स्नान-दान का विशेष पर्व है मकर संक्रांति

मकर संक्रान्ति के दिन गंगा स्नान और दान पुण्य का विशेष महत्व है। मान्यता है कि मकर संक्रान्ति के दिन देव भी धरती पर अवतरित होते हैं, और आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है। इस दिन पुण्य, दान, जप तथा धार्मिक अनुष्ठानों का अनन्य महत्व है। इस दिन गंगा स्नान व सूर्योपासना पश्चात गुड़, चावल और तिल का दान श्रेष्ठ माना गया है।

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

हृषीकेश पञ्चाङ्ग के अनुसार संकान्ति के समय रोहिणी और मृगशिरा नक्षत्र का योग है। संकान्ति के समय ब्रह्म योग और बालव करण है।यह संकान्ति चन्द्रमा के वृषभ राशि मे घटित हो रहा है। इस दिन मित्र नामक महाऔदायिक योग भी है। इस वर्ष सन 2022 में सूर्य का मकर राशि मे प्रवेश 14 जनवरी दिन शुक्रवार को सायंकाल 8 बजकर 49 मिनट पर हो रहा है। अतः पुण्यकाल अगले दिन 15 जनवरी दिन शनिवार को दिन में 12 बजकर 49 मिनट तक रहेगा। 

मकर संक्रांति सौर मास के अनुसार मनाई जाती है क्योंकि सूर्य की गति कभी वक्री नहीं होती है। इसलिए प्रातः 14 या 15 जनवरी को ही मकर संक्रांति पड़ती है। सूर्य का एक माह में राशि परिवर्तन होता है। एक राशि 30 अंश की होती है। सूर्य एक अंश की दूरी लगभग 24 घंटे में पूरी करता है। अयनांश गति में भिन्नता के कारण लगभग 72 वर्षों में एक अंश की दूरी का अंतर आता है। प्रतिवर्ष धनु राशि से मकर राशि में सूर्य का प्रवेश 20 मिनट देर से होता है इसलिए प्रत्येक तीसरे वर्ष मकर संक्रांति एक घंटा विलम्ब से होती है। इस प्रकार 72 वर्षों में मकर संक्रांति 24 घंटे या 1 दिन बाद होती है। दैनिक निररण ग्रह स्पष्ट सारणी में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति को सूर्य की अंशो को पिछले वर्ष की तुलना में 6 अंशो का अंतर आता है। इसलिए प्रतिवर्ष मकर संक्रांति 6 घंटे देर से होती है। यहां यह बता देना समीचीन होता है कि वर्तमान में अयन गति बढ़ रही है। यह पंचांगो द्वारा सिद्ध है। पिछले वर्ष संक्रांति रात 12:00 बजे यदि हुई तो इस वर्ष उसके 6 घंटे बाद प्रातः 6:00 बजे होगी।पंचांग सिद्धांत के अनुसार प्रतिवर्ष 6 घंटा विलंब से होती हुई प्रत्येक चौथे वर्ष में 24 घंटे अर्थात 1 दिन देरी से होती है। परंतु अंग्रेजी दिनांक के हिसाब से चौथे वर्ष में 15 तारीख को, 8 वे वर्ष में 16 तारीख को और 12 वें वर्ष में 17 तारीख की मकर संक्रांति अंकित नहीं हो पाती है। क्योंकि वर्ष की गणना सौर दिनों पर आधारित है।एक वर्ष में 365 दिन और 6 घंटे होते हैं। यह 6 घंटे प्रत्येक वर्ष जुड़ते जुड़ते चौथे वर्ष में एक दिन के बराबर हो जाती है अतः अंग्रेजी कैलेंडर में चौथा वर्ष 365 दिन का न होकर 366 दिनों का हो जाता है। इसे लीप ईयर के नाम से जाना जाता है। लीप ईयर में फरवरी का महीना 28 के स्थान पर 29 का हो जाता है।

अब हम इस तरह से समझ सकते हैं कि मकर संक्रांति प्रत्येक चौथे वर्ष बाद अगली तारीख को क्यों नहीं हो पाती है, क्योंकि फरवरी का 29 वाॅ दिन अगले वर्ष संक्रांति का एक अंग्रेजी दिन घटा देता है और मकर संक्रांति 14 तारीख को होने लगती है। सन 2012 लीप ईयर होने से सन 2013 में 14 जनवरी को प्रातः काल 6:00 बजे के लगभग मकर संक्रांति हुई थी। स्थूल तौर पर जाने कि इस सदी मे मकर संक्रान्ति 14 या 15 जनवरी को ही होगी।अगले 72 वर्ष के बाद यह 15 जनवरी और 16 जनवरी को होने लगेगी। पिछले सदी मे यह 13 जनवरी और 14 जनवरी को होती थी। विवेकानन्द जी का जब जन्म हुआ था तो उस समय मकर संकान्ति 12 और 13 जनवरी को होती थी। विवेकाननाद जी जन्म 12 जनवरी अंकित है। उस दिन मकर की संक्रान्ति थी। इसका कारण प्रत्येक 72 वर्ष के बाद अयनगति का परिवर्तन है। गणना के अनुसार अकबर के समय मे यह 9 जनवरी को होता था।

चार वर्ष के एक उदाहरण पर ध्यान दें। यदि यह 14 जनवरी सन् 2009 को प्रातः 6 बजे मकर संक्रान्ति का प्रवेश होगा ,तो सन 2010 मे दिन मे 14 जनवरी को दिन मे 12 बजे, सन् 2011 मे 14 जनवरी को सायंकाल 6 बजे, सन् 2012 मे 14 जनवरी को रात को 12 बजे लेकिन सन् 2013 मे यह पुनः प्रातः 14 जनवरी को ही प्रातः 6 बजे हो जायेगा। इसका कारण लीप ईयर ही है। वर्ष एक दिन बढ़ जाने से यह पीछे की ओर चला आयेगा।

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