भारत की स्वाधीनता के इस अमृत महोत्सव के वर्ष में चुनाव जीतने के लिए वोट बैंक के रूप में साम्प्रदायिक अलगाव की उस विषबेल को सींचना सर्वथा अनुचित है जो इस देश के विभाजन का कारण बनी थी। मुस्लिम समाज भी भारतीय नागरिक व मतदाता के रूप में ही राष्ट्र के प्रति निष्ठापूर्वक देश, समाज व प्रदेश के हित में मतदान करे, यह सुनिश्चित करना चुनाव में हार-जीत से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है
पांच राज्यों के चुनावों में देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में कुछ दलों द्वारा मतों के साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की अलगाववादी राजनीति अत्यंत खतरनाक रूप ले रही है। भारत के रक्तरंजित विभाजन के बाद 15 अगस्त 1947 को मिली स्वाधीनता के इस अमृत महोत्सव के वर्ष में चुनाव जीतने के लिए वोट बैंक के रूप में साम्प्रदायिक अलगाव की उस विषबेल को सींचना सर्वथा अनुचित है जो इस देश के विभाजन का कारण बनी थी।
मजहबी राजनीति अमानवोचित
भारतीय संविधान भारत को एक पंथ निरपेक्ष गणराज्य घोषित करता है, ऐसे में
मतदाताओं को साम्प्रदायिक आधार पर बांट कर अपना राजनीतिक हित साधना
असंवैधानिक, राष्ट्र विरोधी एवं अमानवोचित प्रयत्न है। शरिया अर्थात
मुस्लिम विधान के अन्तर्गत शासन चलाने के लिए देश से पाकिस्तान व
बांग्लादेश रूपी दो भुजाएं काट कर अलग कर देने के बाद साम्प्रदायिकता की
राजनीति के लिए देश के नागरिकों में मजहबी अलगाव खड़ा कर वोट बैंक की
राजनीति के लिए मुस्लिम मतदाताओं को एक प्रबुद्ध व उत्तरदायी मतदाता के रूप
में राष्ट्रीय राजनीति का हिस्सा बनने से दूर रखने के लिए परिकल्पित आधार
पर भावात्मक भयदोहन व दुष्प्रेरण राष्ट्र विरोधी षड्यंत्र से कम नहीं है।
देश
के 1947 में हुए विभाजन के लिए मुस्लिम लीग द्वारा समाज में मजहबी अलगाव
की भावना खड़ी करना तब लीग की सत्ता की महत्वाकांक्षा पूर्ति का साधन रहा
था। इससे देश का विभाजन हो गया और लीग 23 प्रतिशत आबादी के लिए 33 प्रतिशत
भूभाग लेकर अलग हो गई। तब भी उस पाकिस्तान का विश्व में कोई सम्मानजनक
स्थान नहीं बन पाया? देश के उस मजहबी विभाजन के बाद भारत में रहे मुस्लिम
तो इस देश की अस्मिता व अस्तित्व के लिए इस देश के अपने सदियों के साझे
सुख-दु:खों की एक समान अनुभूतियों के साथ मुख्य भारत भूमि का अंग बने रहे।
देश में समरस हो चुके उस समाज में अब वोटों के लिए साम्प्रदायिक अलगाव के
प्रयास सर्वथा निन्दनीय हैं। ऐसे राजनीतिक दलों की दल के रूप में मान्यता
और आम जनमानस से ऐसे दलों के प्रति सहानुभूति व उनकी स्वीकारोक्ति को
निर्मूल करना आज की पहली आवश्यकता है। पांच वर्ष पूर्व 2017 के चुनावों में
ही इन अलगावादी दलों को नकार कर एक मन व एक मानस से देश की राष्ट्रीय एकता
के पक्ष में, अखण्ड भारत के पक्षधर रहे राष्ट्रवादी दल के पक्ष में मत
दिया था। उसी के परिणामस्वरूप आज उत्तर प्रदेश साम्प्रदायिक दंगों से मुक्त
हो विकास मार्ग पर चल रहा है। इसके परिणामस्वरूप अच्छी कानून व्यवस्था के
साथ राज्य में सुशासन की स्थापना हुई है।
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