माघ महिने में स्नान और दान से मोक्ष की प्राप्ति


आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

माघ महिने में स्नान के महत्व को दर्शाते हुए एक माहात्म्य कथा इस प्रकार है। प्राचीन काल में नर्मदा के तट पर शुभव्रत नामक एक ब्राह्मण निवास करते थे।वे समस्त वेद -वेदांगों, धर्मशास्त्र के ज्ञाता थे। साथ ही उन्हे अनेक भाषाओं और लिपियों का भी ज्ञान था,परन्तु वे लालची थे। उन्होंने अपने जीवन में धन कमाना ही लक्ष्य रखा था। इसी प्रकार से ऊन्होने खूब धन कमाया। धनोपार्जन में ही उन्हे वृद्धावस्था ने आ घेर लिया।उन्हे कई प्रकार का रोग हो गया। तब उन्हे सदज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होने विचार किया कि मैंने सारा जीवन धन कमाने में ही नष्ट कर दिया और कभी भी ध्यान न रखा कि मेरा उद्धार कैसे होगा? मैंने तो आजीवन कोई सदकर्म न किया। उसी व्याकुल चित्त मे उन्हे एक श्लोक याद आया, जिसमे माघ माह में स्नान का महत्व बताया गया था। शुभव्रत ने उसी श्लोक के अनुसार माघ मास में स्नान का संकल्प लिया और नर्मदा में स्नान करने लगे। दशवें दिन स्नान के अनन्तर उनकी तबियत बिगड़ी और परलोक जाने का उनका समय आ गया।यद्यपि उन्होने जीवन भर कोई सदकर्म नही किया था, पापपूर्वक धनार्जन ही किया था,परन्तु माघ मास मे पाश्चात्ताप पूर्वक स्नान और निर्मल मन होकर प्राण त्यागने से, उनके लिए दिव्य विमान आया और वह उस पर आरूढ़ होकर स्वर्ग चले गये।

इस वर्ष 18 जनवरी से 16 फरवरी तक माघ मास है।पौष की पूर्णिमा 17 जनवरी को ही है।पौष मास की पूर्णिमा से ही माघ मास की पूर्णिमा तक माघ मास का स्नान किया जाता है।पद्मपुराण में कहा गया है कि माघ मास में शीतल जल में डुबकी लगाने वाले मनुष्य पापमुक्त होकर स्वर्ग चले जाते हैं।वैसे तो माघ स्नान का महत्व प्रयागराज में है, क्योंकि महाभारत में कहा गया है कि माघ की अमावस्या को प्रयागराज में 3 करोड़ 10 हजार तीर्थों का समागम प्रयाग में होता है।प्रयाग के अतिरिक्त काशी, नैमिषारण्य, कुरूक्षेत्र, हरिद्वार तथा अन्य पवित्र तीर्थों एवं नदियों में स्नान का बड़ा महत्व है।यह स्नान सूर्योदय से पूर्व किया जाता है पद्मपुराण मे कहा गया है कि माघ मास में व्रत-दान औ, तपस्या से भी भगवान विष्णु को उतनी प्रसन्नता नही होती है, जितनी कि माघ मास में स्नान से। इसलिए स्वर्गलाभ, सभी पापों से मुक्ति तथा भगवान वासुदेव की प्राप्ति के लिए प्रत्येक मनुष्य को माघ स्नान करना चाहिए।

यदि मनुष्य सम्पूर्ण मास में प्रयाग या पवित्र नदियों मे स्नान न कर सके तो तीन दिन या न्यूनतम एक दिन अवश्य स्नान करे। निर्णय सिन्धु में कहा गया है कि -"मासपर्यन्त स्नानाभावे तु त्र्यहमेकाहं वा स्नायात्।"-जो लोग चिरकाल स्वर्गलोक में रहना चाहते हैं,उन्हें माघ मास में सूर्य के मकर राशि में स्थित होने पर अवश्य स्नान करना चाहिए।-"स्वर्गलोके चिरं वासो येषां मनसि वर्तते।यत्र क्वापि जले तैस्तु स्नातव्यं मृगभास्करे।।"- माघ मास में स्नान करने का संकल्प पौष पूर्णिमा को प्रातःकाल लेना चाहिए।उसके उपरान्त नियमित रूप से माघ स्नान प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व करना चाहिए। स्नान के उपरान्त भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए और हरि कथा का श्रवण करना चाहिए। सम्पूर्ण मास उपवास,एक भुक्त या फलाहार रहना चाहिए।महाभारत में कहा गया है कि जो माघ महिने में नियमपूर्वक केवल एक बार भोजन करता है, वह अगले जन्म में धनी कुल में जन्म लेकर अपने कुटुम्बीजनों मे महत्व को प्राप्त करता है।

माघ मास में दान का विशेष महत्व है। दान में तिल और कम्बल से विशेष पुण्य प्राप्त होता है। महाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि जो माघ मास में ब्राह्मण या सत्पात्र को तिल दान करता है, वह समस्त जन्तुओं से भरे हुए नरक का दर्शन नही करता है। माघ महीने मे ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करना चाहिए।यदि इस पुराण का दान न कर सके तो किसी पुराण या धार्मिक पुस्तक का दान अवश्य करें।मत्स्य पुराण का कथन है कि जो व्यक्ति माघ महिने में ब्रह्मवैवर्त पुराण का दान करता है, उसे ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है।

माघ महिने मे तिल दान और भक्षण का बड़ा महत्व प्रतिपादित किया गया है।इसमे एक व्रत षट्तिला एकादशी के नाम से है।यह माघ कृष्ण एकादशी के नाम से जानी जाती है।इस दिन छह प्रकार से तिलों का व्यवहार किया जाता है।इसी कारण इसे षट्तिला एकादशी कहा जाता है।इस दिन तिलयुक्त जल से स्नान,तिल का उबटन, तिल से हवन, तिल मिले जल का पान ,तिल का भोजन और तिल के दान का विधान है।कहा गया है कि ऐसा करने से समस्त पापों का नाश हो जाता है।-"तिलस्नायी तिलोद्वर्ती तिलहोमी तिलोदकी।तिलभुक् तिलदाता च षट्तिलाः पापनाशनाः।।"-इस दिन काले तिल और काली गाय का के दान का भी विशेष महत्व है।षट्तिला एकादशी के दिन प्रातःकाल स्नान और नित्य पूजा के उपरान्त भगवान श्रीकृष्ण के नाममन्त्रो का जप करना चाहिए।दिन भर उपवास रहना चाहिए और रात्रि में जागरण और तिल से हवन करना चाहिए।

बसन्त पंचमी 

माघ शुक्ल पंचमी बसन्त पंचमी के रूप से मनाई जाती है।इसे ॠतुराज बसन्त के अगमन की खुशी में मनाया जाता है। प्राचीन काल में राजा-महाराजा इसे कौमुदी महोत्सव के रूप में मनाते थे। ब्रज प्रदेश में इन दिनो कृष्णलीलाओं का दौर शुरू हो जाता है।भगवान श्रीकृष्ण ही बसन्त के उत्सव के देवता माने जाते हैं।बसन्त ॠतु में प्रकृति का सौन्दर्य भी चरमोत्कर्ष पर होता है, जिसे देखकर मानव का मन हर्षित और उल्लासित हो जाता है।बसन्त पंचमी कामदेव और रति के स्मरण और पूजन का दिन भी है।इस दिन माता सरस्वती का प्राकट्य हुआ था।अतः इसे वागीश्वरी जयन्ती या सरस्वती जयन्ती के रूप में भी मनाया जाता है।इस दिन भगवान विष्णु और श्रीकृष्ण की पूजा होती है। भारत के कुछ अंचलों मे फागोत्सव का आरम्भ भी इसी दिन से होता है। इस दिन पीला वस्त्र पहना जाता है और पीले रंग की खाद्य सामग्री का सेवन किया जाता है। यह दिन किसानो के लिए नवान्न सेवन का भी है। इसी माघ महिने में मौनी अमावस्या का स्नान किया जाता है।बताया गया है कि इस दिन व्रती को स्नान और उपवास करना चाहिए।पूरे दिन मौन रहकर नारायण का चिन्तन करना चाहिए। साथ ही तिल ,तिल के लड्डू,तिल का तेल, आंवला, कम्बल और सर्दियों के वस्त्र आदि का दान करना चाहिए।

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