द्वारा ही मनाया जाता है, किंतु पुरुष भी इस पर्व को बड़े उत्साह से मनाते हैं। चतुर्थी तिथि को व्रती स्नान करके सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं, जिसे बिहार की स्थानीय भाषा में "नहाए खाए "के नाम से जाना जाता है। पंचमी तिथि को पूरे दिन व्रत रखकर सन्ध्या को प्रसाद ग्रहण किया जाता है। जिसे" खरना" या लोहण्डा भी कहा जाता है। षष्ठी तिथि के दिन सन्ध्या काल में नदी या तालाब के किनारे की व्रती महिलाएं एवं पुरुष सूर्यास्त के समय अनेक प्रकार के पक्वान्नो को बाॅस के सूप में सजाकर सूर्य को दोनों हाथों से अर्घ्य प्रदान करते हैं। जिसे अस्ताचलगामी के नाम से जाना जाता है।

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