नेताजी डॉ अशोक जी सभागार में परमहंस योगानन्द की को दी गई श्रद्धांजलि

गोरखपुर 5 जनवरी l परमहंस योगानन्द, बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है।  उक्त वक्तव्य मंजीत कुमार श्रीवास्तव (सप्पू बाबू) ने कहा। ऐसे महान योगी और महात्मा की जन्मभूमि होने पर गोरखपुर की जनता उनको शत-शत नमन करती है एवं गोरखपुर की धरती अपने आपको गौरवान्वित महसूस करती है आज उनके जन्मदिन के अवसर पर हम सब उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं

राष्ट्रीय सेवा परिषद ,पूर्वांचल सांस्कृतिक प्रतिष्ठान एवं भूमा शांति मिशन के संयुक्त तत्वाधान में नेताजी डॉ अशोक जी सभागार में सिविल लाइंस में परमहंस स्वामी योगानंद जी का जन्मदिवस पर उनके चित्र पर पुष्पांजलि कर ,उनके जीवन पर सभी ने प्रकाश डाला गया

इसी क्रम में परिषद के उपाध्यक्ष इंजीनियर प्रमुख उद्यमी इंजीनियर संजीत कुमार व मनीष चंद्र कहा कि परमहंस योगानन्द (5 जनवरी 1893 – 7 मार्च 1952), बीसवीं सदी के एक आध्यात्मिक गुरू, योगी और संत थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को क्रिया योग उपदेश दिया तथा पूरे विश्व में उसका प्रचार तथा प्रसार किया। योगानंद के अनुसार क्रिया योग ईश्वर से साक्षात्कार की एक प्रभावी विधि है, जिसके पालन से अपने जीवन को संवारा और ईश्वर की ओर अग्रसर हुआ जा सकता है। 

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भूमा शांति मिशन के अध्यक्ष अरुण कुमार ब्रह्मचारी ने कहा कि योगानन्द भारतीय योग गुरु थे जिन्होने अपने जीवन के कार्य को पश्चिम में किया। योगानन्द ने १९२० में अमेरिका के लिए प्रस्थान किया। संपूर्ण अमेरिका में उन्होंने अनेक यात्रायें की। उन्होंने अपना जीवन व्याख्यान देने, लेखन तथा निरन्तर विश्व व्यापी कार्य को दिशा देने में लगाया। उनकी उत्कृष्ट आध्यात्मिक कृति लाखों प्रतिया बिकीं और सर्वदा बिकने वाली पुस्तक बनी l

परिषद परिषद के अनिल मिश्रा व एवं अजीत नाथ चौधरी वरिष्ठ अधिवक्ता ने कहा कि इनका जन्म5 जनवरी 1893, गोरखपुर व मृत्यु की जगह और तारीख: 7 मार्च 1952, लास एंजिल्स, कैलीफोर्निया, संयुक्त राज्य अमेरिका मैं हुआ इनके माता का नाम ग्यान प्रभा एवं पिता चरण था ,क्रिया योग की साधना करने वालों के द्वारा इसे एक प्राचीन योग पद्धति के रूप में वर्णित किया जाता है, जिसे आधुनिक समय में महावतार बाबाजी के शिष्य लाहिरी महाशय के द्वारा 1861 के आसपास पुनर्जीवित किया गया और परमहंस योगानन्द की पुस्तक ऑटोबायोग्राफी ऑफ़ ए योगी (एक योगी की आत्मकथा) के माध्यम से जन सामान्य में प्रसारित हुआ। प्राणायाम के कई स्तर होते है जो ऐसी तकनीकों पर आधारित होते हैं जिनका उद्देश्य आध्यात्मिक विकास की प्रक्रिया को तेज़ करनाऔर प्रशान्ति और ईश्वर के साथ जुड़ाव की एक परम स्थिति को उत्पन्न करना होता है। इस प्रकार क्रिया योग ईश्वर-बोध, यथार्थ-ज्ञान एवं आत्म-साक्षात्कार प्राप्त करने की एक वैज्ञानिक प्रणाली है।

परमहंस योगानन्द के अनुसार क्रियायोग एक सरल मनःकायिक प्रणाली है, जिसके द्वारा मानव-रक्त कार्बन से रहित तथा ऑक्सीजन से प्रपूरित हो जाता है। इसके अतिरिक्त ऑक्सीजन के अणु जीवन प्रवाह में रूपान्तरित होकर मस्तिष्क और मेरूदण्ड के चक्रों को नवशक्ति से पुनः पूरित कर देते है। प्रत्यक्छ प्राणशक्तिके द्वारा मन को नियन्त्रित करनेवाला क्रियायोग अनन्त तक पहुँचने के लिये सबसे सरल प्रभावकारी और अत्यन्त वैज्ञानिक मार्ग है। बैलगाड़ी के समान धीमी और अनिश्चित गति वाले धार्मिक मार्गों की तुलना में क्रियायोग द्वारा ईश्वर तक पहुँचने के मार्ग को विमान मार्ग कहना उचित होगा। क्रियायोग की प्रक्रिया का आगे विश्लेषण करते हुये वे कहते हैं कि मनुष्य की श्वशन गति और उसकी चेतना की भिन्न भिन्न स्थिति के बीत गणितानुसारी सम्बन्ध होने के अनेक उदाहरण दिये जा सकते हैं। मन की एकाग्रता धीमे श्वसन पर निर्भर है। तेज या विषम श्वास भय, काम क्रोध आदि हानिकर भावावेगों की अवस्था का सहचर है।

कार्यक्रम का संचालन इंजीनियर रंजीत कुमार ने किया।

इस अवसर पर रवि श्रीवास्तव, सर्वेश त्रिपाठी, अभिषेक श्रीवास्तव, मनीष चंद्र, अनिल मिश्रा, सुनील कुमार, दानिश, अजय कुमार सहित परिषद व प्रतिष्ठान के लोग उपस्थित रहे। सभी कार्यक्रम कोविड-19 देखते हुए सोशल डिस्टेंसिंग के साथ किया गया।

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