कार्तिक पूर्णिमा पर कैसे करें माॅ लक्ष्मी और भगवान दामोदर की व्रत और पूजन

 व्रत-पूजन विधि

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार आंवला नवमी की पूजा खास तौर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं।  इस बार आंवला नवमी 13 नवंबर को मनाई जा रही है। आइए जानते हैं आंवला नवमी की पूजा का शुभ मुहूर्त क्या है। साथ ही जानते हैं आंवला नवमी से जुड़ी कथा, पूजा सामग्री और पूजा विधि

प्रातःकाल उठकर स्नानादि के अनन्तर दाहिने हाथ में जल, अक्षत, पुष्प आदि लेकर निम्न प्रकार से संकल्प करे- "अहं मामाखिल पाप क्षयपूर्वकं धर्मार्थकाम मोक्ष सिद्धि द्वारा श्रीविष्णु प्रीत्यर्थं धात्रीमूले विष्णूपूजन धात्री पूजनं च करिष्ये।।" -ऐसा संकल्प करके धात्री वृक्ष (आंवले) के नीचे पूर्वाभिमुख बैठकर- "ऊॅ धात्र्यै नमः"- मन्त्र से आवाहनादि षोडशोपचार पूजन करके निम्नलिखित मन्त्र से वृक्ष की जड़ में दूध की धारा गिराते हुए पितरो का तर्पण करें- "पिता पितामहश्चान्ये अपुत्रा च गोत्रिणः। ते पिबन्तु मया दत्तं धात्री मूलेऽक्षयं पयः।। आब्रह्म स्तम्भपर्यन्तं देवर्षिपितृ मानवाः। ते पिबन्तु मया दत्तं धात्रीमूलेऽक्षयं पयः।।" -उसके बाद आंवले के तने में निम्न मन्त्र से सूत्रावेष्टन करें- "दामोदर निवासायै धात्र्यै देव्यै नमो नमः। सूत्राणानेन बध्नामि धात्रि देवी नमोऽस्तु ते।।" -उसके बाद कर्पूर या घृतयुक्त दीप से आंवले के वृक्ष की आरती करें तथा उसकी प्रदक्षिणा करें। आंवले के वृक्ष के नीचे ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए और अन्त मे स्वयं भी आंवले के वक्ष के सन्निकट बैठकर भोजन करना चाहिए। इस दिन एक पका हुआ कुम्हड़ा (कूष्माण्ड) लेकर उसके अन्दर रत्न, सुवर्ण, रजत या सिक्का डालकर निम्न संकल्प किया जाय- "ममाखिल पापक्षय पूर्वक सुख सौभाग्यदीनामुत्तरोत्तराभि वद्धये कूष्माण्ड दानमहं करिष्ये" -तदन्तर विद्वान सदाचारी ब्राह्मण को तिलक करके प्रदक्षिणा सहित कूष्माण्ड दे दें और प्रार्थना करें- "कूष्माण्डं बहुबीजाढ्यं ब्रह्मणा निर्मितं पुरा। दास्यामि विष्णवे तुभ्यं पितृणां तारणाय च" -पितरों के निमित्त इस दिन यथा शक्ति कम्बल आदि ऊनी वस्त्र को भी सत्पात्र को दिया जाता है। यह अक्षय नवमी, धात्री नवमी यथा कूष्माण्ड नवमी भी कहलाती है। यदि घर मे आंवले का वृक्ष न हो तो किसी बगीचे मे जाकर आंवले के वृक्ष के समीप पूजा-दान आदि करें या घर पर गमले मे आंवले को रोपकर यह कार्य किया जा सकता है।

ऐसी भी शास्त्रीय मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी से कार्तिक शुक्ल पूर्णिमा तक माॅ लक्ष्मी और भगवान दामोदर (विष्णु) आंवले के वृक्ष मे निवास करते हैं। इस कारण इस दिन भगवान लक्ष्मीनारायण के पूजन का भी विधान है। चरक संहिता में बताया गया है कि च्यवन ॠषि ने इसी दिन से आंवले का सेवन प्रारम्भ करके नवयौवन प्राप्त किये थे। आंवले का रस इस दिन से प्रारम्भ कर प्रतिदिन सेवन करने से पुण्य और आरोग्यता की वृद्धि होती है। यदि वृक्ष न हो तो भी इस दिन आंवले का पूजन कर उसका सेवन शुरू किया जाय। जितनी भी नकारात्मक ऊर्जा होती है वह आंवले के पास रहने से दूर हो जाती है और आरोग्यता की वृद्धि होती है। आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करने के पीछे ऐसी मान्यता है कि यदि भोजन की थाली में आंवले का पत्ता भी गिर जाय तो सकारात्मकता और पवित्रता की वृद्धि होती है।

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