भारतीय सभ्यता के अस्तित्व पर मंडराता जनसांख्यिकीय खतरा

भारत सहित पूरी दुनिया में मुसलमानों की जनसंख्या बढ़ रही है। अनुमान है कि 2050 तक यूरोप के कई देश मुस्लिम—बहुल हो जाएंगे। यही हाल भारत के कई जिलों का होने वाला है। इस खतरे से सचेत करते हुए अरुणाचल प्रदेश के पुलिस महानिदेशक रहे रामकुमार ओहरी ने (25 फरवरी, 2007) में एक लेख लिखा था, उसे यहां संपादित कर प्रकाशित किया जा रहा है।


गतकई दशकों से पूरे विश्व,विशेषकर विकासशील देशों में यह भ्रामक प्रचार किया जा रहा है कि जनसंख्या वृद्धि आर्थिक विकास में बाधक है। इसके लिए माल्थस के जनसंख्या सिद्धांत का भी सहारा लिया गया है, लेकिन सचाई इससे भिन्न है। मानवशक्ति आर्थिक विकास का एक अहम साधन है, लेकिन तभी जब यह मानव संसाधन शिक्षित और कौशल प्राप्त हो। भारतीय मध्यम वर्ग यह जानकर आश्चर्यचकित होगा कि मानव जाति के सामने नवीनतम खतरा अधिक जनसंख्या से नहीं, बल्कि उस प्रवृत्ति से है जिसके फलस्वरूप कई देशों में जनसंख्या हृास आरंभ हो गया है। मुस्लिम देशों को छोड़कर शेष विश्व में गर्भनिरोधकों के प्रयोग के कारण 1972 की छह बच्चे प्रति महिला की जनन क्षमता दर घटकर 1990 के दशक में 2.9 बच्चे प्रति महिला हो गई है। रूस की जनसंख्या में प्रतिवर्ष 75,00,000 की कमी आ रही है जिसे पुतिन ने 'राष्ट्रीय संकट' कहा है। जर्मनी, बुल्गारिया तथा रोमानिया में भी जनसंख्या बहुत तेजी से घट रही है। लेकिन इसके विपरीत मुस्लिम देशों की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है।


दुर्भाग्यवश अधिकांश भारतीय बुद्धिजीवी और नीति-निमार्ता इस तथ्य को समझना नहीं चाहते। इसी प्रवृत्ति ने लेबनान, कोसावा, बोस्निया आदि देशों की पंथनिरपेक्ष और बहुसांस्कृतिक संरचना को नष्ट कर दिया। इसी प्रकार के जनसांख्यिकीय परिवर्तन का खतरा मेसीडोनिया और फ्रांस पर भी मंडरा रहा है। 1990 में मेसीडोनिया में मुस्लिमों की जनसंख्या देश की कुल जनसंख्या का आठ प्रतिशत थी। आज उनकी जनसंख्या कुल जनसंख्या की एक तिहाई है। फ्रांस की भी कमोबेश यही स्थिति है। हाल ही में फ्रांस में मुस्लिम कट्टरपंथियों द्वारा की गई हिंसक  घटनाएं वहीं के जनसांख्यिकीय परिदृश्य में हो रहे परिवर्तन का ही परिणाम हैं।

इस तीव्र जनसांख्यिकीय परिवर्तन के दीर्घकालिक परिणामों को समझने के लिए निम्नलिखित तथ्यों पर विचार करना आवश्यक है-
  • भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद केवल मुस्लिम समुदाय की जनसंख्या की प्रतिशतता में निरन्तर तीव्र वृद्धि हुई है। शेष समुदायों के लोगों की जनसंख्या की प्रतिशतता में कमी आई है।
  • 2001 की जनगणना से यह पता चलता है कि पिछले दशक के दौरान (1991—2001) मुस्लिम जनसंख्या की वृद्धि दर लगभग 36 प्रतिशत थी, जबकि हिन्दुओं की वृद्धि दर 23 प्रतिशत से घटकर 20 प्रतिशत रह गई।
  • दो प्रसिद्ध जनसंख्याविदों— पी.एन. मारी भट्ट और ए.जे. फ्रेंसिस जेवियर ने अपने एक लेख में यह उजागर किया कि मुस्लिमों की वृद्धि दर, जो स्वतंत्रता के पहले हिन्दुओं से लगभग 10 प्रतिशत अधिक थी, अब 25 से 30 प्रतिशत अधिक हो गई है। यानी मुस्लिम आबादी अभी हिन्दुओं से लगभग 45 प्रतिशत अधिक तेजी से बढ़ रही है।
  • भट्ट तथा जेवियर ने यह भी कहा कि अंग्रेजी मीडिया के एक वर्ग का यह कथन गलत है कि 2001 की जनगणना हिन्दुओं की तुलना में मुस्लिमों की वृद्धि दर में अपेक्षाकृत अधिक तेजी से गिरावट दशार्ती है।
  •  2001 की जनगणना के अनुसार भारत में मुस्लिम आबादी केवल 13.4 प्रतिशत है, लेकिन 0—6 वर्ष के आयु वर्ग के मुस्लिम बच्चों की संख्या इसी आयु वर्ग के हिन्दू बच्चों की तुलना में 21 प्रतिशत अधिक है। यानी उन्हें आरंभ में ही 7.6 प्रतिशत की बढ़त हासिल है। आने वाले 30—40 वर्ष में उनकी वृद्धि का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है।

 

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