ज्ञान प्राप्ति एवं भगवत्भक्ति की सम्वृद्धि के लिए मोक्षदा एकादशी का व्रत

 14 दिसम्बर दिन मंगलवार को मोक्षदा एकादशी

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र के अनुसार अगहन (मार्गशीर्ष) महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जो व्रत किया जाता है, उसे मोक्षदा एकादशी के नाम से जाना जाता है। यह 14 दिसम्बर दिन मंगलवार को है। इस दिन सूर्योदय 6 बजकर 47 मिनट पर और एकादशी तिथि का मान सम्पूर्ण दिन और रात को एक बजकर 30 मिनट तक, अश्विनी नक्षत्र सम्पूर्ण दिन और रात्रिशेष 6 बजकर 41मिनट से 15 दिसम्बर को प्रातः 6:41 तक। इस दिन अमृत नामक महा औदायिक योग भी है।

पूजन विधि 

इस दिन स्नान आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर भगवान दामोदर का गंध, पुष्प और षोडशोपचार विधि से पूजन करे।भगवान विष्णु को तुलसी अर्पण करे। मांगलिक गायन,पूजन व पाठ करके आरती करें।इस दिन श्रीकृष्ण भगवान और भगवत्गीता के पूजन का भी विधान है। व्रत के दिन फलाहार करें और अन्न का सेवन त्याग दें। मिथ्या भाषण चूगली दुष्कर्मो का त्याग करें। ब्राह्मणों को भोजन वस्त्र, अन्न दक्षिणा का दान अवश्य करें।

व्रत का महत्व 

यह व्रत मार्गशीर्ष महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। मोक्षदा एकादशी व्रत के दिन गीता जयंती भी मनाई जाती है। उल्लेखनीय है कि कुरुक्षेत्र के युद्धस्थल मे युद्ध से विमुख हुए अर्जुन को भगवान श्री कृष्ण ने गीता का उपदेश इसी दिन दिया था ।ऐसा कहते हैं कि जिस तरह अर्जुन को मोहक्षय हुआ था, उसी प्रकार इस एकादशी का व्रत करने से सभी श्रद्धालुओं के लोभ,मोह, मद ,मत्सर एवं समस्त पापों का क्षय हो जाता है। तथा व्रती को इच्छा अनुकूल फल प्राप्त होता है ।इसलिए यह मोक्षदा एकादशी व्रत कहलाती है।

व्रत कथा

प्राचीन काल में चम्पक नामक एक सुंदर नगर में वैखानस नाम का राजा राज्य करता था वह अपनी प्रजा का पालन अपने पुत्र की तरह से करता था। उसकी प्रजा भी उसे बहुत स्नेह करती थी। उसके राज्य में वेद -वेदांग को जानने वाले बहुत से ब्राह्मण रहते थे।एक दिन राजा ने सपने में एक विचित्र दृश्य देखा ।उसने देखा कि उसके पिता को घोर नरक यातना दी जा रही है और वह बुरी दशा में विलाप कर रहे हैं। पिता को अधोयोनि में पड़े देखकर ,उसने यह वृत्तांत ब्राह्मणों को सुनाया और जानना चाहा कि जिस व्रत ,दान ,तप से या जिस किसी भी उपाय से मेरे पिता को नरक से मुक्ति मिले और मेरे पूर्वजों का कल्याण हो, वैसी विधि बतायें। राजा के दुखित वृतांत को सुनकर वेदों के ज्ञाता एक ब्राह्मण ने कहा-" राजन !आप अपने पिता के उद्धार के लिए पर्वत मुनि के आश्रम में चले जायें, जो यहां से थोड़ी ही दूरी स्थित है। राजा ने मुनिशार्दूल पर्वत मुनि के आश्रम में जाकर सादर प्रणाम किया। वे मुनि ऋग्वेद ,सामवेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के ज्ञाता और ज्ञान मे सूर्य की तरह शोभायमान हो रहे थे।तब राजा ने स्वप्न का सारा वृतान्त उन्हे बताया। वे भूत भविष्य और वर्तमान के ज्ञाता थे।मुनि ने राजा को बताया-"हे राजन! मै तुम्हारे पिता के बुरे कर्मों के पापों को जानता हूं पहले जन्म में तुम्हारे पिता ने दो पत्नियों में से काम वशीभूत होकर एक का ॠतुभंग किया था। उस कर्म से वह निरंतर नरक का दुःख भोग रहे हैं। राजा ने पुनः पूछा-- मुनिवर !किस दान या व्रत को करने से मेरे पिता पाप मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। कृपया वह उपाय बताएं। इस पर मुनिराज बोले-" तुम यदि उनके लिए मार्गशीर्ष शुक्ल एकादशी का मोक्षदा व्रत करके, उस पुण्य का दान अपने पिता को कर दो,तो उसके प्रभाव से उन्हे मोक्ष मिल जायेगा। मुनि की सलाह से राजा ने इस एकादशी के दिन व्रत किया और उससे अर्जित पुण्य अपने पिता को दे दिया। उस समय आकाश से फूलों की वर्षा हुई और वैखानस का पिता अपने पुत्र के ढेरों आशीर्वाद देते हुए देवलोक चला गया। तभी से मान्यता है कि जो भी मोक्षदा एकादशी का व्रत करता है वह अपने कुटुंब सहित समस्त सांसारिक सुखों का उपभोग करते हुए अंत में मोक्ष को प्राप्त करता है और प्रभु की सेवा का अधिकारी बनता है।

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