सौभाग्य और संतान सुख प्रदान करता है अचला सप्तमी व्रत

अचला सप्तमी: उत्तरायण सूर्य में प्राण त्यागने वाले सीधे स्वर्ग

इस बार सात फरवरी को सोमवार के दिन अचला सप्तमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन मुहूर्तों को ध्यान में रखते हुए इस दिन को मनाना चाहिए। पूजा व उपवास को सप्तमी तिथि के अनुसार रखना चाहिए। इस दिन स्नान से पहले सूर्य देव से जुड़ी परम्परा का पालन किया जाता और शुभ मुहूर्त में ही स्न्नान किया जाता है। 

आचार्य पंडित शरद चंद्र मिश्र,

हिन्दू धर्म में अचला सप्तमी को बहुत पवित्र पर्व के रूप में पुरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। सप्तमी का यह दिवस सूर्य देव को समर्पित होता है। जिसमे उनकी पूजा की जाती है और उनको प्रसन्न करने के लिए व्रत रखे जाते है। अचला सप्तमी के व्रत को सभी व्रतों में श्रेष्ठ माना गया है। रथ सप्तमी आरोग्य सप्तमी और सूर्य सप्तमी भी अचला सप्तमी के ही नाम है। शास्त्रों में भगवान सूर्य जी को आरोग्यदायक कहा गया है। माना जाता है की सूर्य की ओर मुख करके यदि साफ़ मन से उनकी स्तुति की जाए तो किसी भी प्रकार के रोग से मनुष्य मुक्त हो जाता है।

इसे माघ माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी के दिन मनाया जाता है। सूर्य सप्तमी प्रत्येक वर्ष मनाए जाने वाला पर्व है। सूर्य देव के उपासकों के लिए यह दिन बहुत विशेष होता है। पितृ पूजा के लिए इस दिन को उत्तम माना गया है।

मार्ग शुक्ल सप्तमी अचला सप्तमी के रूप मे मनाई जाती है। इसे रथ, सूर्य, भानु, अर्क, महती, पुत्र सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है।इस दिन सूर्योदय के पूर्व स्नान, सूर्य एवं शिव-पार्वती जी की पूजा तथा दीपदान आदि का बहुत महत्व है। भविष्य पुराण के अनुसार अचला सप्तमी भी सम्पूर्ण पापों को नष्ट करने वाली एवं सुख-सौभाग्य की वृद्धि करने वाली है।जो व्यक्ति माघ स्नान न कर सके,तो उन्हें माघ के इस दिन स्नान से माघ के सम्पूर्ण फल प्राप्त हो जाते हैं।

माघ शुक्ल अष्टमी को भीष्माष्टमी के नाम से जानी जाती है। महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामह सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण त्यागने के उद्देश्य से शर शैय्या पर लेटे रहे, क्योंकि उत्तरायण सूर्य में प्राण त्यागने वाले सीधे स्वर्ग जाते हैं। माघ शुक्र अष्टमी को उस समय सूर्य उत्तरायण हुए थे।उस समय भीष्म पितामह ने अपना प्राण त्यागे ।इस प्रकार भीष्माष्टमी भी भीष्म जी की पुण्य तिथि है।इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को भीष्म पितामह के निमित्त तर्पण करना चाहिए।महाभारत मे उल्लेख है कि इस दिन जो भी व्यक्ति भीष्म का तर्पण करता है,उसका जीवन भर का पाप तिरोहित हो जाता है।सामान्य नियम यह है कि माता-पिता के जीवित रहते तर्पण नही करना चाहिए,किन्तु भीष्माष्टमी के दिन माता-पिता के रहते हुए भी भीष्म के निमित्त तर्पण किया जा सकता है।यह व्यवस्था हेमाद्रि ने दी है।

अष्टदल की आठ कर्णिकाओं में क्रमशः भानु, रवि, विवस्वान, भास्कर, सविता, अर्क, सहस्रकिरण एवं सर्वात्मा की स्थापना करें और उनका पूजन करें।तदुपरान्त भगवान सूर्य का पंचोपचार से पूजन कर यथास्थान पधारने का निवेदन करते हुए विसर्जन कर दें।पूजन एवं विसर्जन के उपरान्त एक पात्र में गुड़,तिल और घी से निर्मित मिष्ठान्न एवं कर्णाभूषण लेकर उसे एक वस्त्र से ढॅक दे।उस पर पुष्पादि चढ़ाकर एवं धूप दीप दिखाकर पूजन करें और दुर्भाग्य और दुःखो के नाश की कामना से ब्राह्मण को दान कर दें। उसके उपरान्त यथाशक्ति दान करें और ब्राह्मण भोजन करायें।

अचला सप्तमी

अचला सप्तमी को व्रत करने वाले व्यक्ति को एक दिन पूर्व अर्थात माघ शुक्ल षष्ठी को सायंकाल भोजन नही ग्रहण करना चाहिए और भगवत् स्मरण में अपना समय लगाना चाहिए।सप्तमी के दिन सूर्योदय के पूर्व उठना चाहिए तथा ऐसे किसी नदी या सरोवर तट पर स्नान करना चाहिए,जिसमे जल को स्नान करते किसी ने हिलाया न हो।स्नान करने के उपरान्त ताम्रपात्र में कुसुम्भ मे रंगी बत्ती में तिल का तेल डालकर प्रज्वलित करे और उसे अपने सिर पर रखकर निम्नलिखित श्लोंको से भगवान सूर्य का ध्यान करें-"नमस्ते रूद्ररूपाय रसानाम्पतये नमः।वरूणाय नमस्तेऽस्तु हरिवास नमोऽस्तु ते।।"-ध्यान करने के उपरान्त दीपक को जल के उपर तैरा दें और फिर एक बार स्नान करके उपने इष्टदेवता और पितरों का स्मरण करे।उन्हे नमस्कार करे और तर्पण करें।अब जल से बाहर आकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।एक थाली लेकर उसमे लाल रोली या चन्दन से अष्टदल कमल बनायें।उस कमल के मध्य में शिव पार्वती की स्थापना करें और- ऊॅ नमः शिवाय -मन्त्र से उसका पूजन करें।

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