नेताजी ने पूरा जीवन अपने सुख की चिंता किए बिना देश के लिए समर्पित कर दिया : डॉ मोहन भागवत

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए उनके संघर्षमय जीवन और अटूट देशभक्ति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने आज की पीढ़ी से नेताजी के आदर्शों पर चलने का आह्वान किया।

मणिपुर के विष्णुपुर जिला के मोइरंग में आज सुबह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 126वीं जयंती पर आयोजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेते हुए उनके संघर्षमय जीवन और अटूट देशभक्ति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डाला। उन्होंने आज की पीढ़ी से नेताजी के आदर्शों पर चलने का आह्वान किया। नेताजी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए डॉ. भागवत ने कहा कि आज नेताजी की जयंती है और हम प्रतिवर्ष उनका स्मरण करते हैं। यह वर्ष विशेष इसलिए है कि स्वतंत्रता के 75 वर्ष पूरे हो गए हैं। जिस स्वतंत्रता के लिए नेताजी घर-बार छोड़कर विदेश गए, सेना बनाकर अंग्रेजों से लड़ाई की। उन्होंने पूरा जीवन अपने सुख की चिंता किए बिना देश के लिए समर्पण कर दिया। उनका जीवन हमारे लिए अनुकरणीय है। उस जीवन को उन्होंने स्वार्थ के लिए नहीं जिया, वे अपनों के लिए जिये। उन्होंने कहा, ऐसा कहते थे कि अंग्रेजों के साम्राज्य का सूर्यास्त नहीं होता, तो इतनी प्रचंड और पराक्रमी सत्ता को उन्होंने चुनौती दी, केवल चुनौती नहीं दी, यहां आकर भारत की दहलीज पार करके स्वतंत्र भारत सरकार की घोषणा भी की।

संघ प्रमुख ने कहा, नेताजी ने सब भारतवासियों को जोड़ा, इतना कड़ा संघर्ष अंग्रेजों के साथ किया, तो कितना पराक्रम होगा, कितना स्वाभिमान होगा। परंतु अपने लोगों के साथ कभी झगड़ा नहीं किया। देशभक्ति क्या होती है, पूरे देश के लिए काम करना। अपने देश के लोगों से मतभेद होने के बाद भी झगड़ा नहीं करना। नेताजी कांग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे, कुछ कारण होगा पता नहीं क्या था, गांधी जी की इच्छा नहीं थी। बहुमत नेताजी के साथ था, वो झगड़ा कर सकते थे, लेकिन उन्होंने नहीं किया। वो विड्रा हो गए। क्योंकि विदेशी सत्ता के खिलाफ लड़ना है तो देश को एक होना चाहिए, एक रहना चाहिए। तेरा-मेरा, छोटे-छोटे स्वार्थ को भूलना, अपने स्वार्थ का बलिदान देकर देश के स्वार्थ के लिए, देश के हित के लिए लड़ाई करना। पूरे भारतवर्ष के लोग उनकी सेना में थे, जाति, पंथ, मत, प्रांत कुछ नहीं। पूरे देश को एक करने की उनकी शक्ति थी। क्योंकि, वह स्वयं पूरे भारत को अपना देश मानते थे। यह राष्ट्रीय प्रवृत्ति है।

डॉ. भागवत ने कहा कि तो देशभक्ति और अपने देश की एकात्मता की स्पष्ट कल्पना और साथ-साथ उसके लिए सर्वस्व समर्पण करने की प्रवृत्ति। सब कुछ दे दिया, अपने लिए कुछ नहीं, देश के लिए सब कुछ, ऐसा उनका जीवन है। नेताजी की भी प्रेरणा आध्यात्मिक प्रेरणा थी। तो ऐसी एक आध्यात्मिक प्रेरणा की धारणा करके संपूर्ण भारत, जो अपनी मातृ भूमि है, उसके लिए सर्वस्व बलिदान करना, ये काम उन्होंने किया। उस समय हम गुलाम थे तो इसका उपयोग स्वतंत्रता के लिए हुआ। लेकिन देश को बड़ा करना है और देश को बड़ा बनाए रखना है तो देश में ऐसे व्यक्तियों की जरूरत हमेशा रहती है। स्वतंत्रता के लिए संग्राम किया, इसलिए हम याद करते हैं। लेकिन, याद तो उनके इस चरित्र को सदैव करना चाहिए और वैसा बनने का प्रयास करना चाहिए।

डॉ. भागवत ने कहा, हम सब लोग उनके रास्ते पर स्वयं चलें, हम सुभाष बाबू नहीं बन सकते, लेकिन आज जो हैं उससे पांच कदम ज्यादा अच्छे तो बन सकते हैं। क्योंकि, ऐसा बनने से अपने जीवन में भी और राष्ट्र के जीवन में भी जो परिवर्तन आता है, वह सबके लिए हितकारी होता है। और जब सब सुखी होते हैं तो मेरे अपने सुख के लिए अलग से प्रयास करना नहीं पड़ता। इसलिए नेताजी का यह देशभक्ति का, राष्ट्रीय एकात्मता का, सर्वस्व समर्पण का संदेश, उनके जीवन के निमित्त आज हम याद करें और उसका अनुकरण हम अपने जीवन में करने का प्रयास करें, उनके लिए यही सच्ची स्मरणांजलि होगी।

 

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